हरियाणा में कांग्रेस की टिकट पाने के लिए मची है होड़, ये है खास वजह
By शीलेष शर्मा | Published: September 18, 2019 10:53 AM2019-09-18T10:53:37+5:302019-09-18T10:58:45+5:30
हरियाणा विधानसभा चुनावः 90 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस के पास 2014 के परिणामों के अनुसार मात्र 15 विधायकों का समर्थन था और उसे राज्य में 20.6 फीसदी वोट मिले थे जबकि भाजपा 47 सीटें जीतकर 33.2 फीसदी वोट बंटोरने में कामयाब हुई थी।
हरियाणा में अशोक तंवर के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए हाशिये पर चली गयी भूपेंद्र सिंह हुडडा और कुमारी सैलजा के आते ही सरगर्मिया तेज हो गई है. आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कल तक जो कांग्रेस उम्मीदवारों को खोज रही थी आज उम्मीदवारी के लिए कांग्रेस नेतृत्व पर लगातार दबाव बना हुआ है. गौरतलब है कि अगले कुछ दिनों में हरियाणा में विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हो सकती है क्योंकि इसका कार्यकाल अक्टूबर 2019 में समाप्त हो रहा है.
90 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस के पास 2014 के परिणामों के अनुसार मात्र 15 विधायकों का समर्थन था और उसे राज्य में 20.6 फीसदी वोट मिले थे जबकि भाजपा 47 सीटें जीतकर 33.2 फीसदी वोट बंटोरने में कामयाब हुई थी, राष्ट्रीय लोकदल को 19 सीटें प्राप्त हुई थी और 24.1 फीसदी मत प्राप्त हुए थे. हरियाणा जनहित कांग्रेस को 2 सीटें मिले और महज 3.6 मतों पर उसे संतोष करना पड़ा था.
2019 के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के विरुद्ध होगा क्योंकि राष्ट्रीय लोकदल खेमों में बंट चुका है. यदि जातीय समीकरण की बात करें तो कांग्रेस, दलित, और जाट मतदाताओं अपना ध्यान केंद्रित कर रही है, जबकि भाजपा हिन्दू वोटों पर विशेष रुप से पंजाबी वोटों पर निगाह लगाए बैठी है.
भाजपा ने 2014 का चुनाव जीतने के बाद जाटों के प्रभाव को खत्म करने के लिए मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री का पद सौंपा था.
इधर कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने जैसे ही उम्मीदवारी के दावेदारों से आवेदन मांगने का काम शुरु किया, चंडीगढ़ से दिल्ली तक टिकट मांगने वालों की लंबी कतारे लगनी शुरू हो गई है, कांग्रेस मुख्यालय के बाहर हरियाणा की गाड़िया हर सुबह देखी जा सकती है. दिलचस्प पहलू तो यह है कि टिकट मांगने वालों में ऐसे लोग भी शामिल है जो अभी तक कांग्रेस के प्राथमिक सदस्य भी नहीं है.
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार कांग्रेस ने सभी वर्तमान विधायकों को फिर से मैदान में उतारने का मन बनाया है यह भी संकेत मिले है कि वे उम्मीदवार जो लोकसभा का चुनाव हार चुके है को भी कांग्रेस इस मैदान में उतार सकती है.
भूपेंद्र सिंह हुडडा और कुमारी सैलजा की जोड़ी के कारण प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर के खेमें में खासी बेचैनी है. क्योंकि इन दोनों नेताओं के रहते उनके समर्थकों को भय सता रहा है कि उन्हें उम्मीदवारी का मौका मिलेगा या नहीं, गौरतलब है कि उम्मीदवारों के बयन के लिए जो समिति मधुसूदन मिस्त्री की अध्यक्षता में बनी है उसमें दीपादास मुंशी, गुलाम नबी आजाद, के अलावा सैलजा और हुड्डा के नाम है. जिससे हुडडा और सैलजा ही इस समिति पर हावी रहेगें तथा उम्मीदवारों का चयन उनकी मर्जी से होगा.