जम्मू-कश्मीर की नागरिकता पाने वाले पहले IAS अधिकारी बने नवीन कुमार, जानें इनके बारे में सबकुछ
By स्वाति सिंह | Published: June 27, 2020 07:27 AM2020-06-27T07:27:10+5:302020-06-27T08:20:39+5:30
1994 बैच के सीनियर IAS अधिकारी नवीन कुमार चौधरी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता ग्रहण करने वाले पहले आईएएस अधिकारी बन गए है।
नई दिल्ली: बिहार के दरभंगा जिले के हायाघाट प्रखंड के नवीन कुमार चौधरी जम्मू-कश्मीर का डोमिसाइल लेने वाले देश के पहले आईएएस अधिकारी बन गए हैं। जम्मू संभाग के बाहु तहसील के तहसीलदार डॉ रोहित शर्मा ने 24 जून को उन्हें डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी किया है।
1994 बैच के जम्मू-कश्मीर कैडर के IAS अधिकारी नवीन कुमार चौधरी 26 वर्षों से जम्मू-कश्मीर में सेवारत हैं। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, 'मुझे प्रमाणपत्र चाहिए था इसलिए मैंने अप्लाई किया था मैंने जम्मू-कश्मीर में नौकरी की मांग नहीं की। क्योंकि वो मेरे पास पहले से है। इसके अलावा मैं रिटायरमेंट के बाद गुड़गांव जाने की योजना बना रहा हूं। मैं प्रमाणपत्र का हकदार था और मुझे मिल गया। '
बता दें कि चौधरी फिलहाल जम्मू कश्मीर में कृषि, पशुपालन एवं तकनीकी शिक्षा समेत कई अन्य विभागों में प्रधान सचिव के पद पर तैनात हैं। इससे पहले वे 2012 में राज्यपाल के प्रधान सचिव, जम्मू श्राइन बोर्ड के सीईओ समेत वित्त सचिव व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के भी प्रधान सचिव रह चुके हैं।
12 अप्रैल 1968 को जन्मे नवीन बचपन से ही तेज बुद्धि के थे। पिता देवकांत चौधरी और मां वैदेही चौधरी ने बताया कि नवीन की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही बेसिक स्कूल मझौलिया से हुई। माध्यमिक शिक्षा ललितेश्वर मधुसूदन उच्च विद्यालय, आनंदपुर से पूरी हुई थी। इसके बाद पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए पटना भेज दिया। पटना यूनिर्विसटी से उन्होंने अर्थशास्त्र से स्नातक (प्रतिष्ठा) पास कर 1994 में 25 वर्ष की उम्र में भारतीय प्रशासनिक सेवा में 68वां स्थान प्राप्त किया। उन्हें जम्मू कश्मीर कैडर मिला। वहां वे लगभग 26 वर्षों से विभिन्न विभागों में सेवा देते आ रहे हैं।
उनकी शादी समस्तीपुर जिले के सरायरंजन प्रखंड के लगुनिया गांव में हुई है। उनके दो पुत्र आयुष्मान व हर्षवर्धन अमेरिका में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। जम्मू कश्मीर के नागरिकों की सेवा में नवीन इतने रम गए कि वे अंतत: वहीं के होकर रह गए। इसका मलाल उनके ग्रामीणों व सहपाठियों को है। उनके सहपाठी एवं पड़ोसी शिवानंद चौधरी कहते हैं कि लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व वे गांव आए थे तो सभी से मिले थे। उनके आने से हम ग्रामीणों को काफी खुशी होती है।