Indresh Kumar Interview: आरएसएस के अचानक उमड़े 'मुस्लिम प्रेम' का राज क्या है...पर्दे के पीछे की कहानी, पढ़ें इंद्रेश कुमार का इंटरव्यू

By शरद गुप्ता | Published: September 28, 2022 09:08 AM2022-09-28T09:08:27+5:302022-09-28T09:13:46+5:30

हाल के दिनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत की मुस्लिम बुद्धिजीवियों और मौनानाओं से मुलाकात चर्चा में रही. संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी इंद्रेश कुमार से शरद गुप्ता ने इसी विषय सहित कुछ अन्य मुद्दों पर बात की. पढ़िए...

Indresh Kumar Interview: Why RSS suddenly meeting muslim leaders and maulanas | Indresh Kumar Interview: आरएसएस के अचानक उमड़े 'मुस्लिम प्रेम' का राज क्या है...पर्दे के पीछे की कहानी, पढ़ें इंद्रेश कुमार का इंटरव्यू

मुसलमानों को भारतीय नहीं बनने दे रहे नेता: इंद्रेश कुमार (फोटो- ट्विटर)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत को अखिल भारतीय इमाम संगठन के अध्यक्ष मौलाना उमर इलियासी से मिलवाने वाले संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी इंद्रेश कुमार थे. पिछले 20 वर्षों से मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संयोजक रहे इंद्रेश कुमार से लोकमत मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर (बिजनेस एवं पॉलिटिक्स) शरद गुप्ता ने पूछा अचानक उमड़े संघ के मुस्लिम प्रेम का राज. प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश...

- संघ प्रमुख को एक मस्जिद या मदरसे पहुंचने में 97 वर्ष क्यों लगे?

वैसे तो डॉक्टर हेडगेवार के समय से अभी तक संघ मुसलमानों के साथ बातचीत करता रहा है. 25 वर्ष पूर्व जब कुप्प सी सुदर्शन सरसंघचालक थे तब उन्हें कई मुस्लिम और ईसाई संगठनों के पत्र मिले जो संघ को सीधे जानना चाहते थे. तभी उनका संघ से वार्ताओं का एक दौर शुरू हुआ और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच बना. वार्ताओं का दौर तो 25 साल पहले या कहें कि 50 साल पहले से चल रहा है.

- यदा-कदा किसी मुस्लिम से बात करने से लेकर मस्जिद मदरसों का दौरा करने तक का सफर कैसे तय हुआ?

पिछले वर्ष 4 जुलाई को मुस्लिम बुद्धिजीवी डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार की पुस्तक मीटिंग ऑफ माइंड्स का विमोचन गाजियाबाद के इंदिरापुरम में भागवत जी ने किया था. उसी दौरान उन्होंने मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की दो दिवसीय कार्यशाला में भी भाग लिया जिसमें पूरे देश से बहुत ढेर से बुद्धिजीवी इकट्ठे हुए थे. फिर उन्हें पांच मुस्लिम बुद्धिजीवियों का निमंत्रण प्राप्त हुआ तो गत 22 अगस्त को उन्होंने उनसे गहन चर्चा की. इन लोगों का कहना था कि मीडिया के साथ मजहबी और सियासी नेताओं का एक बड़ा तबका मुसलमानों को भारतीय नहीं बनने दे रहा है. इनकी वजह से ही हम पर शक की उंगलियां उठ रही हैं.

- क्या मस्जिद और मदरसा जाकर संघ मुसलमानों के बीच अपनी छवि सुधारना चाहता है?

संघ मुसलमानों को मुख्यधारा में लाने में मदद कर रहा है. संघ के प्रति मिथ्या प्रचार को काउंटर किया जा सके, इसलिए यह बातचीत हो रही है. इसी क्रम में मौलाना उमर इलियासी के 7 महीने पुराने निमंत्रण पर 22 सितंबर को भागवत जी उनके घर गए जो कि एक मस्जिद में पड़ता है. फिर उन्होंने अपने एक मदरसे में जाने का अनुरोध किया जिसे वे आधुनिक रूप देना चाहते हैं. संघ की छवि अच्छी थी, अच्छी है और अच्छी ही रहेगी. इस पर कोई दाग नहीं है. संघ एक राष्ट्रभक्त स्वयंसेवी संगठन है और उसे किसी प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है.

- राम जन्मभूमि के बाद अब क्या ज्ञानवापी मस्जिद, कृष्ण जन्मभूमि, धार भोजशाला और हुबली की ईदगाह जैसे मामले भी उठाए जाएंगे?

