बिहार के मुजफ्फरपुर में कहर बनकर टूट रहा है इंसेफलाइटिस, अब तक 50 से ज्यादा बच्चों मौत, मचा है कोहराम

By एस पी सिन्हा | Published: June 11, 2019 10:16 PM2019-06-11T22:16:20+5:302019-06-11T22:16:20+5:30

बिहार के मुजफ्फरपुर में इंसेफलाइटिस की वजह से मौत का आंकडा लगातार बढ रहा है. इंसेफलाइटिस का कहर से कई घर तबाह हो गये हैं. पिछले एक सप्ताह में 50 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है

In Muzaffarpur in Bihar, the infestation is being depleted as a havoc, so far more than 50 children have died, | बिहार के मुजफ्फरपुर में कहर बनकर टूट रहा है इंसेफलाइटिस, अब तक 50 से ज्यादा बच्चों मौत, मचा है कोहराम

बिहार के मुजफ्फरपुर में कहर बनकर टूट रहा है इंसेफलाइटिस, अब तक 50 से ज्यादा बच्चों मौत, मचा है कोहराम

Highlightsबिहार में एईएस यानि (एक्यूट इन्सेफेलाइटिस) से 12 जिले और 222 प्रखंड प्रभावित हैं. बच्चों की बीमारी को देखते हुए चार आईसीयू चालू किए गए हैं, फिर भी बेड कम पड रहे हैं

बिहार के मुजफ्फरपुर में इंसेफलाइटिस की वजह से मौत का आंकडा लगातार बढ रहा है. इंसेफलाइटिस का कहर से कई घर तबाह हो गये हैं. पिछले एक सप्ताह में 50 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है. एसकेएमसीएच में 83 बच्चों का इलाज चल रहा है, जबकि केजरीवाल अस्पताल में आठ भर्ती हैं. कई बच्चे जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं और बिहार सरकार के मंत्री एक के बाद के विवादास्पद बयान दे रहे हैं.

बिहार सरकार के कला एवं संस्कृति मंत्री प्रमोद कुमार का कहना है किसको क्या पता है कि कौन कितना दिन जिएगा? इसके बाद उन्होंने कहा कि सरकार कोशिश कर रही है कि बच्चों को बचाया जा सके. वहीं, मुजफ्फरपुर मामले पर केंद्रीय राज्य मंत्री अश्वनी चौबे ने कहा है कि जरूरत पडी तो केंद्रीय टीम भेजी जाएगी. मुजफ्फरपुर में तत्काल कोई जरूरत नहीं है. जब जरूरत होगी तो टीम भेजी जाएगी. यहां उल्लेखनीय है कि हर साल होने वाली इस बीमारी को रोकने में बिहार सरकार नाकाम साबित हो रही है. ऐसे में यह पीडितों और उनके परिजनों के लिए मुश्किल की घडी है और जल्द से जल्द इसपर काबू किए जाने की जरूरत है. लेकिन ऐसे समय में नेताओं और मंत्रियों के लापरवाही भरे बयान उनकी संवेदनहीनता को जाहिर कर रहे हैं. रविवार की रात से सोमवार देर रात तक 20 बच्चों की मौत हो गई है. उधर, स्वास्थ्य विभाग ने लगातार सातवें दिन बच्चों की मौत होने पर सिविल सर्जन शैलेश प्रसाद सिंह से रिपोर्ट मांगी है और इलाज की बेहतर मॉनीटरिंग करने का निर्देश दिया. जबकि तिरहुत के कमिश्नर नर्मदेश्वर लाल ने भी आपात बैठक बुलाकर कई निर्देश दिये. उन्होंने बीमारी से बचाव को लेकर प्रचार-प्रसार नहीं किये जाने पर फटकार भी लगाई है.

