बिहार के किशनगंज सीट पर है दिलचस्प मुकाबला, मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में शेरशाहवादी मुसलमान को लेकर वोट बैंक की दलाली होने की कही जा रही हैं बातें
By एस पी सिन्हा | Published: April 17, 2019 03:51 AM2019-04-17T03:51:30+5:302019-04-17T03:51:30+5:30
बिहार का किशनगंज लोकसभा क्षेत्र नेपाल और बंगाल की सीमा पर स्थित है. यह लोकसभा सीट मुस्लिम बहुल है. किशनगंज लोकसभा क्षेत्र सूरजापुरी मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्र है
बिहार का किशनगंज लोकसभा क्षेत्र नेपाल और बंगाल की सीमा पर स्थित है. यह लोकसभा सीट मुस्लिम बहुल है. किशनगंज लोकसभा क्षेत्र सूरजापुरी मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्र है. इस लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय में शामिल सूरजापुरी मुसलमान, शेरशाहवादी मुसलमान, कुल्हिया एवं अन्य मुस्लिम जाति की 70 प्रतिशत आबादी है. वहीं 30 प्रतिशत हिंदु समुदाय से जुडे विभिन्न जातियों के मतदाता हैं.
किशनगंज से कांग्रेस सांसद मौलाना असरार-उल-हक कासमी का निधन 7 दिसंबर 2018 को हो गया. 2019 आम चुनाव नजदीक होने के कारण यहां उपचुनाव नहीं कराए गए. मौलाना असरार-उल-हक कासमी के निधन से यहां का राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल गया. वर्ष 2014 के चुनावों में भाजपा की लहर के बीच भी मौलाना असरारुल हक ने किशनगंज लोकसभा सीट को रिकॉर्ड मतों से जीता था. सभी धर्म और समुदाय के लोगों में उनकी पकड थी. बीते लोकसभा चुनाव में 14 लाख 48 हजार 990 मतदाताओं में 9 लाख 28 हजार वोटरों ने मताधिकार का प्रयोग किया था. लेकिन इसबार किशनगंज में शेरशाहवादी मुसलमान बिरादरी को लेकर वोट बैंक की दलाली होने की बातें कही जा रही हैं.
शेरशाहवादी के कुछ जिले के हाईप्रोफाइल नेता बीते दिन बेलवा गांव में ऑल बिहार शेरशाहवादी एसोसिएशन के बैनर तले एक सम्मेलन आयोजित कर एनडीए के जदयू प्रत्याशी महमूद अशरफ को समर्थन देने का ऐलान किया था. ऐलान के बाद से ही जिले के शेरशाहवादी बिरादरी के आमलोग इस बात से काफी नाराज हो गये और कहने लगे आखिर दो-चार हाईप्रोफाइल लोग कौन होते हैं जो हमलोगों के वोटों का सौदा कर लें. शेरशाहवादी समुदाय के लोग गरीब हो सकते हैं लेकिन अपने वोट का सौदा कभी नहीं कर सकते. जिले में लगभग ढाई लाख शेरशाहवादी वोटर हैं और सभी शेरशाहवादी वोटर एनडीए के प्रत्याशी को वोट करेंगे.
वैसे यहां का चुनावी इतिहास बहुत ही दिलचस्प रहा है. 1957 से 2014 तक कुल 16 चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी को आठ बार जीत मिली. सांसदों के चुनाव में मुस्लिम वोट ही यहां निर्णायक रहे हैं. किशनगंज लोकसभा सीट पर पिछले दो चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी मौलाना असरारुल हक कासमी जीत दर्ज करने में सफल हुये थे. इनके निधन के बाद कांग्रेस ने यहां से डॉ. मोहम्मद जावेद को टिकट दिया है. यहां दूसरे चरण में 18 अप्रैल को वोटिंग होनी है. वर्ष 2009 और 2014 में पहली बार जिले के निवासी व सूरजापुरी बिरादरी से आनेवाले जमीयत उलेमा-ए-हिंद के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना असरारुल हक कासमी ने कांग्रेस के टिकट पर जीत का परचम लहराया. इसके बाद वर्ष 2014 के चुनाव में भी उन्होंने अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रखा.
किशनगंज लोकसभा सीट से कुल 14 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. इस सीट पर कुल 31 नामांकन पत्र दाखिल किए गए थे. बहुजन समाज पार्टी से इंद्र देव पासवान.तृणमूल कांग्रेस से जावेद अख्तर. कांग्रेस पार्टी से डॉ. मोहम्मद जावेद.आम आदमी पार्टी से अलीमुद्दीन अंसारी. जनता दल (युनाइटेड) से सईद महमूद अशरफ. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन से अख्तरुल इमान. शिवसेना के टिकट से प्रदीप कुमार सिंह. झारखंड मुक्ति मोर्चा से शुकल मुरमू. बहुजन मुक्ति पार्टी के टिकट से राजेंद्र पासवान चुनाव मैदान में हैं. अजीमुद्दीन, असद आलम, छोटे लाल महतो, राजेश कुमार दुबे और हसेरुल बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव में हैं.
किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में चार विधानसभा क्षेत्र हैं. जिनमें बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किशनगंज और कोचाधामन के अलावा पूर्णिया जिले के दो विधानसभा क्षेत्र अमौर और बायसी शामिल हैं.
मिनी दार्जिलिंग के नाम से मशहूर किशनगंज लोकसभा क्षेत्र से वर्ष 1952 से वर्ष 2014 के चुनाव में पहले कांग्रेस प्रत्याशी मो. ताहीर को दो बार, उसके बाद जामिलुर रहमान व राजद प्रत्याशी मो. तस्लीमुद्दीन को तीन बार किशनगंज का सांसद बनने का सौभाग्य हासिल हुआ था. पहली बार भाजपा सांसद की जीत. वहीं वर्ष 1999 में किशनगंज मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्र से पहली बार भाजपा प्रत्याशी सैयद शाहनवाज हुसैन ने जीत दर्ज कर सभी को चौंका दिया और वाजपेयी मंत्रिमंडल में संभवत: सबसे कम उम्र के कैबिनेट मंत्री बनने में सफल रहे.