कवि, अनुवादक और संपादक सुरेश सलिल का निधन, सोशल मीडिया पर लोगों ने किया याद

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 23, 2023 08:56 PM2023-02-23T20:56:59+5:302023-02-23T21:55:05+5:30

गणेश शंकर विद्यार्थी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर अनेक प्रकाशनों के अतिरिक्त एक कवि संग्रह 'खुले में खड़े होकर' प्रकाशित हुआ है। बच्चों व किशोरों के लिए भी कई किताबें प्रकाशित की हैं।

Hindi Writer Suresh Salil death was known for editing Ganesh Shankar Vidyarthi collected works | कवि, अनुवादक और संपादक सुरेश सलिल का निधन, सोशल मीडिया पर लोगों ने किया याद

'गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास' कविता संग्रह है।

Highlights 'मेरा ठिकाना क्या पूछो हो' गजल संग्रह है। 6 मौलिक कविता संग्रहों के अलावा कई काव्य अनुवाद प्रकाशित हैं। 'गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास' कविता संग्रह है।

नई दिल्लीः कवि, अनुवादक और सम्पादक सुरेश सलिल का निधन हो गया। उत्तर प्रदेश के उन्नाव के रहने वाले सलिल ने कई रचनाएं की थीं। सलिल का जन्म 19 जून 1942 को हुआ था। 81 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। 22 फरवरी 2023 को अलविदा कह दिया। कवि, आलोचक और साहित्यिक इतिहास के गहन अध्येता थे।

उन्नाव में जन्मे सुरेश सलिल को साहित्यिक अभिरुचि अपने घर में पिता की वजह से मिली। घर पर ही बचपन में उन्होंने ‘प्रताप’ सरीखे पत्र पढ़े और गणेश शंकर विद्यार्थी के नाम से परिचित हुए, जिनकी रचनावली सम्पादित करने का भगीरथ काम आगे चलकर किया।

कुछ किताबें बरसों के इंतज़ार और मेहनत के बाद प्रकाशित होती हैं, पाठकों के हाथ में पहुँचती हैं। मगर ‘गणेश शंकर विद्यार्थी रचनावली’ के लिए तो सुरेश सलिल ने अपने जीवन का लगभग तीन दशक खपाया था। गणेश शंकर विद्यार्थी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर अनेक प्रकाशनों के अतिरिक्त एक कवि संग्रह 'खुले में खड़े होकर' प्रकाशित हुआ है।

बच्चों व किशोरों के लिए भी इन्होंने कई किताबें प्रकाशित की हैं। 'मेरा ठिकाना क्या पूछो हो' गजल संग्रह है। कई गजल और कविता संकलन तथा अन्य कालजयी रचनाएं छप चुकी हैं। सलिल की 6 मौलिक कविता संग्रहों के अलावा कई काव्य अनुवाद प्रकाशित हैं। हाल ही में संपादित 'कारवाने गजल' सराहनीय है। 'गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास' कविता संग्रह है।

सोशल मीडिया पर कई लोगों ने याद किया। सुधीर विद्यार्थी ने कुछ इस तरह से याद किया। अलविदा साथी सुरेश सलिल! पश्चिम बंगाल की ज़मीन पर एक पुरानी तस्वीर में होठों पर पान की रंगत। दिल्ली में रहकर भी कनपुरियापन को बचाए रखने वाले इस साथी का मैं हरदम कायल बना रहा। बहुत अकेलापन लगेगा दोस्त!

 37 बरसों का साथ था। तमाम स्मृतियाँ उमड़-घुमड़ रही हैं, लेकिन अभी लिखने की मन:स्थिति नहीं है। सलिल जी पिछले कुछ समय से लगातार अस्वस्थ चल रहे थे। हाल ही में पत्नी के निधन के बाद वह बहुत अकेले हो गये थे। मेरे पहले संकलन 'सात भाइयों के बीच चम्पा' की भूमिका सलिल जी ने ही लिखी थी। 1995 में राहुल जन्मशती समारोह के समापन के अवसर पर तीन दिनों तक गोरखपुर में साथ थे।

विष्णु चंद्र शर्मा, हरिपाल त्यागी, कृषक जी आदि सादतपुर के कई साथी भी थे। परिकल्पना के लिए उन्होंने हांस माग्नुस एंसेंत्सबर्गर की कविताओं के अनुवाद का एक शानदार चयन भी तैयार किया था। ख़राब स्वास्थ्य के बावजूद पिछले साल उन्होंने कई वायदे किये थे जो अब कभी पूरे नहीं होंगे।

सलिल जी ने नेरूदा, नाज़िम हिक्मत, एंत्सेंसबर्गर, मिरोस्लाव होलुब सहित दुनिया के कई प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का विपुल मात्रा में अनुवाद किया । वे हिन्दी के अग्रणी वाम कवि थे। यह अफ़सोस की बात है कि उनकी कविताओं पर उतनी गहन-गंभीर चर्चा नहीं हुई, जितनी होनी चाहिए थी।

गणेश शंकर विद्यार्थी के जीवन और कृतित्व पर एक वृहद पुस्तक लिखने के साथ ही उन्होंने चार खण्डों में उनकी रचनाओं का संचयन भी तैयार किया था। कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी नेता शिवकुमार मिश्र के संस्मरणों का श्रमसाध्य सम्पादन भी किया।

सत्तर के दशक में क्रान्तिकारी वाम धारा के जिन ओजस्वी युवा कवियों- लेखकों-पत्रकारों के मण्डल की दिल्ली में धूम थी उसमें आनन्द स्वरूप वर्मा, मंगलेश डबराल, पंकज सिंह, अजय सिंह, त्रिनेत्र जोशी, प्रभाती नौटियाल आदि के साथ सुरेश सलिल भी शामिल थे। मंगलेश, पंकज, त्रिनेत्र पहले ही विदा ले चुके।

प्यारे कामरेड सुरेश सलिल को क्रांतिकारी सलाम! पचास के दशक में जब सुरेश सलिल उन्नाव से कानपुर आए, तो उनकी साहित्यिक समझ का दायरा और विस्तृत हुआ। एक ओर जहाँ वे नारायण प्रसाद अरोड़ा और क्रांतिकारी सुरेश चंद्र भट्टाचार्य जैसे लोगों के निकट सम्पर्क में आए। वहीं वे गणेश शंकर विद्यार्थी के छोटे बेटे ओंकार शंकर विद्यार्थी के भी आत्मीय बने।

कानपुर में ही वे असित रंजन चक्रवर्ती से जुड़े, जिन्होंने उन्हें गणेश शंकर विद्यार्थी पर काम करने की प्रेरणा दी। साठ के दशक के आख़िर में शुरू हुए नक्सलबाड़ी आंदोलन से भी वे गहरे प्रभावित हुए। इसी दौरान मंगलेश डबराल, त्रिनेत्र जोशी आदि के साथ उन्होंने हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ (एचएसआरए) के दस्तावेज़ों का संपादन किया, जो पुस्तक रूप में "मुक्ति" शीर्षक से प्रकाशित हुआ।

सत्तर के दशक में सुरेश सलिल ने बच्चों के लिए गणेश शंकर विद्यार्थी के जीवन पर आधारित एक पुस्तक लिखी। जिसे पढ़कर ‘विशाल भारत’ के यशस्वी सम्पादक बनारसी दास चतुर्वेदी ने उनकी सराहना करते हुए उन्हें पत्र लिखा।

Web Title: Hindi Writer Suresh Salil death was known for editing Ganesh Shankar Vidyarthi collected works

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