बताया जाता है कि बच्चों की बीमारी को देखते हुए चार आईसीयू चालू किए गए हैं, फिर भी बेड कम पड रहे हैं. एक बेड पर दो-दो बच्चों का इलाज किया जा रहा है. इससे पहले सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को इस मामले में विभाग के प्रधान सचिव को ध्यान देने की नसीहत दी थी. उन्होंने कहा था कि बच्चों की मौत पर सरकार चिंतित है और इससे कैसे निपटा जाए इस पर काम चल रहा है. मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव को एईएस पर खुद नजर रखने का निर्देश दिया. जबकि इस बीमारी को लेकर उन्‍होंने जागरुकता फैलाने की जरुरत बताई है. वहीं, सूबे के स्वास्थ्य मंत्री ने इन मौतों का कारण कुछ और बताया. स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय ने सोमवार को कहा था कि अभी तक 11 बच्चों के मौत की पुष्टि हुई है, लेकिन इसमें एईएस यानि इनसेफेलाइटिस से अभी तक किसी बच्चे की मौत नहीं हुई है.
उन्‍होंने कहा कि हाईपोगलेसिमिया से 10 बच्चों की मौत हुई है, जबकि एक बच्चे की मौत जापानी इनसेफेलाइटिस से हुई है. जबकि बच्चों की मौत को लेकर विभाग गम्भीर है. प्रधान सचिव लगातार इसकी समीक्षा कर रहे हैं.

यहां बता दें कि बिहार में एईएस यानि (एक्यूट इन्सेफेलाइटिस) से 12 जिले और 222 प्रखंड प्रभावित हैं. मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सीतामढी, शिवहर और वैशाली जिलों में चमकी बुखार का कहर तेज हो गया है. सात दिनों में 114 पीडित बच्चे एसकेएमसीएच व केजरीवाल अस्पताल में भर्ती हुए हैं, जिनमें 50 से अधिक बच्चों की जान चली गई. इस तरह से उत्‍तर बिहार में एईएस का कहर लगातार गहराता जा रहा है. बीमारी की गंभीरता को देखते हुए अस्‍पताल अलर्ट मोड में हैं. वहां जरूरी सुविधाओं के साथ डॉक्‍टरों की रोस्‍टर ड्यूटी तय कर दी गई है.
 


बताया जाता है कि एईएस के लक्षण अस्पष्ट होते हैं, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इसमें दिमाग में ज्वर, सिरदर्द, ऐंठन, उल्टी और बेहोशी जैसी समस्याएं होतीं हैं. शरीर निर्बल हो जाता है. बच्‍चा प्रकाश से डरता है. कुछ बच्चों में गर्दन में जकडन आ जाती है. यहां तक कि लकवा भी हो सकता है. डॉक्‍टरों के अनुसार इस बीमारी में बच्चों के शरीर में शर्करा की भी बेहद कमी हो जाती है. बच्चे समय पर खाना नहीं खाते हैं तो भी शरीर में चीनी की कमी होने लगती है. जब तक पता चले, देर हो जाती है. इससे रोगी की स्थिति बिगड जाती है. यह रोग एक प्रकार के विषाणु (वायरस) से होता है. इस रोग का वाहक मच्छर किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काटता है तो विषाणु उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. बच्चे के शरीर में रोग के लक्षण चार से 14 दिनों में दिखने लगते हैं. मच्छरों से बचाव कर व टीकाकरण से इस बीमारी से बचा जा सकता है.

इस बीच केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री मंत्री हर्षवर्धन ने उत्‍तर बिहार में इस बीमारी से बच्‍चों की मौत का संज्ञान लिया है. उन्‍होंने एसकेएमसीएच प्रशसन से बीमारी के संबंध में रिपोर्ट मांगी है. इसके पहले वर्ष 2014 में भी तत्कालीन केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने मुजफ्फरपुर का दौरा किया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी वहां गए थे.

प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले 10 सालों में 350 से अधिक बच्चों की मौत हो गई है. वर्ष 2012 व 2014 में इस बीमारी के कहर से मासूमों की ऐसी चीख निकली कि इसकी गूंज पटना से लेकर दिल्ली तक पहुंची थी. बेहतर इलाज के साथ बच्चों को यहां से दिल्ली ले जाने के लिए एयर एंबुलेंस की व्यवस्था करने का वादा भी किया गया. मगर, पिछले दो-तीन वर्षों में बीमारी का असर कम होने पर यह वादा हवा-हवाई ही रह गया. पर इस वर्ष बीमारी अपना रौद्र रूप दिखा रही है. वर्षवार एईएस से मौत का आंकडा कुछ इस प्रकार है- 2010 में 24, 2011 में 45, 2012 में 120, 2013 में 39, 2014 में 86, 2015 में 11, 2016 में 04, 2017 में 04, 2018 में 11 और 2019 में अभी मौत का सिलसिला जारी है.

Web Title: In Muzaffarpur in Bihar, the infestation is being depleted as a havoc, so far more than 50 children have died,

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