फोनी में जाल की तरह उलझकर रह गई मछुआरों की जिंदगी, अब सिर्फ याद बाकी

By भाषा | Published: May 14, 2019 01:46 PM2019-05-14T13:46:11+5:302019-05-14T13:46:41+5:30

In the cyclone-torn colonies of Penthakata slum in Puri, lives of at least 30,000 people have turned upside down. | फोनी में जाल की तरह उलझकर रह गई मछुआरों की जिंदगी, अब सिर्फ याद बाकी

महिला ने कहा ,‘‘ मैंने बीस साल में ऐसी हालत कभी नहीं देखी। सब कुछ खत्म हो गया। इससे अच्छा होता कि मैं तूफान में ही मर जाती।’’  

Highlightsऐसे लोगों में से एक है पिक्कीम्मा, जिसका सब कुछ तूफान ले गया और बची है तो बस, उसकी मां की तस्वीर। पिछले एक हफ्ते में दो महिलाओं की बुखार से मौत हो गई। हर तरफ गंदगी के कारण बीमारियां फैलने का डर है।

टूटे हुए घरों से झांकती तबाही , चारों तरफ बिखरी गंदगी, सड़ती मछलियों की दुर्गंध और जाल की ही तरह उलझकर रह गई जिंदगी ....। कुल जमा यही तस्वीर है पुरी में मछुआरों की इस बस्ती की, जिसमें बसे करीब 30,000 लोगों की जिंदगी हाल ही में आए फोनी चक्रवात के कारण तहस नहस हो गई।

‘‘कहते हैं कि सागरपुत्र मछुआरों को समंदर से डर नहीं लगता। हमें भी यही लगता था। तीन मई को तूफान के समय मैं अपने घर में ही था। जो मैंने देखा, वह जिंदगी भर नहीं भूलूंगा। अब तो समंदर में जाने में ही डर लगता है। नावें हमारे घरों पर उल्टी हो गईं और पेड़ धराशायी हो गए। तूफानी हवाओं के साथ सब कुछ बह गया और रेत घरों में आ गई।’’ यह कहना है लाइफगार्ड जगदीश मल्लै का।

तेलुगुभाषी मछुआरों की इस बस्ती से लोगों को तूफान से पहले दो मई की शाम को ही हटा लिया गया था, लेकिन कुछ लोग यह सोचकर रुक गए कि पहले भी कई तूफान देखे हैं। ऐसे लोगों में से एक है पिक्कीम्मा, जिसका सब कुछ तूफान ले गया और बची है तो बस, उसकी मां की तस्वीर।

तूफान आया तो पहले मेरी झुग्गी की टिन की छत उड़ी। मैं खंभा पकड़े खड़ी रही

उन्होंने कहा, ‘‘तूफान आया तो पहले मेरी झुग्गी की टिन की छत उड़ी। मैं खंभा पकड़े खड़ी रही। फिर दीवारें गिरीं और देखते ही देखते मेरा सारा सामान बह गया। सिर्फ मेरी मां की एक तस्वीर बची रह गई और अब मेरे पास कुछ नहीं है।’’

तूफान थम गया और लोग अपनी जिंदगी के बिखरे तिनके सहेजने की आस लिए अगले दिन बस्ती लौटे। लेकिन असली चुनौती भी सामने थी। टूटी नावों की मरम्मत, नए जाल का बंदोबस्त और घरों पर छत सरकार की मदद के बिना संभव नहीं है।

करीब 60 बस्तियों में कुल एक हजार के करीब नावें हैं

तटवर्ती इलाकों पर बसी करीब 60 बस्तियों में कुल एक हजार के करीब नावें हैं, लेकिन एक भी समुद्र में फिर उतारने लायक नहीं बची है। मछुआरे गोपी ने कहा,‘‘एक नाव करीब चार लाख रुपये की आती है और जाल 50,000 रुपये का। नावों और जाल की मरम्मत के बिना दोबारा समंदर में उतर नहीं सकते।

मछली पकड़ने का मौसम होता है, जिसमें होने वाली कमाई पर हम साल भर गुजारा करते हैं। अभी तो यहां खाने के लाले पड़े हैं।’’ यही नहीं, गिरे हुए पेड़ों, खंभों ने मुसीबतें और बढ़ा दी हैं। घर के सारे सदस्य मलबा हटाने में जुटे हैं और गंदगी के कारण बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।

गोपी ने बताया ,‘‘पिछले एक हफ्ते में दो महिलाओं की बुखार से मौत हो गई। हर तरफ गंदगी के कारण बीमारियां फैलने का डर है। बिजली नहीं है इसलिए मछलियों को संरक्षित करने के लिये बर्फ भी नहीं है। ऐसे में मछलियां सड़ रही है।’’

सरकारी राहत राशन कार्ड पर मिल रही है और कई मछुआरों के पास राशन कार्ड नहीं हैं। गंदगी और रास्ता अवरूद्ध होने की वजह से गैर सरकारी संगठन भी यहां तक पहुंच नहीं पा रहे । सत्तर बरस की गोसाला गोरैयम्मा मछली टोकरों में भरकर बाहर तक लाने के एवज में करीब 80 रुपये रोज कमाती है।

फिलहाल राहत केंद्र पर सारा दिन चावल के इंतजार में बैठी इस महिला ने कहा ,‘‘ मैंने बीस साल में ऐसी हालत कभी नहीं देखी। सब कुछ खत्म हो गया। इससे अच्छा होता कि मैं तूफान में ही मर जाती।’’  

Web Title: In the cyclone-torn colonies of Penthakata slum in Puri, lives of at least 30,000 people have turned upside down.

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