गैरकानूनी वनभूमि दावा: सुप्रीम कोर्ट ने की उप्र सरकार की खिंचाई, क्या कर रहे थे 26 सालों के दौरान

By भाषा | Published: September 20, 2019 06:03 AM2019-09-20T06:03:00+5:302019-09-20T06:03:00+5:30

पीठ ने अगले सप्ताह तक उन लोगों एवं उद्योगों सहित उन प्रतिष्ठानों की सूची मांगी है जिनके पक्ष में दावों का निस्तारण किया गया। पीठ ने कहा, ‘‘हम एकपक्षीय आदेश नहीं दे सकते। हम आवंटन को निष्प्रभावी घोषित करे, इससे पहले हम उन्हें सुनना चाहते हैं।’’ 

Illegal forest land claims SC says UP govt sleeping for 26 years | गैरकानूनी वनभूमि दावा: सुप्रीम कोर्ट ने की उप्र सरकार की खिंचाई, क्या कर रहे थे 26 सालों के दौरान

प्रतीकात्मक फोटो

Highlightsआप अगले सप्ताह तक उन सभी दावाकर्ताओं की सूची सौंपिए जिन्हें 1994 के बाद वन क्षेत्र में भूमि दी गयी। पीठ ने राज्य सरकार से यह पता लगाने के लिए भी कहा कि क्या वन दावा निस्तारण अधिकारी अभी तक दावों पर आदेश जारी कर रहे हैं। 

उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को उत्तर प्रदेश सरकार की खिंचाई की और कहा कि मिर्जापुर जिले के आरक्षित वन क्षेत्र में उद्योगों एवं तीसरे पक्षों के दावों के गैर कानूनी निस्तारण के मुद्दे पर वह पिछले 26 साल से ‘‘सो’’ रही थी। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने ऐसे दावों को खारिज करने के लिए एक पक्षीय निर्णय देने से इंकार कर दिया और कहा कि उद्योगों ने इन क्षेत्रों में हो सकता है कि करोड़ों रुपये निवेश कर रखे हों। 

उप्र सरकार ने कहा कि वह चाहती है कि ऐसे सभी गैर कानूनी दावों के निस्तारण को खारिज किया जाए। वन दावा निस्तारण अधिकारी ने उच्चतम न्यायालय द्वारा तय की गयी 18 जुलाई 1994 की अंतिम सीमा के बाद इन दावों का निस्तारण किया था। न्यायालय ने कहा, ‘‘यह 1994 से चल रहा था और अब आप 26 साल के बाद आये हैं। आप 26 साल से सो रहे थे और अब आप हमसे सभी को हटाने के लिए कह रहे हैं।’’ 

पीठ ने कहा, ‘‘आप इन सालों के दौरान क्या कर रहे थे? क्या आपका इन वन अधिकारियों पर कोई अनुशासनात्मक नियन्त्रण नहीं है?’’ उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए सालीसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष न्यायालय से कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने 1986 में दावों के निस्तारण के लिए 18 जुलाई 1994 को अंतिम तिथि निर्धारित की थी। किंतु यह काम अभी तक चल रहा है। 

मेहता ने कहा कि कुछ मामले ऐसे भी हुए जिनमें उन लोगों के पक्ष में दावों का निस्तारण किया गया जो राज्य के निवासी ही नहीं थे। कुछ मामलों में ऐसे भूखंड पर दावों का निस्तारण किया गया जिनके लिए पहले ही निस्तारण कर दिया गया था। पीठ ने अगले सप्ताह तक उन लोगों एवं उद्योगों सहित उन प्रतिष्ठानों की सूची मांगी है जिनके पक्ष में दावों का निस्तारण किया गया। पीठ ने कहा, ‘‘हम एकपक्षीय आदेश नहीं दे सकते। हम आवंटन को निष्प्रभावी घोषित करे, इससे पहले हम उन्हें सुनना चाहते हैं।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘वह एनटीपीसी, उप्र राज्य बिजली बोर्ड एवं अन्य हैं। हम उन्हें यूं ही नहीं हटा सकते जो वहां 20 साल से अधिक समय से हैं।’’ उसने कहा, ‘‘करोड़ों रूपये शामिल हैं क्योंकि विभिन्न उद्योगों ने वहां निवेश कर रखा है। आप अगले सप्ताह तक उन सभी दावाकर्ताओं की सूची सौंपिए जिन्हें 1994 के बाद वन क्षेत्र में भूमि दी गयी।’’ पीठ ने राज्य सरकार से यह पता लगाने के लिए भी कहा कि क्या वन दावा निस्तारण अधिकारी अभी तक दावों पर आदेश जारी कर रहे हैं। 

उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने आवेदन में वन दावा निस्तारण अधिकारी एवं अतिरिक्त जिला न्यायाधीश द्वारा 18 जुलाई 1994 के बाद से पारित किए गए ऐसे सभी आदेशों को ‘अमान्य एवं निष्प्रभावी’ घोषित करने का आदेश दिया था।

Web Title: Illegal forest land claims SC says UP govt sleeping for 26 years

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