देशद्रोह से मैरिटल रेप तकः इन कानूनों में हो सकते हैं बड़े बदलाव, गृह मंत्रालय ने गठित की कमेटी
By आदित्य द्विवेदी | Published: July 5, 2020 09:45 AM2020-07-05T09:45:47+5:302020-07-05T09:45:47+5:30
इस कमेटी की अध्यक्षता नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ रणबीर सिंह कर रहे हैं। उन्होंने आपराधिक कानून के संबंध में विचार के लिए ऑनलाइन पब्लिक और एक्सपर्ट सलाह लेना शुरू कर दिया है।
मैरिटल रेप का अपराधीकरण करने, यौन अपराधों को जेंडर न्यूट्रल बनाने, इच्छामृत्यु को वैध बनाने और राजद्रोह पर पुनर्विचार करने के लिए गृह मंत्रालय द्वारा गठित पांच-सदस्यीय समिति आपराधिक कानूनों की व्यापक समीक्षा और सुधार करेगी। क्या 124ए के तहत देशद्रोह कानून में कोई बदलाव या परिभाषा में हटाने की जरूरत है? ये उन 49 सवालों में से एक है जिसपर यह कमेटी विचार करेगी। इस कमेटी की अध्यक्षता नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ रणबीर सिंह कर रहे हैं। उन्होंने आपराधिक कानून के संबंध में विचार के लिए ऑनलाइन पब्लिक और एक्सपर्ट सलाह लेना शुरू कर दिया है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 5 मई को गठित यह कमेटी उन विशेष कानूनों को लाने पर भी विचार कर रही जो बढ़ते सामाजिक और राजनीतिक अपराधों की काट को लाए जा सकते हैं। मसलन- मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग जैसे अपराध। दिसंबर 2019 में गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में संकेत दिया था कि निकट भविष्य में आईपीसी और सीआरपीसी में बदलाव किए जा सकते हैं जिससे मॉब लिंचिंग जैसे अपराधों में लगाम लगाई जा सके।
आईपीसी और सीआरपीसी बदलाव का पहला सुझाव 2003 में आया था। उस वक्त वाजपेयी सरकार में गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी थे। उन्होंने मालीमथ कमेटी का गठन किया था जिसमें यह सुझाव आया था। रणबीर सिंह कमेटी ने यह भी सुझाव मांगे हैं कि क्या आपराध के दंड के लिए न्यूनतम आयु सीमा में कोई बदलाव लाना चाहिए। आपको बता दें कि साल 2015 में 16 साल के ऊपर उम्र के जघन्य अपराध को वयस्क की तरह सजा दिए जाने का प्रावधान किया गया था।
मैरिटल रेप की स्थिति में 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए स्पष्ट किया था कि यद्दपि मैरिटल रेप आपराधिक कृत्य नहीं है लेकिन अगर व्यक्ति अपनी नाबालिग पत्नी से सेक्स करता है तो इसे बलात्कार माना जाए। कमेटी इस पर भी विचार करेगी कि क्या मैरिटल रेप को क्रिमिनल ऑफेंस बना दिया जाए।
बलात्कार जैसे अपराध में सहमति को परिभाषित करने के लिए भी कमेटी ने सुझाव मांगे हैं। कमेटी ने सुझाव मांगे हैं कि आईपीसी की धारा 375 में सहमति का क्या पैमाना होना चाहिए। इसके अलावा भी अन्य कई अपराध में सजा के प्रावधान में बदलाव को लेकर भी सुझाव मांगे गए हैं।
रणबीर सिंह की अध्यक्षता वाली इस कमेटी में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार जीएस बाजपेयी, धर्मशास्त्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर बलराज चौहान, वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी और दिल्ली जिला कोर्ट के पूर्व जज जीपी थरेजा शामिल हैं।