तो क्या इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की नकाब साबित हो रहे हैं? ताजा आंकड़े आपको चौंका देंगे
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 24, 2018 07:35 AM2018-08-24T07:35:21+5:302018-08-24T07:35:21+5:30
नरेंद्र मोदी सरकार ने साल 2017-18 के बज़ट में राजनीतिक चन्दे को पारदर्शी बनाने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा की थी।
नरेंद्र मोदी सरकार ने देश की राजनीति को पारदर्शी बनाने के लिए जिस 'इलेक्टोरल बॉन्ड' की व्यवस्था की थी।
लेकिन एक ताजा आंकड़ों से ये आशंका जतायी बलवती हो रही है कि इसका लाभ बड़े कारोबारी और अमीर तबके के लोग उठा रहे हैं।
विभिन्न राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का करीब 100 प्रतिशत 10 लाख रुपये और एक करोड़ रुपये तक के इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में मिले हैं।
द प्रिंट की रिपोर्ट के भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा जुलाई तक की तिमाही में जारी 99.70 प्रतिशत चुनावी बॉन्ड 10 लाख रुपये और एक करोड़ रुपये के बॉन्ड के रूप में थे।
इनमें भी एक करोड़ के बॉन्ड कुल बिके बॉन्ड के 87.50 प्रतिशत रहे।
रिपोर्ट के अनुसार एक हजार रुपये से लेकर 10 हजार रुपये तक के चुनावी बॉन्ड लगभग नहीं खरीदे गये हैं।
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड
नरेंद्र मोदी सरकार ने साल 2017-18 के बज़ट में राजनीतिक चन्दे को पारदर्शी बनाने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा की थी।
मोदी सरकार ने दो हजार रुपये से ज्यादा के नकद चंदे पर रोक लगा दी थी। नए नियम के अनुसार दो हजार रुपये से ज्यादा चंदा केवल चेक या ऑनलाइन भुगतान के जरिए ही दिया जा सकता है।
सरकार ने इस साल जनवरी में इन बॉन्ड की अधिसूचना जारी की। अधिसूचना के अनुसार 1000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, 10 लाख रुपये और एक करोड़ रुपये के बॉन्ड जारी किए जाते हैं।
ये बॉन्ड कोई दानदाता एसबीआई में अपने केवाईसी जानकारी वाले अकाउंट से खरीद सकता है। राजनीतिक पार्टियाँ इन बॉन्ड को दान में मिलने के 15 दिनों के अंदर बैंक में भुना सकते हैं।
इन बॉन्ड पर दान देने वालों का नाम नहीं होता। इस दान की जानकारी भी सार्वजनिक नहीं की जाती। इन बॉन्ड के माध्यम से कोई दानदाता अपनी पहचान जाहिर किए बिना राजनीतिक दलों को चंदा दे सकता है।
चंदा देने वालों को टैक्स छूट
इलेक्टोरल बॉन्ड का इस्तेमाल करने वालों को सरकार टैक्स में भी छूट देती है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साल की शुरुआत में इलेक्टोरल बॉन्ड का यह कहकर समर्थन किया था कि इससे चंदे में पारदर्शिता बढ़ेगी और राजनीतिक दलों को कानूनी पैसा ही चंदे के तौर पर मिलेगा।
हालाँकि विशेषज्ञ इलेक्टोरल बॉन्ड की यह कहकर आलोचना करते रहे हैं कि इनके माध्यम से राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों की पहचान छिपाना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए नुकसानदायक भी साबित हो सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार इन बॉन्ड का इस्तेमाल कारोबारी घराने और अन्य अमीर लोग कर सकते हैं।
जिस तरह 99 प्रतिशत से ज्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड 10 लाख रुपये और एक करोड़ रुपये के खरीदे गये हैं उससे इस आशंका को बल मिलता है।