हरियाणा: हुड्डा-शैलजा की जोड़ी ने 45 दिन में बदल दिया खेल, तंवर की बगावत से उबारा, बीजेपी को बहुमत से रोका
By बलवंत तक्षक | Published: October 25, 2019 09:23 AM2019-10-25T09:23:17+5:302019-10-25T09:25:21+5:30
हुड्डा जाट हैं और शैलजा अनुसूचित जाति से हैं. राज्य में जाट करीब 27 फीसदी और अनुसूचित जाति के मतदाताओं की तादाद करीब 23 फीसदी है. अगर हुड्डा और सैलजा को जोडी को थोडा ज्यादा वक्त मिल जाता तो कांग्रेस का प्रदर्शन और बेहतर हो सकता था.
हरियाणा विधानसभा चुनावों में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा की जोड़ी को अपना जादू दिखाने के लिए ज्यादा समय नहीं मिल पाया. कांग्रेस ने 90 में से 31 सीटों पर जीत दर्ज की है. पिछले चुनावों में कांग्रेस को केवल 15 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस को इस बार पहले की तुलना में 16 सीटें ज्यादा मिली हैं. लोकसभा चुनावों में कांग्रेस हरियाणा में सभी दस सीटें हार गई थीं. चुनाव अशोक तंवर के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए थे. राज्य में कांग्रेस की कमान करीब पांच साल आठ महीने तक तंवर के हाथ में रहीं.
कांग्रेस वर्ष 2014 के चुनावों में दस में से नौ सीटों पर हारी थी. इसके बाद विधानसभा चुनावों में हार कर सत्ता से बाहर हो गई. इसके बाद नगर निगम चुनावों में भी कांग्रेस को हार का मुंह देखना पडा. जींद उप चुनाव में कांग्रेस तीसरे स्थान पर पहुंच गई. इसके बाद सात महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस सभी दस सीटें हार गईं. इसके बावजूद तंवर ने प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद से इस्तीफा नहीं दिया.
इस दौरान तंवर के खाते में उपलिब्धयां कम और नाकामियां ज्यादा रहीं। राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद जब पार्टी की कमान सोनिया गांधी के हाथ में आई, तब तंवर को हटा कर पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल का नेता पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को बनाया गया और चुनाव प्रबंधन समिति के चेयरमैन की जिम्मेदारी भी दे दी गई. लेकिन यह फैसला विधानसभा चुनाव से ठीक 45 दिन पहले किया गया.
हुड्डा जाट हैं और शैलजा अनुसूचित जाति से हैं. राज्य में जाट करीब 27 फीसदी और अनुसूचित जाति के मतदाताओं की तादाद करीब 23 फीसदी है. अगर हुड्डा और शैलजा को जोडी को थोडा ज्यादा वक्त मिल जाता तो कांग्रेस का प्रदर्शन और बेहतर हो सकता था. लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के सभी दस सीटें हार जाने के फौरन बाद हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन हो जाता तो हुड्डा और सैलजा को पार्टी को फिर से खड़ा कर पाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता. इस बीच पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद अशोक तंवर कांग्रेस उम्मीदवारों की मदद करने के बजाए कांग्रेस छोडने का ऐलान कर जननायक जनता पार्टी (जजपा) के उम्मीदवारों को समर्थन की घोषणा कर पार्टी को लगातार नुकसान पहुंचाते रहे.
इस दौरान राज्य का दौरा कर तंवर कांग्रेस को बच्चा खाने वाली पार्टी करार देते रहे. हरियाणा में भाजपा ने पूरी तरह एकजुट हो कर चुनाव लडा और केंद्रीय नेतृत्व ने भी पार्टी को फिर से सत्ता में लाने के लिए ताबड़तोड़ रैलियां कीं, जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस बिखरी नजर आईं और पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी बीमार होने के कारण कांग्रेस उम्मीदवारों की मदद के लिए एक बार भी हरियाणा के दौरे पर नहीं आ सकीं. कांग्रेस उम्मीदवारों की मदद के लिए हुड्डा और सैलजा जनसभाएं करते रहे. हुड्डा और सैलजा की जोड़ी कांग्रेस को तो सत्ता में नहीं ला पाई, लेकिन भाजपा को बहुमत हासिल करने से जरूर रोक दिया.