दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल सरकार से गंभीर रोगियों की समस्याओं को देखने के लिए समिति बनाने को कहा
By भाषा | Published: July 9, 2020 05:28 AM2020-07-09T05:28:42+5:302020-07-09T05:28:42+5:30
रामेश्वर दत्त कौशिक और तीन अन्य मरीजों की याचिका में कहा गया कि वे किडनी संबंधी गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं और उन्हें सप्ताह में कम से कम तीन बार चार-चार घंटे डायलिसिस की जरूरत होती है और साथ ही नियमित रूप से अनेक जांच करानी होती हैं।
नई दिल्लीःदिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को दिल्ली सरकार से एक निजी अस्पताल में गंभीर रोगियों के सामने आ रही समस्याओं को देखने के लिए अधिकारियों की समिति बनाने को कहा। अदालत ने यहां वसंत कुंज स्थित फोर्टिस इंस्टीट्यूट ऑफ रीनल साइंस एंड ट्रांसप्लांटेशन को कोविड-19 देखभाल केंद्र बनाये जाने के बाद से इसमें उपचार नहीं करा पा रहे रोगियों की शिकायत पर संज्ञान लेते हुए यह निर्देश दिया।
वीडियो कॉन्फ्रेंस से सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति नवीन चावला ने कहा कि दिल्ली सरकार की समिति निजी अस्पताल का निरीक्षण करेगी और इसके अधिकारियों से भी बातचीत करने के बाद 10 दिन के अंदर अदालत में रिपोर्ट जमा करेगी। उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग के नौ जून के नोटिस को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई 21 जुलाई को करना तय किया। इस नोटिस में अस्पताल में शत-प्रतिशत सुविधाओं और बिस्तरों को कोविड-19 के उपचार के लिए चिहि्नत करने की घोषणा जारी की गयी थी।
रामेश्वर दत्त कौशिक और तीन अन्य मरीजों की याचिका में कहा गया कि वे किडनी संबंधी गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं और उन्हें सप्ताह में कम से कम तीन बार चार-चार घंटे डायलिसिस की जरूरत होती है और साथ ही नियमित रूप से अनेक जांच करानी होती हैं। रोगियों की ओर से वकील अर्जुन कक्कड़ तथा करण कक्कड़ ने दावा किया कि फोर्टिस अस्पताल में उपचार करा रहे गंभीर रोगियों को सरकार के आदेश से बहुत परेशानी हुई है जिन्हें नियमित आधार पर जीवन रक्षक पद्धतियों और स्वास्थ्य सेवाओं, मसलन रेडियो थेरेपी, डायलिसिस आदि की जरूरत होती है।
अस्पतालों में 20 प्रतिशत बिस्तर कोरोना मरीजों के लिए
दिल्ली सरकार की ओर से वकील अनुपम श्रीवास्तव ने कहा कि सरकार ने पहले ही निजी अस्पतालों में 20 प्रतिशत बिस्तर कोविड-19 रोगियों के लिए सुरक्षित रखने का निर्देश दिया था। हालांकि, उन्होंने कहा कि इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी जिसने सरकार को इस मुद्दे पर विचार करने को कहा। श्रीवास्तव ने कहा कि इस पर विचार करने के बाद यह नीति बनाई गयी कि या तो कोई अस्पताल शत प्रतिशत कोविड-19 मरीजों के लिए होना चाहिए या उसमें एक भी कोरोना वायरस संक्रमित का इलाज नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह नीतिगत निर्णय है और इसे अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। अस्पताल की ओर से वकील अर्जुन दीवान ने कहा कि गंभीर बीमार रोगियों को डायलिसिस के लिए ग्रीन जोन क्षेत्र में अलग सुविधा प्रदान की जा रही है।