हिमाचल प्रदेश उपचुनावः धर्मशाला में बीजेपी सीट बचाने और कांग्रेस छीनने की कोशिश में जुटी
By बलवंत तक्षक | Published: October 18, 2019 06:02 AM2019-10-18T06:02:36+5:302019-10-18T06:02:36+5:30
कांगडा लोकसभा क्षेत्र से किशन कपूर के भाजपा के टिकट पर सांसद बन जाने की वजह से धर्मशाला विधानसभा क्षेत्र के लिए उप चुनाव करवाया जा रहा है. धर्मशाला उप चुनाव में भले ही दोनों प्रमुख पार्टियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है.
हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला क्षेत्र में हो रहे उप चुनाव में भाजपा जहां अपनी सीट बचाने की कोशिशों में जुटी है, वहीं कांग्रेस सत्तारूढ़ भाजपा से यह सीट छीनने की फिराक में है. भाजपा के विशाल नैहरिया और कांग्रेस के विजय इंद्र कर्ण के बीच यहां सीधा मुकाबला है. आजाद उम्मीदवार राकेश चौधरी इस लड़ाई को तिकोना बनाने की कोशिशों में जुटे हैं.
कांगडा लोकसभा क्षेत्र से किशन कपूर के भाजपा के टिकट पर सांसद बन जाने की वजह से धर्मशाला विधानसभा क्षेत्र के लिए उप चुनाव करवाया जा रहा है. धर्मशाला उप चुनाव में भले ही दोनों प्रमुख पार्टियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है, लेकिन कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार कर्ण को बिना स्टार प्रचारकों के ही युद्ध लड़ना पड़ रहा है.
पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और पूर्व मंत्री जी.एस. बाली बीमार होने की वजह से चुनाव प्रचार के लिए मैदान में नहीं आ पा रहे हैं. इस बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर को कांग्रेस के 14 पार्षदों ने जरूर भरोसा दिलाया है कि उप चुनाव में कर्ण को विजय दिलवाएंगे. कांग्रेस आलाकमान ने राठौर की स्टार प्रचारक के तौर पर हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए ड्यूटी लगाई थी, लेकिन उन्होंने अपना सारा ध्यान धर्मशाला और पच्छाद सीटों पर हो रहे उप चुनावों पर केंद्रित किया हुआ है.
उधर, भाजपा की जीत का दावा करते हुए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती ने कहा है कि धर्मशाला में तिकोने मुकाबले की कोई संभावना नहीं है. सत्ती का दावा है कि भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़ रहे राकेश चौधरी कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाएंगे. इस दौरान आजाद प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ चुके कमल चौधरी अपने समर्थकों सहित नैहरिया के पक्ष में भाजपा में शामिल हो गए.
कांग्रेस के अलावा धर्मशाला के विकास के मुद्दे पर भाजपा के बागी उम्मीदवार राकेश चौधरी भी भाजपा को घेर रहे हैं. बहरहाल, भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता उप चुनाव जीतने के लिए गांव-गांव जा रहे हैं. लोग सब पार्टियों की सुन रहे हैं.
समर्थन का वादा भी कर रहे हैं. यही वजह है कि दोनों ही पार्टियां हवा का सही रुख नहीं भांप पा रही हैं. सब की सुनने वाले 21 अक्टूबर को मतदान के दिन अपने मन की करेंगे और 24 अक्टूबर को ही साफ हो पाएगा कि उन्होंने किस पार्टी के प्रति अपना भरोसा जताया है.