Hindi Imposition Row: जानिए क्या है त्रि-भाषा फॉर्मूला?, आइए इस फॉर्मूले के बारे में जानें, आखिर विवाद क्यों

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 13, 2025 13:30 IST2025-03-13T13:25:18+5:302025-03-13T13:30:07+5:30

Hindi Imposition Row: एनईपी 2020 में प्रस्तावित त्रि-भाषा फॉर्मूला कहता है कि छात्रों को तीन भाषाएं सीखनी चाहिए, जिनमें से कम से कम दो भारत की मूल भाषा होनी चाहिए।

Hindi Imposition Row live Know what three-language formula center political controversy Tamil Nadu government mk stalin Center | Hindi Imposition Row: जानिए क्या है त्रि-भाषा फॉर्मूला?, आइए इस फॉर्मूले के बारे में जानें, आखिर विवाद क्यों

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HighlightsHindi Imposition Row: स्कूलों पर लागू होता है तथा राज्यों को बिना किसी दबाव के भाषाएं चुनने की छूट देता है।Hindi Imposition Row: घरेलू भाषा, मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा शिक्षा का माध्यम होनी चाहिए।Hindi Imposition Row: प्रधानमंत्री कार्यकाल में एनईपी 1986 में त्रि-भाषा फॉर्मूला की पुन: पुष्टि की गई थी।

Hindi Imposition Row: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में प्रस्तावित त्रि-भाषा फॉर्मूला द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार और केंद्र के बीच राजनीतिक विवाद का केंद्र बना हुआ है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि तमिलनाडु और केंद्र के बीच 'भाषा युद्ध' भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय शिक्षा नीति की आड़ में दक्षिणी राज्य पर 'हिंदी थोपने' की कोशिश कर रही है।

आइए इस फॉर्मूले के बारे में जानें:

क्या है तीन-भाषा फॉर्मूलाः एनईपी 2020 में प्रस्तावित त्रि-भाषा फॉर्मूला कहता है कि छात्रों को तीन भाषाएं सीखनी चाहिए, जिनमें से कम से कम दो भारत की मूल भाषा होनी चाहिए। यह फॉर्मूला सरकारी और निजी दोनों स्कूलों पर लागू होता है तथा राज्यों को बिना किसी दबाव के भाषाएं चुनने की छूट देता है।

किन कक्षाओं पर लागू होगा

एनईपी में कहा गया है कि कम से कम कक्षा पांच तक, लेकिन अधिमानतः कक्षा आठ और उससे आगे तक, घरेलू भाषा, मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा शिक्षा का माध्यम होनी चाहिए।

त्रि-भाषा फॉर्मूला का इतिहास

त्रि-भाषा फॉर्मूला सबसे पहले शिक्षा आयोग (1964-66) ने प्रस्तावित किया था, जिसे आधिकारिक तौर पर कोठारी आयोग के नाम से जाना जाता है। इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 1968 में औपचारिक रूप से अपनाया गया था। राजीव गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकाल में एनईपी 1986 में त्रि-भाषा फॉर्मूला की पुन: पुष्टि की गई थी।

1992 में नरसिंह राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने भाषायी विविधता और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए इसमें संशोधन किया था। इस फॉर्मूले में तीन भाषाएं शामिल थीं-मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा, आधिकारिक भाषा (अंग्रेजी सहित) और एक आधुनिक भारतीय या यूरोपीय भाषा।

एनईपी 2020 में इस फॉर्मूले को लेकर क्या कहा गया है

एनईपी 2020 में स्कूल स्तर से ही “बहुभाषावाद को प्रोत्साहित करने के लिए त्रि-भाषा फार्मूले को जल्द लागू किए जाने” का प्रस्ताव है। नीति दस्तावेज में कहा गया है कि “संवैधानिक प्रावधानों, लोगों, क्षेत्रों एवं संघ की आकांक्षाओं, बहुभाषावाद को प्रोत्साहित करने और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए” त्रि-भाषा फार्मूले का क्रियान्वयन जारी रहेगा।

क्या इस फॉर्मूले का उद्देश्य राज्यों पर कोई भाषा थोपना है -एनईपी 2020 में स्पष्ट किया गया है कि त्रि-भाषा फॉर्मूले में ज्यादा लचीलापन होगा और किसी भी राज्य पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी। नीति में कहा गया है कि राज्य, क्षेत्र और खुद छात्र, छात्रों द्वारा सीखी जाने वाली तीन भाषाओं को चुन सकते हैं, बशर्ते इनमें से कम से कम दो भारत की मूल भाषा हों।

विदेशी भाषाओं के बारे में क्या कहा गया है

एनईपी 2020 के मुताबिक, माध्यमिक स्तर के छात्र भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी के अलावा, कोरियाई, जापानी, फ्रेंच, जर्मन और स्पेनिश जैसी विदेशी भाषाएं भी सीख सकते हैं। अंग्रेजी, जो ज्यादातर स्कूलों में पढ़ाई का माध्यम है, उसे अब विदेशी भाषा माना जाएगा। इसके चलते अंग्रेजी पढ़ने वाले छात्रों को दो भारतीय भाषाएं चुननी होंगी।

तमिलनाडु क्यों कर रहा विरोध

तमिलनाडु लगातार त्रि-भाषा फॉर्मूले का विरोध करता आया है। 1937 में सी राजगोपालाचारी की अध्यक्षता वाली तत्कालीन मद्रास सरकार ने वहां के स्कूलों में हिंदी की पढ़ाई अनिवार्य कर दी थी। जस्टिस पार्टी और पेरियार जैसे द्रविड़ नेताओं ने बड़े पैमाने पर इस फैसले का विरोध किया था। 1940 में इस नीति को रद्द कर दिया गया, लेकिन हिंदी विरोधी भावनाएं बरकरार रहीं।

साल 1968 में जब त्रि-भाषा फॉर्मूला पेश किया गया था, तब तमिलनाडु ने इसे हिंदी को थोपने का प्रयास करार देते हुए इसका विरोध किया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरई के नेतृत्व में तमिलनाडु ने दो-भाषा नीति अपनाई थी, जिसके तहत केवल तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती थी। स्कूली शिक्षा समवर्ती विषय है, जिसके चलते राज्य इस फॉर्मूले को अपनाने से इनकार कर सकते हैं। तमिलनाडु एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसने कभी भी त्रि-भाषा फॉर्मूला लागू नहीं किया है। उसने हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं सहित भारतीय भाषाओं के बजाय अंग्रेजी को चुना है।

ताजा विवाद की वजह क्या है

तमिलनाडु के एनईपी 2020 के प्रमुख पहलुओं, खासतौर पर त्रि-भाषा फॉर्मूले को लागू करने से इनकार करने के कारण केंद्र ने राज्य को समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) के लिए दी जाने वाली केंद्रीय सहायता राशि की 573 करोड़ रुपये की पहली किस्त रोक दी है। नीति से जुड़े नियमों के अनुसार, सर्व शिक्षा अभियान के लिए वित्तपोषण हासिल करने के वास्ते राज्यों का एनईपी के दिशा-निर्देशों पर अमल करना अनिवार्य है।

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