'अविकसित राज्यों की भाषा है हिन्दी, ये तमिलों को 'शूद्र' बना देगी', हिंदी को लेकर डीएमके नेता ने दिया विवादित बयान
By रुस्तम राणा | Published: June 6, 2022 05:57 PM2022-06-06T17:57:08+5:302022-06-06T18:11:41+5:30
हिंदी का विरोध करने के लिए आयोजित एक बैठक में एलंगोवन ने कहा, "हिंदी हमारा कोई भला नहीं करेगी। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल सहित विकसित राज्यों में हिंदी मातृभाषा नहीं है।
चेन्नई: तमिल बनाम हिंदी की बहस के बीच द्रमुक पार्टी के एक नेता हिंदी को लेकर विवादित बयान दिया है। उन्होंने हिंदी को अविकसित राज्यों की भाषा बताया है। साथ ही उन्होंने यह कहा है कि यह तमिलों को यह तमिलों को "शूद्रों" की स्थिति तक कम कर देगी। द्रमुक के राज्यसभा सदस्य टीकेएस एलंगोवन ने भी कहा है कि दक्षिणी राज्यों में हिंदी को लागू करना "मनु धर्म" को लागू करना है।
हिंदी का विरोध करने के लिए आयोजित एक बैठक में एलंगोवन ने कहा, "हिंदी हमारा कोई भला नहीं करेगी। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल सहित विकसित राज्यों में हिंदी मातृभाषा नहीं है।""उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान जैसे अविकसित राज्यों में हिंदी मातृभाषा है। फिर हमें हिंदी क्यों सीखनी चाहिए?"
उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर भी कटाक्ष किया, जो भारत में अंग्रेजी के विकल्प के रूप में हिंदी की वकालत करते रहे हैं। द्रमुक नेता ने कहा, "अमित शाह ने कहा था कि हिंदी एक राष्ट्रभाषा के रूप में इसे वैश्विक पहचान देगी। 'अनेकता में एकता' भारत की पहचान है। उन्होंने सवाल किया कि क्या अमित शाह भारतीय हैं? मुझे संदेह है।"
एलंगोवन ने कहा कि तमिल का गौरव 2,000 वर्ष पुराना है और तमिलों की संस्कृति हमेशा समानता का अभ्यास करना है, जिसमें लिंग भी शामिल है। उन्होंने कहा, "वे (बीजेपी) संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं और हिंदी के माध्यम से मनु धर्म को थोपने की कोशिश कर रहे हैं ... इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए ... अगर हमने किया, तो हम गुलाम, शूद्र होंगे।"
हालांकि बाद में उन्होंने सफाई देते हुए कहा, मैंने 'शूद्र' शब्द नहीं गढ़ा। तमिल समाज एक समतामूलक समाज है और दक्षिण में वर्ग अंतर का अभ्यास नहीं करता है। उत्तर से भाषा के प्रवेश के कारण, इसने हमें भी विभाजित कर दिया है। द्रविड़ आंदोलन के दौरान लोगों ने शूत्रों और ओबीसी के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।