महाकुंभ से लेकर दिल्ली चुनाव तक राहुल गांधी की उदासीनता पर उठ रहे सवाल
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 4, 2025 03:42 PM2025-02-04T15:42:57+5:302025-02-04T15:55:00+5:30
महाकुंभ और दिल्ली चुनाव में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की उदासीनता को लेकर सवाल उठने लगे हैं। इसके अलावा वह 26 जनवरी के राष्ट्रीय पर्व भी नहीं दिखाई दिए।

महाकुंभ से लेकर दिल्ली चुनाव तक राहुल गांधी की उदासीनता पर उठ रहे सवाल
नई दिल्ली: इस समय देश में दो बड़े आयोजन की चर्चा है। पहला 144 साल के बाद लगने वाला महाकुंभ और दूसरा दिल्ली का विधानसभा चुनाव। इन दोनों आयोजनों पर विपक्ष के नेता राहुल गांधी की उदासीनता को लेकर सवाल उठने लगे हैं। इसके अलावा वह 26 जनवरी के राष्ट्रीय पर्व भी नहीं दिखाई दिए। ऐसे में सियासी गलियारों में लोग पूछने लगे हैं कि आखिर राहुल गांधी हैं कहां? न दिल्ली चुनाव में, न कुंभ में और ना ही गणतंत्र दिवस समारोह में।
उनके विरोधी मानते हैं कि एक ओर राहुल गांधी संसद में शिवजी, अभय मुद्रा, महाभारत का जिक्र करते हैं। दूसरी ओर महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजनों से दूरी बनाते हैं और हिन्दुत्व की कड़ी आलोचना करते हैं। वहीं हाल ही संपन्न हुए गणतंत्र दिवस पर भी वह नदारद रहे। यह राष्ट्रीय पर्व भारत के लोकतंत्र और सैन्य बलिदान का सबसे बड़ा प्रतीक है। किंतु उन्होंने इस आयोजन में हिस्सा नहीं लिया।
Gentle Reminder
— Madhvi Ojha (@madhviojhaa) January 27, 2025
The so-called 'Samvidhaan ka Rakshak,' Leader of Propaganda, was not present at the Republic Day program.
Also, the so-called 'Janeudhari Brahmin' did not post anything on Mahakumbh and hasn't visited Prayagraj either.😹 pic.twitter.com/0EDjSpZpdI
दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान वह अपनी पार्टी के लिए मुखर होते नहीं दिखाई दिए। आलोचक मानते हैं कि इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल पहले ही कमजोर हो गया। पार्टी के उम्मीदवारों को मझधार में छोड़कर कांग्रेस के आला नेता नदारद हैं। वैसे तो ऐसे कई उदाहरण है जिनको लेकर उनके नेतृत्व पर भी सवाल खड़े होते आए हैं।
राहुल गांधी कुछ ही दिन पहले हाथ में संविधान की प्रति लिए सदन में गरजते हुए खुद को संविधान का रक्षक बता रहे थे। 2022 में संविधान दिवस जैसे महत्वपूर्ण अवसर पर राहुल गांधी की गैरमौजूदगी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का अभिवादन न करना, उनके संविधान और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उदासीनता को दर्शाता है।