गोरखपुर के जिलाधिकारी रहे पांडियन पर पांच लाख रुपये का जुर्माना, जानें इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने क्यों उठाया ये कदम

By भाषा | Published: November 21, 2022 07:25 PM2022-11-21T19:25:20+5:302022-11-21T19:29:35+5:30

कैलाश जायसवाल नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुनीत कुमार और न्यायमूर्ति सैयद वैज मियां की पीठ ने गोरखपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा गुंडा एक्ट लगाने संबंधी जारी नोटिस को रद्द कर दिया।

Gorakhpur ex dm Vijayendra Pandian fine five lakh rupees Allahabad High Court imposed  invoking Goonda Act against person ill intention up | गोरखपुर के जिलाधिकारी रहे पांडियन पर पांच लाख रुपये का जुर्माना, जानें इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने क्यों उठाया ये कदम

नोटिस में केवल एक घटना का संदर्भ दिया गया है।

Highlights2008 बैच के आईएएस अधिकारी के खिलाफ जांच शुरू करने का निर्देश दिया।प्रशासन ने याचिकाकर्ता की संपत्ति अपने पक्ष में करने के लिए उत्पीड़न किया। नोटिस में केवल एक घटना का संदर्भ दिया गया है।

प्रयागराजः इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दुर्भावना से ग्रसित होकर एक व्यक्ति के खिलाफ गुंडा एक्ट लगाने के लिए गोरखपुर के जिलाधिकारी रहे के विजयेंद्र पांडियन पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।

कैलाश जायसवाल नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुनीत कुमार और न्यायमूर्ति सैयद वैज मियां की पीठ ने गोरखपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा गुंडा एक्ट लगाने संबंधी जारी नोटिस को रद्द कर दिया। अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को 2008 बैच के आईएएस अधिकारी के खिलाफ जांच शुरू करने का निर्देश दिया।

याचिका में आरोप लगाया गया कि जिला प्रशासन ने याचिकाकर्ता की संपत्ति अपने पक्ष में करने के लिए उसका उत्पीड़न किया। अदालत ने 14 नवंबर, 2022 को दिए अपने आदेश में कहा कि गुंडा एक्ट की धारा 2(बी) का खंड (आई) लागू करने के लिए कम से कम दो बार अपराध कारित होना आवश्यक है लेकिन इस नोटिस में केवल एक घटना का संदर्भ दिया गया है।

अदालत ने कहा कि इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए प्रथम दृष्टया हम इस बात से सहमत हैं कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई ना केवल दुर्भावनापूर्ण है, बल्कि उसकी संपत्ति को लेकर उसका उत्पीड़न करने के लिए की गई। इसके अलावा, प्रतिवादी विशेषकर जिला मजिस्ट्रेट का आचरण स्पष्ट दर्शाता है कि नियम और कानून का उसके लिए कोई सम्मान नहीं है।

अदालत ने निर्देश दिया, ‘‘इस परिस्थिति में हम गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा 11 अप्रैल, 2019 को जारी नोटिस रद्द करने के लिए विवश हैं और उन पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाता है जो उच्च न्यायालय की विधि सेवा समिति के पास 10 सप्ताह ते भीतर जमा किया जाए।’’ अदालत ने कहा कि प्रथम प्रतिवादी- प्रमुख सचिव (गृह विभाग), उत्तर प्रदेश सरकार को इस मामले की जांच कराने और कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है। 

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