दलित साहित्यकार सूरजपाल चौहान अब हमारे बीच नहीं रहे। मंगलवार 15 जून को उन्होंने आखिरी सांस ली और सभी को छोड़ दुनिया को अलविदा कह गए। सूरजपाल चौहान का कहानीसंग्रह, "हैरी कब आएगा" (लघु कथाएँ) (1999) दलित साहित्य जगत में प्रख्यात हैं। उनकी मौत से साहित्यप्रेमियों को भी बड़ा झटका लगा है।
सूरजपाल चौहान के निधन की खबर के बाद से ही सोशल मीडिया पर उनके प्रशंसक शोक व्यक्त कर रहे हैं। बचपन में सूरजपाल चौहान अपने मां के साथ ठाकुर और ब्राहमणों के घर मजदूरी करने जाया करते थे। उनकी मां बीमरी के हालत में भी काम पर जाया करती थी। सूरजपाल चौहान को उनके गांव के स्कूल में भी भेदभाव का सामना करना पड़ता था। वहां उन्हें ठीकुर-ब्राहमण बाकी बच्चों से दूर बैठते थे।
शुभनीत कौशिक नामक फेसबुक यूजर ने सूरजपाल चौहान को लेकर एक पोस्ट किया है। इस पोस्ट में उन्होंने लिखा कि "संतप्त" और "तिरस्कृत" जैसी आत्मकथाओं के लिए सुप्रसिद्ध दलित साहित्यकार सूरजपाल चौहान (1955-2021) का आज निधन हो गया। अलीगढ़ में जन्मे कवि, नाटककार व कहानीकार सूरजपाल चौहान ने अपनी रचनाओं में दलितों के जीवनानुभवों के साथ ही दलित चेतना को मुखरता से अभिव्यक्ति दी।
उन्होंने आगे लिखा, 'मातादीन भंगी जैसे इतिहास के पन्नों में भुला दिए गए दलित नायकों पर सूरजपाल चौहान ने पुस्तक लिखी, जो सम्यक प्रकाशन द्वारा छापी गई। प्रयास, क्यों विश्वास करूं, कब होगी वह भोर उनके काव्य संग्रह हैं। उन्होंने बच्चों के लिए भी कविताएं लिखी। "हैरी कब आएगा" उनका बहुचर्चित कहानी संग्रह है, जो 1999 में छपा था। बाद में, नया ब्राम्हण और धोखा जैसे उनके कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए। "छू नहीं सकता" उनके द्वारा लिखित लघुनाटिका है। उन्हें नमन।'