वन अधिकार कानून: खारिज मामलों की समीक्षा पूरी, संख्या बहुत कम हुई
By भाषा | Published: June 19, 2019 11:33 PM2019-06-19T23:33:41+5:302019-06-19T23:33:41+5:30
उच्चतम न्यायालय ने 13 फरवरी को उन 11.8 लाख ‘‘अवैध वन निवासियों’’ को हटाने का आदेश किया था जिनके भूमि अधिकार के दावों को अधिकारियों ने खारिज किया है।
वन अधिकार अधिनियम के तहत भू-स्वामित्व अधिकार के खारिज दावों की समीक्षा के बाद ऐसे मामलों की संख्या में ‘‘बहुत कमी’’ आई है जिसमें आदिवासी और गैर-आदिवासी निवासियों को वन्य भूमि से हटाया जा सकता है। अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी दी।
उच्चतम न्यायालय ने 13 फरवरी को उन 11.8 लाख ‘‘अवैध वन निवासियों’’ को हटाने का आदेश किया था जिनके भूमि अधिकार के दावों को अधिकारियों ने खारिज किया है। हालांकि, 28 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले पर रोक लगाते हुए राज्यों को दावे खारिज करने में अपनाई गई प्रक्रिया की जानकारी देने वाले हलफनामे दायर करने का निर्देश दिया था।
मार्च में एक बैठक में, आदिवासी मामलों के मंत्रालय ने राज्यों से 19.50 लाख खारिज मामलों की गांव के स्तर पर जांच करने तथा 12 जुलाई तक उच्चतम न्यायालय के सामने हलफनामे दायर करने को कहा था।
मंत्रालय ने कहा था कि राज्यों से मिले आंकड़ों के अनुसार, वन अधिकार कानून, 2006 के तहत करीब 40.50 लाख दावे दायर हुए हैं। करीब 18.50 लाख मामलों में भूमि स्वामित्व अधिकार मंजूर किये गये हैं जबकि 2.50 लाख मामले लंबित हैं। मंत्रालय के सचिव दीपक खांडेकर ने कहा कि राज्यों के प्रतिनिधियों ने मंगलवार को बैठक में इस विषय पर विस्तृत चर्चा की।
उन्होंने कहा, ‘‘जम्मू कश्मीर और सिक्किम को छोड़कर, सभी संबंधित राज्य बैठक में शामिल हुए। उन्होंने मामलों की समीक्षा की।’’ भाषा अनुराग दिलीप दिलीप