छत्तीसगढ़: कभी चलाता था पुलिस पर गोली, आज बन गया है पुलिस इंस्पेक्टर, जानिए नक्सल कमांडर मुद्राराज ने कैसे छोड़ी बंदूक
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: June 14, 2022 03:34 PM2022-06-14T15:34:07+5:302022-06-14T15:42:06+5:30
छत्तीसगढ़ में पुलिसवालों के खिलाफ बंदूक उठाकर लड़ने के लिए तैयार रहने वाले मुद्राराज अब पुलिस की बंदूक थामकर माओवादियों को खिलाफ राज्य के लोगों की सुरक्षा कर रहे हैं।
रायपुर:नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को उस समय उम्मीद की किरण दिखाई जब एक पूर्व नक्सली कमांडर उनके सुकमा दौरे के दौरान बतौर पुलिस इंस्पेक्टर उनकी सुरक्षा में तैनात था।
जी हां, जो शख्स कभी पुलिसवालों के खिलाफ बंदूक उठाकर लड़ने के लिए तैयार था आज वही शख्स पुलिस की बंदूक थामकर माओवादियों को खिलाफ राज्य के लोगों की सुरक्षा में आ खड़ा हुआ है।
छत्तीसगढ़ पुलिस के मुताबिक पूर्व माओवादी कमांडर मडकम मुद्राराज ने अपने जिंदगी के 40 दशक हिंसा के रास्ते पर चलकर गुजार दिये, लेकिन अब वो जीवन की मुख्यधारा में लौट आये हैं और माओवादी संगठन भाकपा को नमस्ते करकर घर वापसी कर ली।
लेकिन मुद्राराज के लिए घर वापसी इतनी आसान नहीं थी, समाचार वेब पोर्टल 'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक मुद्राराज को प्रतिबंधित माओवादी संगठन से जान से मारने की धमकी मिली लेकिन उसके बावजूद उन्होंने किसी भी बात की परवाह न करते हुए पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
पुलिस ने भी मुद्राराज को आत्मसमर्पण के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें पूरी सुरक्षा दी। आज के वक्त में मुद्राराज एक सामान्य जीवन जी रहे हैं और अपने फैसले पर बेहद प्रसन्न हैं क्योंकि हथियारों का रास्ता छोकर वो आज की तारीख में अपने परिवार के साथ गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं।
आत्मसमर्पण के बाद राज्य सरकार की ओर से चलाई जा रही स्पेशल स्कीम के तहत मुद्राराज को पुलिस विभाग में विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) बनाया गया। नौकरी में धीरे-धीरे प्रमोशन पाकर मुद्राराज आज पुलिस इंस्पेक्टर बन गये हैं और उन्हें छत्तीसगढ़ पुलिस की जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) इकाई में तैनाती दी गई है, जो माओवादी प्रभावित सुकमा जिले में सुरक्षा कार्यों को देख रहे हैं।
माओवादियों का साथ देने के लिए और हिंसा में भाग लेने के लिए अफसोस जाहिर करते हुए मुद्राराज ने कहा, “उन्होंने मुझे गुमराह किया और मैं माओवादी संगठन में शामिल हो गया। वर्षों तक उनके साथ जुड़े रहने के बाद, मुझे अपने ही भाइयों की हत्या के लिए पश्चाताप और आत्म-निंदा महसूस हुआ। मैंने व्यथित होकर संगठन छोड़ने का फैसला किया।"
मुद्राराज की पत्नी भी माओवादी संगठन में शामिल थी और उसके गुरिल्ला युद्ध तकनीक में प्रशिक्षित थी। उन्होंने कहा, “मैंने और मेरे पति ने मिलकर माओवादी संगठन छोड़ने का फैसला किया। हम उनकी धमकियों से डरे बगैर हिंसा का रास्ता छोकर मुख्यधारा में लौट आए। हमें अपने भाइयों-बहनों के खिलाफ बंदूक उठाने का अफसोस है।”