Farmers Protest at Delhi border: 32 साल पहले किसानों की हुंकार से कांप गई थी Rajiv Gandhi सरकार!

By गुणातीत ओझा | Published: December 1, 2020 02:16 AM2020-12-01T02:16:11+5:302020-12-01T02:21:49+5:30

आज पांचवें दिन भी किसानों का प्रदर्शन (Farmers Protest) जारी है। किसान दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर डटे हुए हैं। किसान संगठनों ने बुराड़ी मैदान में जाने के बाद केंद्र सरकार के साथ बातचीत के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया।

Farmers Protest at Delhi border: 32 years ago Rajiv Gandhi government was shaken by the hunk of farmers | Farmers Protest at Delhi border: 32 साल पहले किसानों की हुंकार से कांप गई थी Rajiv Gandhi सरकार!

mahendra singh tikait

Highlightsआज पांचवें दिन भी किसानों का प्रदर्शन जारी है।किसान दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर डटे हुए हैं।

देश में किसान एक बार फिर अपनी मांगों को लेकर सड़क पर हैं। नए कृषि कानून (New Farmers Law) के विरोध में हरियाणा-पंजाब (Haryana-Punjab) के किसानों का हौसला अब भी बुलंदियों पर है। आज पांचवें दिन भी किसानों का प्रदर्शन (Farmers Protest) जारी है। किसान दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर डटे हुए हैं। किसान संगठनों ने बुराड़ी मैदान में जाने के बाद केंद्र सरकार के साथ बातचीत के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया। किसानों की इस हुंकार की हनक याद दिलाती है 1988 के उस किसान आंदोलन की जिसने राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया था। 1988 में सरकार विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किसानों के नेता महेंद्र सिंह टिकैत (Mahendra Singh Tikait) ने किया था। टिकैत की अगुवाई में आंदोलनकारी किसान तमाम मुश्किलों को झेलते हुए सात दिन तक धरने पर डटे रहे थे। सात दिन बाद तत्कालीन राजीव गांधी सरकार को किसानों की मांगों को मानना ही पड़ा और किसानों का यह महा आंदोलन खत्म हो सका। जब-जब किसान आंदोलनों की बात होती है तो किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का जिक्र जरूर होता है। महेंद्र सिंह टिकैत को किसानों का मसीहा कहा जाता था। किसानों के बीच वह बाबा टिकैत के नाम से लोकप्रिय थे। किसानों के बीच उनकी ऐसी पहुंच थी कि उनकी आवाज पर लाखों किसान इकट्ठा हो जाते थे। उस रोज भी दिल्ली में ऐसा ही हुआ था।

अब आपको लेकर चलते हैं 32 साल पहले साल 1988 की तारीख 25 अक्टूबर के दिन जब दिल्ली में देश के सबसे बड़े आंदोलन की बुनियाद रखी गई थी। इस महा आंदोलन में पांच लाख से अधिक किसान एकजुट हुए थे। सभी किसान दिल्ली के वोट क्लब में इकट्ठा हुए थे। इन सभी किसानों का नेतृत्व कर रहे थे किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत। बिजली, सिंचाई की दरें घटाने और फसल के उचित मूल्य सहित 35 सूत्री मांगों को लेकर पश्चिमी यूपी से बड़ी संख्या में किसान दिल्ली पहुंच रहे थे। प्रशासन ने किसानों को रोकने के लिए पुलिस बल का इस्तेमाल किया। लोनी बॉर्डर पर किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने फायरिंग भी कर दी जिसमें दो किसान राजेंद्र सिंह और भूप सिंह की मौत हो गई। पुलिस की काफी किरकिरी हुई और उधर किसान भी उग्र हो उठे। इन तमाम मुश्किलों के बावजूद उन्हें दिल्ली जाने से कोई रोक नहीं पाया।

करीब 14 राज्यों के 5 लाख किसानों ने उस वक्त दिल्ली में डेरा डाल दिया था। किसानों के समूह ने विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक कब्जा कर लिया था। पूरी दिल्ली ठप हो गई थी। किसानों ने ट्रैक्टर-बैल गाड़ियों को भी बोट क्लब में खड़ा कर दिया था। उस वक्त बोट क्लब में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि (30 अक्टूबर) के लिए तैयारियां चल रही थीं। मंच बनाया जा रहा था। किसान उसी मंच पर बैठ गए। तब टिकैत ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार उनकी बात नहीं सुन रही इसलिए वे यहां आए हैं। ठेठ गंवई अंदाज वाले बाबा टिकैत ने किसानों के साथ वहां 7 दिन तक धरना दिया था।

टिकैत के नेतृत्व में 12 सदस्यीय कमिटी का गठन हुआ जिसने तत्कालीन राष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष से मुलाकात की लेकिन इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका। प्रदर्शन कर रहे किसानों को हटाने के लिए पुलिस ने 30 अक्टूबर 1988 की रात उन पर लाठीचार्ज कर दिया। किसान फिर भी नहीं डिगे। किसान के प्रदर्शन के चलते कांग्रेस को इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि की रैली का स्थान बदलना पड़ा था। कांग्रेस ने बोट क्लब के बजाय लालकिला के पीछे वाले मैदान में रैली की थी। तब टिकैत ने तत्कालीन राजीव गांधी सरकार पर गरजते हुए कहा था, 'प्रधानमंत्री ने दुश्मन जैसा व्यवहार किया है। किसानों की नाराजगी उन्हें सस्ती नहीं पड़ेगी।' आखिरकार केंद्र सरकार को किसानों के आगे झुकना पड़ा। राजीव गांधी के भारतीय किसान यूनियन की सभी 35 मांगों पर फैसला लेने के आश्वासन पर वोट क्लब का धरना 31 अक्टूबर 1988 को खत्म हुआ।

Web Title: Farmers Protest at Delhi border: 32 years ago Rajiv Gandhi government was shaken by the hunk of farmers

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