सिंधु जल संधि का ‘बम’ पाक पर फोड़ने का दबाव लगातार झेल रहा है भारत

By सुरेश एस डुग्गर | Published: January 27, 2023 02:38 PM2023-01-27T14:38:59+5:302023-01-27T14:38:59+5:30

वर्ष 1960 के सितम्बर महीने में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के सैनिक शासक फील्ड मार्शल अय्यूब खान के बीच यह जल संधि हुई थी।

India is constantly facing pressure to explode the 'bomb' of Indus Water Treaty on Pakistan | सिंधु जल संधि का ‘बम’ पाक पर फोड़ने का दबाव लगातार झेल रहा है भारत

सिंधु जल संधि का ‘बम’ पाक पर फोड़ने का दबाव लगातार झेल रहा है भारत

Highlightsजलसंधि के मुताबिक, भारत को जम्मू कश्मीर में बहने वाली तीन नदियों-सिंध, झेलम और चिनाब के पानी को रोकने का अधिकार नहींवर्ष 1960 के सितम्बर महीने में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई थी यह जल संधिप्रधानमंत्री नेहरू और पाकिस्तान के सैनिक शासक फील्ड मार्शल अय्यूब खान जल संधि किए थे हस्ताक्षर

जम्मू: जिस 63 साल पुरानी सिंधु जलसंधि में संशोधन के लिए भारत द्वारा पाकिस्तान को नोटिस दिया गया है उसके प्रति एक कड़ी सच्चाई यह है कि कश्मीर में 33 सालों से फैले आतंकवाद के बावजूद भारत सरकार पर इस ‘बम’ को फोड़ने का दबाव लगातार डाला जाता रहा है। दरअसल देश में उस आतंकी हमले की प्रत्येक बड़ी घटना के बाद, जिसमें पाकिस्तान का सीधा हाथ पाया गया था।

सभी पक्षों का दबाव यही रहा था कि कि इस संधि को समाप्त करना एक परमाणु बम गिराने के समान होगा क्योंकि अगर जल संधि तोड़ दी जाती है तो भारत से बहने वाली नदियों  के पानी को पाकिस्तान की ओर जाने से रोका जा सकता है जिसके मायने होंगे पाकिस्तान में पानी के लिए हाहाकार मचना और यह सबसे बड़ा बम होगा पाकिस्तानी जनता के लिए और वह आतंकवाद को बढ़ावा देने की अपनी नीति को बदल लेगा। 

पुलवामा हमले के बाद यह दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया था। वर्ष 1960 के सितम्बर महीने में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के सैनिक शासक फील्ड मार्शल अय्यूब खान के बीच यह जल संधि हुई थी। इस जलसंधि के मुताबिक, भारत को जम्मू कश्मीर में बहने वाली तीन नदियों-सिंध, झेलम और चिनाब के पानी को रोकने का अधिकार नहीं है। 

जम्मू कश्मीर के लोगों के शब्दों में:‘भारत ने राज्य के लोगों के भविष्य को पाकिस्तान के पास गिरवी रख दिया था।’यह कड़वी सच्चाई भी है। इन तीनों नदियों का पानी अधिक मात्रा में राज्य के वासी इस्तेमाल नहीं कर सकते। इससे अधिक बदनसीबी क्या होगी कि इन नदियों पर बनाए जाने वाले बांधों के लिए पहले पाकिस्तान की अनुमति लेनी पड़ती है। 

असल में जनता का ही नहीं, बल्कि अब तो नेताओं का भी मानना है कि इस जलसंधि ने जम्मू कश्मीर के लोगों को परेशानियों के सिवाय कुछ नहीं दिया है। नतीजतन सिंधु जल संधि को समाप्त करने की मांग करने वालों में सबसे प्रमुख स्वर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला का भी था। वे पिछले कई सालों से इस मांग को दोहराते रहे हैं जहां तक कि अपने शासनाकाल में वे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जम्मू कश्मीर के तीन दिवसीय दौरे के दौरान भी फारूक अब्दुल्ला इस मांग का राग अलापने से नहीं चूके थे। 

दरअसल, जल संधि के मुताबिक, पाकिस्तान और पाक कब्जे वाले कश्मीर की ओर बहने वाले जम्मू कश्मीर की नदियों के पानी को पीने तथा सिंचाई के लिए एकत्र करने का अधिकार जम्मू कश्मीर को नहीं है। जब सीमाओं पर कई बार युद्ध के बादल मंडराये तथा प्रदेश में पिछले 33 सालों से पाकिस्तान समर्थक आतंकवाद मौत का नंगा नाच नहीं रुका तो इस जलसंधि को तोड़ने की मांग बढ़ी है। 

यही नहीं सेना तो कहती थी कि पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी अगर भारत जलसंधि के ‘परमाणु बम’ को पाकिस्तानी जनता के ऊपर फोड़ देता है। अर्थात अगर वह जलसंधि को तोड़ कर पाकिस्तान की ओर बहने वाले पानी को रोक लेता है तो पाकिस्तान में पानी के लिए हाहाकार मच जाएगा और बदले में भारत जम्मू कश्मीर से पाकिस्तान को अपना हाथ पीछे खींचने के लिए मजबूर कर सकता है।

इस सच्चाई से पाकिस्तान भी वाकिफ है कि भारत का ऐसा कदम उसके लिए किसी परमाणु बम से कम नहीं होगा। यही कारण है कि वह इस जलसंधि के तीसरे गवाह कह लिजिए या फिर पक्ष, विश्व बैंक के सामने लगातार गुहार लगाता आ रहा है कि वह भारत को ऐसा करने से रोके।  हालांकि यही एक कड़वी सच्चाई है कि भारत के लिए ऐसा कर पाना अति कठिन होगा, विश्व समुदाय के दबाव के चलते। लेकिन आम नागरिकों का मानना है कि अगर देश को पाकिस्तानी आतंकवाद से बचाना है तो उसे अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुकना स्वीकार नहीं करना होगा। 

नागरिकों के मुताबिक, अगर भारत पाकिस्तानी चालों के आगे झुक जाता है तो कश्मीर में फैला आतंकवाद कभी भी समाप्त नहीं होगा। यही कारण था कि इस जलसंधि को लेकर अक्सर नई दिल्ली में होने वाली वार्षिक बैठकों से पहले यह स्वर उठता रहा है कि इसे समाप्त करने की पहल कर पाकिस्तान पर ‘परमाणु बम’ का धमाका कर देना चाहिए जो अनेकों परमाणु बमों से अधिक शक्तिशाली होगा और पाकिस्तान की अक्ल ठिकाने आ जाएगी।

 

Web Title: India is constantly facing pressure to explode the 'bomb' of Indus Water Treaty on Pakistan

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