यह सब भारत आए विदेशी आक्रांताओं की निशानियां हैं. उन्होंने हर जगह मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनवाईं. आज खुद भारतीय मुसलमान यह सवाल पूछ रहे हैं कि गौरी गजनी से लेकर औरंगजेब और बाद के बादशाहों को मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनाने की क्या जरूरत थी. और यदि ये मस्जिदें पाक थीं तो कोई भी बादशाह इनमें नमाज पढ़ने कभी क्यों नहीं आया? बल्कि आज जो नेता इन्हें सियासी मुद्दा बना रहे हैं उन्होंने भी इनमें कभी नमाज नहीं पढ़ी. मुसलमान खुद पूछ रहे हैं कि हमारी मस्जिदों में टूटी हुई मूर्तियां कहां से आईं. इसीलिए कोई भी मौलाना वहां नमाज पढ़ने नहीं गया. जाहिर है कि वे सियासी रोटियां सेंकने के लिए मुद्दा बनाए हुए हैं.

- क्या आप मुसलमानों के साथ बातचीत में उन्हें यही सब समझाते हैं?

वह हमसे और आपसे कहीं ज्यादा समझदार हैं. उन्हें सब मालूम है. बस मीडिया और सियासी नेता उन्हें हकीकत से दूर रखना चाहते हैं. आज लाखों मुसलमान सामने आकर इन मजहबी और सियासी नेताओं को सच्चाई बता रहे हैं. जिन विवादों का जिक्र आप कर रहे हैं उन्हें उठाने से नेता बच रहे हैं और प्रेस भी जिम्मेदारी से भाग रही है. आपको इन विवादास्पद धार्मिक स्थलों का सच सामने लाना चाहिए. फिर दोनों समाज के गणमान्य लोग बैठ कर आपस में फैसला कर लेंगे. यदि नहीं कर पाएंगे तो अदालतें कर देंगी.

- उत्तराखंड सरकार समान नागरिक संहिता का कानून बना रही है. क्या यह जरूरी है?

पूरी दुनिया में हर देश का अपना एक कानून है जिसे उस देश का हर निवासी मानता है चाहे वह किसी भी पंथ, जाति और मजहब का हो. तो हर भारतवासी के लिए एक कानून क्यों नहीं होना चाहिए? कानून किसी भी मजहब की परंपराएं निभाने और त्यौहार मनाने में बाधा नहीं पैदा करता है. उल्टे, मदद ही करता है.

- यानी संघ का मानना है कि यह कानून भारत के लिए जरूरी है?

बिल्कुल. यदि हर धर्म का अलग कानून होगा तो बताइए अगर एक सिख और ईसाई लड़ते हैं तो उनके बीच फैसला किस कानून से होगा? फिर तो शियाओं के और सुन्नियों के कानून भी अलग होंगे. तो उनके बीच फैसला किस कानून से होगा?

- इसमें मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की क्या भूमिका होगी?

हमने हिजाब और तीन तलाक जैसे मामलों पर मुसलमानों को वस्तुस्थिति से अवगत कराया. इसीलिए जब इन पर सरकार ने फैसले लिए तो मुस्लिम समाज की ओर से कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं आई. आगे भी मुसलमान समाज से बातचीत जारी रखेंगे.

- इंग्लैंड के लीसेस्टर शहर में हाल ही में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगों को आप कैसे देखते हैं?

मेरा मानना है कि ब्रिटेन की एक कानून पसंद और धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में बनी छवि की पोल खुल गई है. अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के अन्य देशों का दायित्व है कि वे अपने यहां रह रहे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का दायित्व ठीक प्रकार से निभाएं.

- पीएफआई पर लग रहे आरोपों पर आपको क्या कहना है? क्या इस पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए?

जो संगठन समाज बांटने या हिंसा फैलाने की बात करता हो क्या उसे काम करते रहने देना चाहिए? जो देश को तोड़ने या जलाने की साजिश रचते हैं, उन पर सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए.

- महाराष्ट्र में समरसता बनाए रखने के लिए प्रदेश सरकार को क्या करना चाहिए?

मौजूदा गठबंधन सरकार महाराष्ट्र के लिए सर्वथा उचित है. यह जातिवाद और मजहबवाद से मुक्त है. मुझे विश्वास है कि वह न सिर्फ विकास पर ध्यान देगी बल्कि सभी धर्म और पंथ के लोगों को एक साथ लेकर चलने में सक्षम है.

Web Title: Indresh Kumar Interview: Why RSS suddenly meeting muslim leaders and maulanas

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