हैदराबाद एनकाउंटर पर पूर्व न्यायाधीश आरएस सोढ़ी का बयान, हिरासत में आरोपी की हिफाजत करना पुलिस का धर्म

By भाषा | Published: December 8, 2019 03:14 PM2019-12-08T15:14:20+5:302019-12-08T15:14:20+5:30

तेलंगाना में पशु चिकित्सक की सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या के आरोप में गिरफ्तार किये गए चार लोगों के कथित रूप से पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने के मामले में उच्चतम न्यायालय में शनिवार को दो जनहित याचिकाएं दायर करके एसआईटी जांच और मुआवजे की मांग की गई।

Former judge RS Sodhi's statement on Hyderabad encounter, police's religion to protect accused in custody | हैदराबाद एनकाउंटर पर पूर्व न्यायाधीश आरएस सोढ़ी का बयान, हिरासत में आरोपी की हिफाजत करना पुलिस का धर्म

न्यायमूर्ति आरएस सोढी का कहना है कि किसी भी मामले में आरोपियों की सुरक्षा करना पुलिस का धर्म होता है।

Highlightsतेलंगाना पुलिस ने कहा था कि आरोपी सुबह में पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे गये।इसी मुद्दे पर प्रस्तुत हैं न्यायमूर्ति सोढी से सवाल’ और उनके जवाब :

 हैदराबाद में महिला पशु चिकित्सक से बलात्कार और उसकी हत्या करने के आरोपियों के कथित मुठभेड़ में मारे जाने पर दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस सोढ़ी का कहना है कि किसी भी मामले में आरोपियों की सुरक्षा करना पुलिस का धर्म होता है। इसी मुद्दे पर प्रस्तुत हैं न्यायमूर्ति सोढ़ी से पांच सवाल’ और उनके जवाब :

सवाल : पुलिस की कार्रवाई की सराहना करने वाले और इसे न्यायेतर हत्या बताने वाले अपने-अपने तर्क दे रहे हैं, लेकिन कानून की दृष्टि से इस घटना को किस तरह से देखा जाना चाहिए?

जवाब : यह तथ्यों का मामला है। अदालत ने चार आरोपियों को आपकी :पुलिस की: हिरासत में भेजा था, तो उनकी हिफाजत करना, उनकी देखभाल करना आपका :पुलिस का: धर्म है। यह कह देना कि वे भाग रहे थे। वे भाग कैसे सकते हैं? आप 15 हैं और वे चार हैं। आपने कहा कि उन्होंने पत्थर फेंके तो आप 15 आदमी थे, क्या आप उन्हें पकड़ नहीं सकते थे? पत्थर से अगर आपको चोट आई तो पत्थर मारने वाला आदमी कितनी दूर होगा। यह कहानी थोड़ी जल्दबाजी में बना दी। आराम से बनाते तो थोड़ी ठीक बनती। यह कहानी मुझे जंचती नहीं है। यह हिरासत में की गई हत्या है। कानून कहता है कि जांच करो और जांच निष्पक्ष होनी चाहिए। यह जांच भले ही इनके खिलाफ नहीं हो, लेकिन यह चीज कैसे हुई, कहां से शुरू हुई, सब कुछ जांच में सामने आ जाएगा। इसलिए जांच होनी बेहद जरूरी है। दूसरी बात, यह किसने कह दिया कि आरोपियों ने बलात्कार किया था। यह तो पुलिस कह रही है और आरोपियों ने यह पुलिस के सामने ही कहा। पुलिस की हिरासत में किसी से भी, कोई भी जुर्म कबूल कराया जा सकता है। अभी तो यह साबित नहीं हुआ था कि उन्होंने बलात्कार किया था। वे सभी कम उम्र के थे। वे भी किसी के बच्चे थे। आपने उनकी जांच कर ली, मुकदमा चला लिया और मार भी दिया।

सवाल : हैदराबाद में पुलिस कार्रवाई को लेकर, अदालतों के अप्रासंगिक होने का सवाल उठ रहा है । आपकी क्या राय है?

