'अगर आपके पास बहुमत, तो फिर सत्र की क्या आवश्यकता', राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से पूछे 6 सवाल
By धीरेंद्र जैन | Published: July 25, 2020 09:42 PM2020-07-25T21:42:03+5:302020-07-25T21:52:51+5:30
राज्यपाल के निर्णय से बौखलाए मुख्यमंत्री गहलोत ने राजभवन में विधायकों के साथ धरना देते हुए पत्रकारों से कहा कि यदि राजभवन का घेराव करने को जनता आ गई तो वे कुछ नहीं कर पाएंगे। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री ने इस बयान को लेकर उन्हें पत्र लिखा और उनके समक्ष 6 प्रश्न रखते हुए सत्र न बुलाने को जायज ठहराया।
जयपुर: राजस्थान में सिंयासी उठापटक थमने का नाम ही नहीं ले रही है। राजस्थान हाईकोर्ट से राजस्थान सरकार को मिली हार के बाद उन्होंने विधानसभा सत्र बुलाकर बहुमत साबित करने और बागी विधायकों को अयोग्य करार देने का दाव चलना चाहा था, लेकिन राज्यपाल ने सत्र बुलाने इंकार कर गहलोत सरकार के मंसूबों पर पानी फेर दिया।
राज्यपाल के निर्णय से बौखलाए मुख्यमंत्री गहलोत ने राजभवन में विधायकों के साथ धरना देते हुए पत्रकारों से कहा कि यदि राजभवन का घेराव करने को जनता आ गई तो वे कुछ नहीं कर पाएंगे। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री ने इस बयान को लेकर उन्हें पत्र लिखा और उनके समक्ष 6 प्रश्न रखते हुए सत्र न बुलाने को जायज ठहराया।
प्रदेश सरकार के सख्त रवैये पर निशाना साधते हुए राज्यपाल ने कहा कि संवैधानिक मर्यादा से ऊपर कोई नहीं होता। किसी भी तरह के दबाव की राजनीति नहीं होनी चाहिए। जब सरकार के पास बहुमत है तो सत्र बुलाने की क्या जरूरत है? गहलोत सरकार ने 23 जुलाई को शार्ट नोटिस के साथ सत्र बुलाने की मांग की। विधि विशेषज्ञों से इसकी जांच करवाई गई तो ये 6 प्रश्न ॉइंट्स में कमियां पाई गईं। जो कि राजभवन द्वारा मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में बताई गई हैं, जो इस प्रकार हैं -
1. शार्ट नोटिस पर सत्र बुलाने का न तो कोई कारण है और न ही एजेंडा। जबकि सामान्य प्रक्रिया में सत्र बुलाने हेतु 21 दिन का नोटिस देना आवश्यक है।
2. सत्र किस दिनांक को बुलाना है इसका ना कैबिनेट नोट में उल्लेख था और न ही कैबिनेट ने अनुमोदन किया।
3. प्रदेश सरकार को सभी विधायकों की स्वतंत्रता और उनकी स्वतंत्र आवाजाही भी तय करने के निर्देश दिए हैं।
4. कुछ विधायकों की सदस्यता के मामलों की सुनवाई हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जारी है। इस बारे में भी सरकार को नोटिस लेने के निर्देश दिए हैं। कोरोना संक्रमण के बीच सत्र कैसे बुलाना है, इसका भी विवरण देने को कहा है।
5. प्रत्येक काम के लिए संवैधानिक मर्यादा और नियम-प्रावधानों के अनुरूप ही कार्यवाही हो।
6. यदि प्रदेश सरकार के पास बहुमत है तो विश्वास मत के लिए सत्र बुलाने का क्या अर्थ है?
कैबिनेट की सलाह के बावजूद राज्यपाल द्वारा विधानसभा का सत्र नहीं बुलाने को लेकर संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि कैबिनेट की सिफारिश के बाद राज्यपाल को सत्र बुलाना ही होता है। संविधान अनुसार यदि कैबिनेट सत्र बुलाने की दूसरी बार मांग करती है तो, राज्यपाल को मानना पड़ता है। संविधान के अनुच्छेद-174 के अनुसार राज्य कैबिनेट की सिफारिश पर राज्यपाल सत्र बुलाते हैं। इसके लिए वे संवैधानिक तौर पर इनकार नहीं कर सकते।
राज्यपाल कोरोना की वजह से सत्र दो-तीन हफ्ते बाद बुलाए जाने की केवल सलाह दे सकते हैं अन्यथा राज्य सरकार राष्ट्रपति से मदद मांग सकती है।