इंटरनेट बैन को लेकर मानदंडों के अभाव पर संसदीय समिति ने सरकार की खिंचाई की, कहा- सार्वजनिक आपात स्थिति और जन सुरक्षा की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं
By विशाल कुमार | Published: December 2, 2021 08:12 AM2021-12-02T08:12:42+5:302021-12-02T08:14:05+5:30
गृह मंत्रालय ने संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति को बताया कि एक राय बनाने के लिए उपयुक्त प्राधिकरण पर छोड़ दिया गया है कि क्या किसी घटना से सार्वजनिक सुरक्षा और आपातकाल को खतरा है और इस तरह क्षेत्र में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
नई दिल्ली: अक्सर राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा किसी क्षेत्र में दूरसंचार और इंटरनेट सेवाओं के निलंबन को उचित ठहराने के लिए उपयोग किए जाने वाला सार्वजनिक सुरक्षा और सार्वजनिक आपातकाल, भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5 (2) के तहत परिभाषित नहीं हैं। गृह मंत्रालय (एमएचए) ने कांग्रेस नेता शशि थरूर की अध्यक्षता में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति को इस बात की जानकारी दी।
गृह मंत्रालय ने समिति को बताया कि इसलिए, यह एक राय बनाने के लिए उपयुक्त प्राधिकरण पर छोड़ दिया गया है कि क्या किसी घटना से सार्वजनिक सुरक्षा और आपातकाल को खतरा है और इस तरह क्षेत्र में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
गृह मंत्रालय ने आगे कहा कि सार्वजनिक आपातकाल को कानून में परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन इसके दायरे और विशेषताओं को व्यापक रूप से चित्रित करने वाली रूपरेखा उस खंड से देखी जा सकती है जिसे समग्र रूप से पढ़ा जाना है। इस धारा के तहत आगे की कार्रवाई करने की दृष्टि से उपयुक्त प्राधिकारी को एक सार्वजनिक आपातकाल की घटना के संबंध में एक राय बनानी होगी।
वहीं, संचार और सूचना प्राद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति ने किसी खास समय के दौरान इंटरनेट बंद करने की उपयुक्तता के बारे में निर्णय करने को लेकर मानदंडों के अभाव के लिये सरकार की खिंचाई की है।
उसने कहा कि सार्वजनिक आपात स्थिति और जन सुरक्षा की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है। संचार और सूचना प्राद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की है कि सरकार को इंटरनेट बंद होने से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने को लेकर अध्ययन कराना चाहिए और सार्वजनिक आपात स्थिति और जन सुरक्षा से निपटने में इसका प्रभाव का पता लगाया जाना चाहिए।
दूरसंचार सेवाओं/इंटरनेट निलंबन और उसका प्रभाव’ शीर्षक से संसद में पेश में रिपोर्ट में दूरसंचार और इंटरनेट बंद किये जाने की उपयुक्तता पर निर्णय लेने के लिए जल्द- से -जल्द एक उचित तंत्र स्थापित करने की जरूरत बतायी गयी है।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘सार्वजनिक आपात स्थिति और सार्वजनिक सुरक्षा को लेकर परिभाषित मापदंडों को भी अपनाया और संहिताबद्ध किया जा सकता है। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जमीनी स्तर पर निलंबन नियमों को लागू करते समय विभिन्न राज्यों में कोई अस्पष्टता न हो।’’
समिति ने कहा कि मौजूदा स्थिति में ऐसा कोई मानदंड नहीं है, जिससे दूरसंचार/इंटरनेट बंद करने के औचित्य या उपयुक्तता के बारे में निर्णय किया जा सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे मानदंडों के नहीं होने से इंटरनेट बंद करने का आदेश विशुद्ध रूप से जिला स्तर के अधिकारी के विषय आधारित मूल्यांकन और जमीनी स्थितियों के आधार पर दिया जाता है और यह काफी हद तक कार्यकारी निर्णयों पर आधारित है।
पैनल ने यह भी सुझाव दिया है कि सरकार को पूरे क्षेत्र में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने के बजाय फेसबुक, व्हाट्सएप, टेलीग्राम जैसी चुनिंदा सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने का विकल्प तलाशना चाहिए। समिति ने कहा, यह वित्तीय सेवाओं, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों को काम करना जारी रखने की अनुमति देगा।
ब्रिटेन स्थित गोपनीयता और सुरक्षा अनुसंधान फर्म टॉप10वीपीएन के एक शोध के अनुसार, भारत को 2020 में इंटरनेट बंद होने के कारण दुनिया में सबसे बड़ा आर्थिक प्रभाव पड़ा, जिसमें 8,927 घंटे और 2.8 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ।
जिन 21 देशों ने 2020 में किसी न किसी रूप में दूरसंचार या इंटरनेट बंद का सहारा लिया था, उस वर्ष के दौरान भारत में आर्थिक प्रभाव सूची में अगले 20 देशों के लिए संयुक्त लागत से दोगुना से अधिक था।