जवाब : पुलिस अदालती कार्यवाही को अपने हाथ में ले ले तो उसका कदम कभी जायज नहीं हो सकता है। अगर पुलिस कानून के खिलाफ जाएगी तो वह भी वैसी ही मुल्जिम है जैसे वे मुल्जिम हैं। उसका काम सिर्फ जांच करना है और जांच में मिले तथ्यों को अदालत के सामने रखना है। इसमें प्रतिवादी को भी बता दिया जाता है कि आपके खिलाफ ये आरोप हैं और आपको अपनी सफाई में कुछ कहना है तो कह दें। अगर प्रतिवादी को अपनी बेगुनाही साबित करने का मौका नहीं दिया जाएगा और गोली मार दी जाएगी ... हो सकता है कि किसी और मुल्क में ऐसा इंसाफ होता हो, लेकिन हमारे संविधान के मुताबिक यह इंसाफ नहीं है। इसलिए यह तालिबानी इंसाफ कहीं और हो सकता है । इस मुल्क में नहीं।

सवाल : पुलिस मुठभेड़ को लेकर उच्चतम न्यायालय ने दिशा-निर्देश तय कर रखे हैं। इनके दायरे में प्रत्येक मुठभेड़ की जांच भी होती है, लेकिन तब भी पुलिस पर संदेह को लेकर नजरिया क्यों नहीं बदलता?

जवाब : मुठभेड़ के बाद पुलिस पर शक का नजरिया आज तक इसलिए नहीं बदला क्योंकि पुलिस नहीं बदली। हिरासत में मौत हुई है तो एजेंसी जांच करेगी कि कहीं आपने हत्या तो नहीं कर दी। अगर हत्या की है तो उसकी सजा आपको मिलेगी। उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देश हैं कि बिलकुल स्वतंत्र जांच होनी चाहिए। इसके बाद जो भी तथ्य आएंगे उसके तहत आगे कार्रवाई की जा सकती है।

सवाल : राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में देश में दुष्कर्म मामलों में दोषसिद्धि की दर बहुत कम 32.2 प्रतिशत थी। दुष्कर्म के 70 फीसदी मामलों के न्यायिक प्रणाली में उपेक्षित रह जाने को आप किस तरह देखते हैं?

जवाब : करीब 33 फीसदी दोषसिद्धि और 67 फीसदी को बरी किया गया है तो इसका यही मतलब है कि वे निर्दोष थे। आप इसे इस नजर से क्यों नहीं देखते हैं कि निर्दोष को भी फंसाया जा रहा है। यह आप मानने को तैयार क्यों नहीं हैं? अगर कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है और इसके बाद भी 60 फीसदी आरोपी छूट जाते हैं तो वे बेगुनाह थे, इसलिए छूट गए। जहां तक पुलिस के अपना काम ठीक तरह से नहीं करने की बात है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आरोपी को गोली मार दी जाए। इसके लिए जांच एजेंसी को मजबूत किया जाए। उसे प्रशिक्षण ठीक तरह से दिया जाए। मारपीट से अपराध कबूल कराया गया है तो इसके आधार पर दोषसिद्धि हो ही नहीं सकती है। जांच सही होगी और अदालत के सामने सही तथ्य आएंगे तो अदालत निष्पक्ष होकर फैसला देगी। अदालत दबाव में काम नहीं कर सकती है।

सवाल : निर्भया मामले के बाद कानून में बदलाव किया गया और दोषियों को फांसी तक की सजा का प्रावधान किया गया, नाबालिग को लेकर भी नियम बदले । लेकिन इसके बाद भी दुष्कर्म के मामलों पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है। अब भी सुधार की गुंजाइश कहां-कहां है?

जवाब : कानून कितने चाहे बना लें, जब तक इसको लागू ठीक से नहीं किया जाएगा तब तक कुछ नहीं होगा। जांच और दोषसिद्धि की प्रक्रिया तथा सजा को लागू करने में जब तक तेजी नहीं लाई जाएगी, तब तक किसी के मन में कानून का खौफ ही नहीं होगा। कानून भी खौफ के साथ ही चलता है। मेरे हिसाब से मामले बढ़ नहीं रहे हैं बल्कि ज्यादा उजागर हो रहे हैं जो अच्छी बात है। मामले जितने उजागर होंगे, जनता में उतनी ही जागरूकता आएगी। जब किसी लड़की को सड़क पर छेड़ा जाता है तो लोग उसे बचाते नहीं, बल्कि उसका फोटा या वीडियो बनाने को तैयार हो जाते हैं। ऐसे मामलों को रोकने के लिए लोगों की भागीदारी भी होनी चाहिए। हर इंसान को निजी तौर पर जिम्मेदार होना होगा।

Web Title: Former judge RS Sodhi's statement on Hyderabad encounter, police's religion to protect accused in custody

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