आंदोलन के बीच किसानों को बांटने की साजिश! मनोहर लाल खट्टर के सतलुज-यमुना जोड़ नहर का मुद्दा उठाने पर खड़े हुए सवाल
By बलवंत तक्षक | Published: December 22, 2020 08:14 AM2020-12-22T08:14:15+5:302020-12-22T08:27:40+5:30
हरियाणा के नारनौल शहर में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एक रैली में सतलुज यमुना जोड नहर का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि पंजाब के किसान भाइयों से अपने हक के पानी के बारे में भी बात करना चाहिए।
चंडीगढ़: केंद्र के नए कृषि कानूनों को रद्द कराने की मांग को लेकर सिंघु बॉर्डर पर बैठे पंजाब व हरियाणा के किसानों को आपस में बांटने के इरादे से अब सतलुज यमुना जोड (एसवाईएल) नहर के मुद्दे को तूल देने की कोशिशें शुरू हो गई हैं. इसी सिलिसले में दक्षिण हरियाणा के नारनौल शहर में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एक रैली भी आयोजित की.
रैली में खट्टर ने आंदोलनकारी हरियाणा के किसानों से कहा कि हमें पंजाब के किसान भाइयों से अपने हक के पानी के बारे में भी बात करनी चाहिए. पंजाब और हरियाणा के बीच एसवाईएल नहर के निर्माण और पानी के बंटवारे को लेकर कई दशकों से विवाद चला आ रहा है.
सुप्रीम कोर्ट विवाद पर दे चुका है फैसला
नहर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट हरियाणा के हक में पहले ही फैसला दे चुका है. पंजाब का कहना है कि किसी दूसरे राज्य को देने के लिए उसके पास फालतू पानी नहीं है.
खट्टर सरकार को लगता है कि पानी एक ऐसा मुद्दा है, जो कृषि कानूनों को लेकर एकजुट हुए दोनों राज्यों के किसानों के बीच दूरियां बढा सकता है. यही वजह रही कि भाजपा ने आनन्-फानन में नारनौल में जल अधिकार रैली आयोजित कर इस मामले को एक बार फिर से गर्म करने की कोशिश की है.
'भाजपा उपवास नहीं, प्रायश्चित करे'
विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है कि भाजपा को उपवास नहीं, प्रायश्चित करना चाहिए. लोग समझ गए हैं कि भाजपा की नीयत नहर बनाने की नहीं, बल्कि पंजाब व हरियाणा के किसानों को आपस में भिड़ाने की है.
इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के वरिष्ठ नेता अभय सिंह चौटाला का कहना है कि केंद्र और हरियाणा में भाजपा की सरकार है और सुप्रीम कोर्ट हरियाणा के हक में फैसला दे चुका है, ऐसे में भाजपा को नहर बनाने से कौर रोक रहा है? लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि सत्तारूढ़ पार्टी रैलियां कर किससे नहर बनाने की मांग कर रही है?
दोनों राज्यों के किसान समझ रहे हैं मंशा
बहरहाल, सवाल यह है कि क्या भाजपा दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर बैठे पंजाब-हरियाणा के किसानों के बीच कोई मतभेद पैदा कर पाएगी? इस बात को दोनों ही राज्यों के किसान अच्छी तरह से समझ रहे हैं.
किसानों को मालूम है कि किसानों को बांटने के प्रयास शुरू किए जा चुके हैं, लेकिन दोनों ही राज्यों के किसानों का मकसद इस समय एसवाईएल नहर नहीं, बल्कि कृषि कानूनों को रद्द करवाना है. सब का ध्यान भी इस समय इसी मुद्दे पर केंद्रित है. किसान करीब एक महीने से बॉर्डर पर डटे हुए हैं और उन्होंने साफ कह दिया है कि फतह हासिल करने के बाद ही वापस लौटेंगे.