गलवान वैली को खोने का अर्थ है सामरिक महत्व को खतरे में डालना, भारत और चीन के कई मायने

By सुरेश एस डुग्गर | Published: June 20, 2020 03:17 PM2020-06-20T15:17:05+5:302020-06-20T15:17:05+5:30

1999 में भारत ने करगिल के पहाड़ों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ दिया था पर इस बार लगता नहीं है कि गलवान वैली के 50 से 60 वर्ग किमी के इलाके पर कब्जा घोषित करने वाली लाल सेना को पीछे धकेला जा सकेगा।

Indo-China border Losing Galvan Valley risking strategic importance | गलवान वैली को खोने का अर्थ है सामरिक महत्व को खतरे में डालना, भारत और चीन के कई मायने

भारतीय सेना डीबीओ अर्थात दौलत बेग ओल्डी के अपने सामरिक महत्व के ठिकाने और हवाई पट्टी तक पहुंचने के लिए करती आई है। (file photo)

Highlightsक्षेत्र में मौजूदगी को ‘मान्यता’ देने का अर्थ है कि सामरिक महत्व की दरबुक-शयोक-डीबीओ रोड को चीनी तोपखाने के निशाने पर ले आना। अलग है की चीन हमेशा ही लद्दाख सेक्टर में बिना गोली चलाए पहले भी कई बार भारतीय सेना को कई किमी पीछे ‘खदेड़’ चुका है।वर्ष 1999 में पाकिस्तानी सेना ने करगिल के पहाड़ों पर कब्जा कर लिया था और तब भी मई 1999 में उनसे सामना हुआ था।

जम्मूः चाहे आप इसे माने या नहीं, लेकिन वह गलवान वैली अब भारतीय सेना के लिए किसी खतरे से कम साबित नहीं होने जा रही जिस पर अब चीन ने अपना दावा पक्का कर लिया है।

गलवान वैली को खोने के खतरे का अर्थ ठीक वही है जो करगिल-लेह हाइवे पर कई पहाड़ों पर पाकिस्तानी कब्जे के कारण पैदा हुआ था। तब 1999 में भारत ने करगिल के पहाड़ों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ दिया था पर इस बार लगता नहीं है कि गलवान वैली के 50 से 60 वर्ग किमी के इलाके पर कब्जा घोषित करने वाली लाल सेना को पीछे धकेला जा सकेगा, जिसकी इस क्षेत्र में मौजूदगी को ‘मान्यता’ देने का अर्थ है कि सामरिक महत्व की दरबुक-शयोक-डीबीओ रोड को चीनी तोपखाने के निशाने पर ले आना।

यह बात अलग है की चीन हमेशा ही लद्दाख सेक्टर में बिना गोली चलाए पहले भी कई बार भारतीय सेना को कई किमी पीछे ‘खदेड़’ चुका है। इस साल मई के पहले हफ्ते में ही चीन ने गलवान वैली पर कब्जे की योजना ठीक उसी प्रकार बना ली थी जिस तरह से वर्ष 1999 में पाकिस्तानी सेना ने करगिल के पहाड़ों पर कब्जा कर लिया था और तब भी मई 1999 में उनसे सामना हुआ था।

सूचनाएं कहती हैं कि चीन ने एलएसी से लेकर भारतीय इलाके में उस स्थान तक कब्जा कर लिया हुआ है जहां पर गलवान नदी के किनारे किनारे सामरिक महत्व की दरबुक-शयोक-डीबीओ रोड भारतीय क्षेत्र में चलती है और इसी रोड का इस्तेमाल भारतीय सेना डीबीओ अर्थात दौलत बेग ओल्डी के अपने सामरिक महत्व के ठिकाने और हवाई पट्टी तक पहुंचने के लिए करती आई है।

चीन के गलवान वैली पर कब्जे को ‘मान्यता’ प्रदान कर दी गई है

अब जबकि चीन के गलवान वैली पर कब्जे को ‘मान्यता’ प्रदान कर दी गई है, दरबुक-शयोक-डीबीओ रोड पूरी तरह से उस चीनी तोपखाने की रेंज में है जो लाल सेना मई के पहले हफ्ते एलएसी के पार तक ले आई थी। सैनिक सूत्र मानते हैं कि गलवान वैली पर चीनी कब्जे का अब विरोध नहीं होने के कारण भारतीय सैनिकों और गश्त पर जाने वालों की जान भी खतरे में इसलिए है क्योंकि जिस इलाके पर चीनी सेना काबिज हो चुकी है वे सभी ऊंचाई पर हैं और वे करगिल के टोलोलिंग और टाइगर हिल्स साबित होने जा रहे हैं।

एक खबर के मुताबिक, चीनी सेना ने भारतीय सैनिकों को इस इलाके से पीछे हटने को भी कहा है। हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है पर यह ठीक उसी तरह से है जिस तरह वर्ष 2013 में दौलत बेग ओल्डी में टेंट गाड़ने वाली चीनी सेना ने अपने कदम पीछे हटाने की बात मानते हुए भारतीय सेना को भी 15 किमी पीछे अपने ही इलाके में बिना गोली चलाए वापस जाने पर मजबूर कर दिया था।

लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी अलाके में चीन की सेना ने अपने कदम पीछे हटाने की बात मानी थी

तब भी मई का ही महीना था। पांच मई 2013 को जब अचानक लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी अलाके में चीन की सेना ने अपने कदम पीछे हटाने की बात मानी थी तो भारतीय खेमे में कोई खुशी की लहर नहीं थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि भारतीय क्षेत्र में ही बनाए गए लाल सेना के ठिकानों से मात्र 300 मीटर की दूरी पर कैंप लगाए भारतीय जवानों को तब और 15 किमी पीछे बरस्ते के इलाके में जाने का आदेश सुना दिया गया था। दरअसल तब, चीनी सेना इसी ‘शर्त’ पर इलाका खाली करने को राजी हुई थी कि भारतीय सेना बरस्ते से आगे अब कभी गश्त नहीं करेगी और न ही कोई सैन्य गतिविधियां चलाएगी।

हालांकि सरकारी तौर पर इन मान ली गई शर्तों के प्रति कोई वक्तव्य आज तक नहीं आया है पर मिलने वाली सूचनाएं कहती हैं कि बरस्ते के आगे बनाए गए उन ढांचों को भी भारतीय सेना को हटाना पड़ा था जो इलाके में कभी कभार गश्त करने वाले जवानों को खराब मौसम में शरण देने के लिए खड़े किए गए थे। इन पर लाल सेना को आपत्ति थी और मात्र 50 चीनी सैनिकों ने अपनी इस आपत्ति को आखिर मनवा ही लिया था जबकि इस बार तो चीनी की तादाद 10 हजार से अधिक है।

Web Title: Indo-China border Losing Galvan Valley risking strategic importance

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