एस्थर डुफ्लो अर्थशास्त्र का नोबल पाने वाली दूसरी महिला, सबसे कम उम्र की अर्थशास्त्री

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 14, 2019 06:24 PM2019-10-14T18:24:11+5:302019-10-14T20:26:38+5:30

डुफ्लो अर्थशास्त्र का नोबल पाने वाली दूसरी महिला हैं। वहीं वह यह पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की अर्थशास्त्री भी है। नोबेल पुरस्कार के तहत 90 लाख क्रोनर (स्वीडन की मुद्रा) यानी 9,18,000 डॉलर का नकद पुरस्कार, एक स्वर्ण पदक और एक प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। इस राशि को विजेताओं के बीच बराबर बांट दिया जाता है।

Esther Duflo is the second woman to receive the Nobel of Economics, the youngest economist | एस्थर डुफ्लो अर्थशास्त्र का नोबल पाने वाली दूसरी महिला, सबसे कम उम्र की अर्थशास्त्री

डुफ्लो का जन्म 1972 में हुआ। वह जे-पाल की सह-संस्थापक और सह-निदेशक हैं।

Highlightsबनर्जी, 58 वर्ष, ने भारत में कलकत्ता विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की।बनर्जी ने वर्ष 2003 में डुफ्लो और सेंडिल मुल्लाइनाथन के साथ मिलकर अब्दुल लतीफ जमील पावर्टी एक्शन लैब (जे-पाल) की स्थापना की।

भारतीय-अमेरिकी अभिजीत बनर्जी, उनकी पत्नी एस्थर डुफ्लो और अमेरिका के अर्थशास्त्री माइकल क्रेमर को सोमवार को संयुक्त रूप से 2019 के लिये अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार विजेता घोषित किया गया है।

डुफ्लो अर्थशास्त्र का नोबल पाने वाली दूसरी महिला हैं। वहीं वह यह पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की अर्थशास्त्री भी है। नोबेल पुरस्कार के तहत 90 लाख क्रोनर (स्वीडन की मुद्रा) यानी 9,18,000 डॉलर का नकद पुरस्कार, एक स्वर्ण पदक और एक प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। इस राशि को विजेताओं के बीच बराबर बांट दिया जाता है।

बनर्जी, 58 वर्ष, ने भारत में कलकत्ता विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की। इसके बाद 1988 में उन्होंने हावर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। एमआईटी की वेबसाइट के अनुसार वर्तमान में वह मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अर्थशास्त्र के फोर्ड फाउंडेशन अंतरराष्ट्रीय प्रोफेसर हैं।

बनर्जी ने वर्ष 2003 में डुफ्लो और सेंडिल मुल्लाइनाथन के साथ मिलकर अब्दुल लतीफ जमील पावर्टी एक्शन लैब (जे-पाल) की स्थापना की। वह प्रयोगशाला के निदेशकों में से एक हैं। बनर्जी संयुक्तराष्ट्र महासचिव की ‘2015 के बाद के विकासत्मक एजेंडा पर विद्वान व्यक्तियों की उच्च स्तरीय समिति’ के सदस्य भी रह चुके हैं। डुफ्लो का जन्म 1972 में हुआ। वह जे-पाल की सह-संस्थापक और सह-निदेशक हैं।

वह एमआईटी के अर्थशास्त्र विभाग में गरीबी उन्मूलन और विकास अर्थशास्त्र की अब्दुल लतीफ जमील प्रोफेसर हैं। डुफ्लो ने बनर्जी के साथ मिलकर ‘गरीबी अर्थशास्त्र : वैश्विक स्तर पर गरीबी से लड़ने के तरीकों पर एक तार्किक पुनर्विचार’ शोधपत्र लिखा। इसके लिए उन्हें 2011 में फाइनेंशियल टाइम्स एंड गोल्डमैन सैश बिजनेस बुक ऑफ द इयर पुरस्कार मिला। इस शोधपत्र को 17 से अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया है। डुफ्लो ने स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्तीय समावेशन, पर्यावरण और शासन व्यवस्था जैसे विषयों पर काम किया है।

उन्होंने अपनी पहली डिग्री पेरिस के इकोल नॉर्मल सुपिरियर से अर्थशास्त्र और इतिहास में हासिल की। बाद में 1999 में एमआईटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। डुफ्लो को कई अकादमिक पुरस्कार मिले हैं। इनमें 2015 का प्रिंसेस ऑफ ऑस्ट्रियास अवार्ड फॉर सोशल साइंसेस, 2015 का ही ए.एसके सोशल साइंस अवार्ड, 2014 का इंफोसिस पुरस्कार, 2011 का डेविड एन. करशॉ अवार्ड, 2010 का जॉन बेट्स क्लार्क मेडल और 2009 की मैक ऑर्थर ‘जीनियस ग्रांट’ फेलोशिप शामिल है।

वह अमेरिकन इकनॉमिक रिव्यू की संपादक हैं। इसके अलावा वह ब्रिटिश अकादमी की करेसपॉन्डिंग फेलो भी हैं। क्रेमर, 54 वर्ष, एक विकास अर्थशास्त्री हैं। वर्तमान में वह हार्वर्ड विश्वविद्यालय में विकासशील समाजों के गेट्स प्रोफेसर हैं।

नोबेल समिति ने सोमवार को एक बयान जारी कर तीनों को वैश्विक स्तर पर गरीबी से लड़ने के शोध कार्यों के लिये 2019 का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की। बनर्जी और उनकी फ्रांसीसी-अमेरिकी पत्नी डुफ्लो प्रतिष्ठित मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में काम करते हैं। जबकि क्रेमर हार्वर्ड विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

Web Title: Esther Duflo is the second woman to receive the Nobel of Economics, the youngest economist

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