विलुप्त होती ग्रेट इंडियन बस्टर्ड प्रजाति, जानिए शुतुरमुर्ग की तरह दिखने वाले इस खास पक्षी के बारे में
By अनुभा जैन | Published: July 18, 2022 03:21 PM2022-07-18T15:21:53+5:302022-07-18T15:21:53+5:30
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्सर्वेशन ऑफ नेचर की रिपोर्ट के अनुसार बस्टर्ड की संख्या में पिछले कुछ वर्षों में भारी गिरावट आई है। 1969 में जहां इनकी संख्या 1260 के करीब थी वो अभी मौजूदा समय में 150 से अधिक नहीं है।
शुतुरमुर्ग की तरह दिखती लंबी गर्दन, लंबे पतले पैरों के साथ महज 1 मीटर लंबे पर भारी भरकम 10 से 15 किलो शरीर वाले इस पक्षी को ग्रेट इंडियन बस्टर्ड या लोकल भाषा में गोदावन के नाम से लोग जानते हैं। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत विलुप्ती के कगार पर घोषित बस्टर्ड प्रजाति को आज बचाने के अथक प्रयास किये जा रहे हैं।
1982 में सबसे पहली बार बस्टर्ड प्रजाति को आंध्र प्रदेश के करनूल के पास रोलापड्डू अभ्यारण्य में देखा गया। समय के साथ इनकी संख्या में आई भारी गिरावट के साथ आज इस पक्षी को वहां स्पॉट किये जाने की कोई रिपोर्ट ही नहीं है। यह प्रजाति मध्यप्रदेश की करेरा, कच्छ गुजरात के नलिया और महाराष्ट्र के ग्रेट इंडियन बस्टर्ड अभ्यारण्यों के साथ सोलापुर के नन्नज ग्रासलैंड में भी पर बहुत ही कम संख्या में मौजूद हैं।
पी.बालामुरूगन, आई.एफ.एस, असिसटेंट कंसर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट, जैसलमेर डैसर्ट नेशनल पार्क से हुये विशेष साक्षात्कार में बताया कि बस्टर्ड आज अच्छी संख्या में राजस्थान और विशेष तौर पर जैसलमेर डैसर्ट नेशनल पार्क और उसके आस पास मौजूद हैं। महज 83 बस्टडर्स की मौजूदगी के साथ 5 जून 2013 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान में प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड लॉन्च किया।
प्रजाति को बचाने के साथ पक्षियों के लिये एरिया को सुरक्षित करने, बस्टर्ड के प्राकृतिक आवास के तौर पर ग्रासलैंड को विकसित करने जैसे उद्देश्यों को लेकर प्रोजेक्ट बस्टर्ड की शुरुआत की गयी।
2019 में केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र वन विभाग, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, देहरादून के तकनीकी सहयोग और नेशनल अथोरिटी फॉर कंपनसेटरी अफॉरेस्टेशन फंड की आर्थिक सहायता से ‘हैबिटेट इंप्रूवमेंट एंड कंसर्वेशन ब्रीडिंग ऑफ ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ नामक कार्यक्रम को बस्टर्ड प्रजाति के संरक्षण व प्रजनन के लिये शुरू किया गया।
इसी कड़ी में राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा बस्टर्ड के हैचिंग, ब्रीडिंग और रिसर्च सेंटर जैसी सुविधाओं के साथ राज्य में कंसर्वेशन ब्रीडिंग प्रोग्राम की शुरूआत की गयी।
इसी तरह गुजरात वन विभाग ने 8511.66 हैक्टेयर भूमि को, महाराष्ट्र सरकार ने 1979 में घोषित महाराष्ट्र ग्रेट इंडियन बस्टर्ड अभयारण्य के जरिये 8496.44 स्कवैयर कि.मी. क्षेत्र को बस्टर्ड हैबिटेट एरिया के रूप में डेवलेप किया। मध्य प्रदेश सरकार भी ग्वालियर के घाटी गांव में बस्टर्ड के आरक्षित वन आवास के तौर पर विकसित कर रही है।
ए.सी.एफ बालामुरूगन ने जानकारी देते हुये बताया कि 2017 के वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और राजस्थान वन विभाग के जनगणना के अनुसार बस्टर्ड संख्या 128 +/- 19 आंकी गयी।
मई 2022 के जनगणना के अनुसार सकारात्मक इंडिकेटर के तौर पर डेर्स्ट नेशनल पार्क जैसलमेर में बस्टर्ड संख्या बढ़कर 42 हुई है।
बस्टर्ड की संख्या में आई इस भारी गिरावट के कई कारणों जैसे शहरीकरण, घास स्थलों की कमी, पक्षियों के प्रजनन प्रक्रिया में मानव हस्तक्षेप व पर्यावरण में बदलाव, अवैध शिकार आदि के साथ एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि यह पक्षी साल में सिर्फ एक ही अंडा देता है और वह भी खुले में ना किसी घोंसले में। इससे जानवरों द्वारा इसके अंडे को आसानी से भक्षण कर लिया जाता है।
इसके अलावा जहां पश्चिमी राजस्थान बस्टर्ड प्रजाति का मुख्य प्राकृतिक आवास स्थल तो है, पर वहीं विंड मिल, सोलर प्रोजक्टस व पावर प्लांटस भारी संख्या में मौजूद होने से बस्टर्ड के लिये समस्या बन गये हैं। अपने भारी शरीर की वजह से बस्टर्ड ज्यादा ऊँचाई पर और तेजी से भी नहीं उड़ पाते हैं। इस वजह से वे बिजली की हाई टैंशन पावर लाइन्स को नहीं देख पाते हैं और उनसे टकराते हैं जिससे उनकी मौत या उन्हें भारी चोटें लगती हैं।
राजस्थान सरकार इसके लिये अथक प्रयास कर रही है और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करते हुये इन बिजली के तारों को भूमिगत करने और इन तारों को रात में पक्षियों द्वारा देख सकने के लिये चमकदार ‘बर्ड डाइवरटर्स’ लगाने के आदेश जारी किये हैं।