संपादकीय: चिंता जीडीपी से ज्यादा नैतिक गिरावट की

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 3, 2019 11:22 AM2019-12-03T11:22:25+5:302019-12-03T11:22:25+5:30

संसद, विधानसभा तक पहुंचने वाली महिला सांसदों, विधायकों को भी अब एकजुट होकर इस संबंध में आवाज को बुलंद करना चाहिए.

Editorial: Moral degradation is more cause of concern than GDP | संपादकीय: चिंता जीडीपी से ज्यादा नैतिक गिरावट की

संपादकीय: चिंता जीडीपी से ज्यादा नैतिक गिरावट की

हैदराबाद और रांची में सामने आई ताजातरीन दो घटनाओं के बाद लगता है कि हमें जीडीपी की गिरावट से ज्यादा चिंता नैतिक मूल्यों, निरंतर पतन के गर्त में गिरते जा रहे समाज की होनी चाहिए. हैदराबाद में डय़ूटी से लौट रही एक वेटरनरी डॉक्टर को यौन हमले के बाद जिंदा जला दिया गया तो झारखंड की राजधानी रांची में एक स्टूडेंट से हथियारबंद समूह ने गैंगरेप किया. 

जाहिर सी बात है कि देश की सुरक्षा पर अरबों-खरबों रु. खर्च किए जाने के बीच आम नागरिक और खासतौर पर महिलाओं की सुरक्षा के हालात बेहद चिंताजनक हैं. अनेक राज्यों में बलात्कार के खिलाफ कानूनों को कड़ा कर दिए जाने के बाद भी अपराधियों के दिलोदिमाग में रत्तीभर का भी खौफ नहीं होना, हमारी सुरक्षा एजेंसियों और कानून की नाकामी को भी उजागर करता है. झारखंड के मामले में सभी 12 आरोपी पकड़ तो लिए गए हैं, लेकिन मुद्दा यह है कि उन्हें सजा कितनी जल्दी हो पाएगी? 

झारखंड में चूंकि विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं तो सभी विरोधी दल राजनीतिक रोटियां सेंकने से बाज नहीं आएंगे. उधर, निर्भया कांड के वक्त सरकार को हिलाकर रख देने वाला नेशनल मीडिया तो दिल्ली-एनसीआर के बाहर के भारत को केवल राजनीतिक उथल-पुथल के वक्त ही कवरेज दे पाता है. यौन अपराधों को रोकने के लिए अश्लील वेबसाइट्स को प्रतिबंधित करने जैसे सरकार के कदम आज के अत्याधुनिक युग में कितने खोखले हैं, सभी को पता है. 
किसी के यौन शोषण के वीडियो देशभर में वायरल होते देर नहीं लगती और कई पुराने मामले बता भी चुके हैं कि इस हमाम में सभी नंगे हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराधों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है जिससे सभी देशवासियों को चिंतित होने की जरूरत है. गृह मंत्रलय ने भी राज्यों को महिलाओं की सुरक्षा के प्रति ज्यादा सजग होने की एडवाइजरी जारी करके औपचारिकता पूरी कर दी है. क्या ऐसे मामलों में राज्यों को एडवाइजरी की जरूरत है? 

इस एडवाइजरी से ही जाहिर हो जाता है कि हमारे यहां संवेदनशील मामलों को भी राजनीति और केवल नौकरशाही के चश्मे से ही देखा जाता है. राष्ट्रीय महिला आयोग भी सक्रियता तो दिखाता है लेकिन जब जांच बिठाने से ज्यादा कुछ करने का उसके पास अधिकार ही नहीं है तो उसका मतलब क्या रह जाता है?

वाकई वक्त आ ही चुका है कि देश की आधी आबादी को न केवल सुरक्षा दी जाए बल्कि उनके खिलाफ अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए कानूनों को और अधिक कड़ा किया जाए. 

साथ ही संसद, विधानसभा तक पहुंचने वाली महिला सांसदों, विधायकों को भी अब एकजुट होकर इस संबंध में आवाज को बुलंद करना चाहिए. वरना महिलाओं पर अत्याचार का सिलसिला ऐसे ही जारी रहेगा और हम केवल निंदा, जांच जैसे तिलस्मी शब्दों के बीच कसमसाते रहेंगे.

Web Title: Editorial: Moral degradation is more cause of concern than GDP

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