गुजरातः शरद पवार के बयानों के अर्थ-भावार्थ, बीजेपी को थोड़ी राहत देने वाले हैं?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: January 31, 2019 08:10 AM2019-01-31T08:10:15+5:302019-01-31T10:49:44+5:30
बीजेपी को रोकने के मुद्दे पर सैद्धान्तिक रूप से शरद पवार सहमत नजर आए, वे बोले- आज देश की जो स्थिति है, उसे देखते हुए अगले चुनाव के लिए एकसाथ मिलकर काम करने की कोशिश की जा रही है. इसकी रणनीति पर चर्चा शुरू है.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार ने अहमदाबाद में प्रेस से जो कुछ कहा उसके अर्थ-भावार्थ पर नजर डालें तो ये कुछ कारणों से बीजेपी को थोड़ी-सी राहत देने वाले हैं? शरद पवार के इन बयानों से एक बात तो साफ हो गई है कि केन्द्र में बीजेपी को रोकने के मुद्दे पर तो सभी एकमत हैं, लेकिन लोस चुनाव से पहले विपक्ष की संपूर्ण एकता संभव नहीं है. हर दल को अलग-अलग क्षेत्रों में उस क्षेत्र की सियासी समीकरण के मद्देनजर अपने-अपने गठबंधन बनाने होंगे. मतलब, एक राष्ट्रीय महागठबंधन संभव नहीं है, सभी को प्रादेशिक आधार पर गठबंधन बनाने होंगे.
इससे बीजेपी को थोड़ा-सा फायदा इसलिए होगा कि जहां एक से ज्यादा बीजेपी विरोधी गठबंधन होंगे, वहां बीजेपी विरोधी वोटों का बिखराव होगा और जहां कांटे की टक्कर होगी वहां बीजेपी जीत सकती है. जैसे यूपी में सपा-बसपा का बीजेपी विरोधी गठबंधन तो बन गया, लेकिन कांग्रेस को इस गठबंधन से दूर रखा गया है, लिहाजा मजबूरन कांग्रेस को भी अपना गठबंधन बनाना होगा और चुनाव लड़ना होगा. जाहिर है, इससे बीजेपी को उन सीटों पर फायदा होगा जहां वह जीतने के करीब होगी.
दरअसल, दो प्रमुख कारणों से विपक्ष की संपूर्ण एकता संभव नहीं हो पा रही है, एक- सियासी महत्वकांक्षा, कर्नाटक जैसी किसी विषम सियासी परिस्थिति में ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव जैसे किसी नेता को भी पीएम बनने का अवसर मिल सकता है, दो- यदि महागठबंधन बनता है तो विभिन्न क्षेत्रों में कांग्रेस को फिर से मजबूत होने का मौका मिल जाएगा, जबकि गठबंधन के कारण चुनाव लड़ने के लिए पहले से ही कम क्षेत्रीय दलों की सीटें, और भी कम हो जाएंगी, जैसे यूपी में सपा-बसपा, प्रत्येक पहले ही 40 से कम सीटों पर चुनाव लड़ पा रही हैं, यदि कांग्रेस भी गठबंधन में शामिल हुई तो सपा-बसपा, प्रत्येक की सीटें 30 के आसपास हो जाएंगी. ऐसी हालत में सपा-बसपा लोकसभा में ताकत क्या दिखाएंगी?
हालांकि, बीजेपी को रोकने के मुद्दे पर सैद्धान्तिक रूप से शरद पवार सहमत नजर आए, वे बोले- आज देश की जो स्थिति है, उसे देखते हुए अगले चुनाव के लिए एकसाथ मिलकर काम करने की कोशिश की जा रही है. इसकी रणनीति पर चर्चा शुरू है.
लेकिन, वे कांग्रेस के महागठबंधन के बजाय ममता बनर्जी के तीसरे मोर्चे की धारणा के ज्यादा करीब नजर आए, उनके अनुसार- साथ मिलकर चलने की शुरुआत तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने कर दी है. बीजेपी को हराने के लिए क्या किया जा सकता है? के सवाल पर पवार बोले- आंध्र प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी चंद्रबाबू नायडू की है, वहां कांग्रेस, एनसीपी मिलकर उनको विकल्प दे रही हैं. बाकी अन्य पार्टियां मिलकर उन्हें सहयोग देंगी. ठीक वैसे ही उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश यादव को सहयोग देंगे, तो वहां बदलाव होगा. जिस राज्य में जिस पार्टी का वर्चस्व है, वहां हम सहयोग देंगे.
पीएम नरेन्द्र मोदी के गृहराज्य गुजरात के बारे में उनका कहना था कि- सभी पार्टियों को सहयोग देना होगा और इस काम के लिए शंकर सिंह वाघेला को अच्छा नेता बताते हुए उनका कहना था कि गैर-बीजेपी पार्टियों को जोड़ने के लिए ही उन्हें एनसीपी में शामिल किया गया है. याद रहे, शंकर सिंह वाघेला को एनसीपी ने राष्ट्रीय महासचिव बनाया है.
पवार के जवाबों से यह तो साफ है कि कांग्रेस के नेतृत्व में महागठबंधन की संभावनाएं कुछ खास नहीं है, परन्तु करीब आधा दर्जन ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस और बीजेपी में सीधी टक्कर है और यह बीजेपी के लिए परेशानी की बात इसलिए है कि इन राज्यों से 2014 में बीजेपी ने अधिकतम सीटें जीती थी. मतलब, इन राज्यों में किसी गठबंधन की जरूरत नहीं है और ये राज्य 2019 में बीजेपी को एकल बहुमत- 272 लोस सीट, से रोकने के लिए पर्याप्त हैं.
इस संबंध में पवार का भी कहना था कि- राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, गुजरात जैसे राज्य में कांग्रेस बड़ी पार्टी है, तो उनके साथ गठबंधन की बात हो रही है. सियासी सारांश यही है कि क्षेत्रीय दल केन्द्र से बीजेपी को तो हटाना चाहते हैं, परन्तु कांग्रेस को भी आगे बढ़ने देना नही चाहते हैं, और इसीलिए राष्ट्रीय महागठबंधन के बजाय प्रादेशिक गठबंधन की धारणा जोर पकड़ रही है!