सांसदों-विधायकों की अयोग्यता: SC का संसद से आग्रह- अध्यक्ष के अधिकारों पर पुन:विचार हो

By भाषा | Published: January 21, 2020 10:28 PM2020-01-21T22:28:54+5:302020-01-21T22:28:54+5:30

पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में स्थाई अधिकरण बनाने या कोई ऐसी व्यवस्था तैयार करने पर विचार करना चाहिए जिसमें तेजी से और निष्पक्षता से फैसले हों सकें।

Disqualification of MPs-MLAs: SC requests Parliament, Speaker's powers should be reconsidered | सांसदों-विधायकों की अयोग्यता: SC का संसद से आग्रह- अध्यक्ष के अधिकारों पर पुन:विचार हो

सुप्रीम कोर्ट की इमारत। (फाइल फोटो)

Highlightsउच्चतम न्यायालय ने संसद से अनुरोध किया कि उसे सांसदों और विधायकों की अयोग्यता के मामलों पर फैसला करने के अध्यक्ष के अधिकारों पर फिर से विचार करना चाहिये क्योंकि इस पद पर आसीन निर्वाचित प्रतिनिधि भी ‘एक राजनीतिक दल विशेष’ का सदस्य होता है।पीठ ने अपने फैसले में कहा कि अयोग्यता के मामले में निर्णय के लिये संसद को संविधान में संशोधन करके लोकसभा और विधानसभाओं के अध्यक्ष के स्थान पर एक स्वतंत्र और स्थाई अधिकरण गठित करने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को संसद से अनुरोध किया कि उसे सांसदों और विधायकों की अयोग्यता के मामलों पर फैसला करने के अध्यक्ष के अधिकारों पर फिर से विचार करना चाहिये क्योंकि इस पद पर आसीन निर्वाचित प्रतिनिधि भी ‘एक राजनीतिक दल विशेष’ का सदस्य होता है। न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमणियन की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि अयोग्यता के मामले में निर्णय के लिये संसद को संविधान में संशोधन करके लोकसभा और विधानसभाओं के अध्यक्ष के स्थान पर एक स्वतंत्र और स्थाई अधिकरण गठित करने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में स्थाई अधिकरण बनाने या कोई ऐसी व्यवस्था तैयार करने पर विचार करना चाहिए जिसमें तेजी से और निष्पक्षता से फैसले हों सकें।

पीठ ने सांसदों और विधायकों को अयोग्य घोषित करने की याचिकाओं पर फैसले में अध्यक्ष की भूमिका और इसमें अत्यधिक विलंब का संज्ञान लिया। पीठ ने मणिपुर विधानसभा के अध्यक्ष से कहा कि वह भाजपा के विधायक और मणिपुर के वन मंत्री टी श्यामकुमार को अयोग्य घोषित करने के लिये कांग्रेस नेता की याचिका पर चार सप्ताह के भीतर निर्णय लें।

राज्य विधानसभा के 2017 के चुनावों में श्यामकुमार कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुये थे लेकिन बाद में वह भाजपा सरकार में शामिल हो गये। श्यामकुमार को अयोग्य घोषित करने के लिये दायर याचिका अभी भी अध्यक्ष के पास लंबित है। पीठ ने कहा कि चार सप्ताह बाद भी अगर कोई निर्णय नहीं लिया गया तो इस कार्यवाही से संबद्ध कोई भी पक्षकार इस मामले में आगे निर्देश या राहत के लिये न्यायालय आ सकता है।

पीठ ने कहा कि अब समय आ गया है कि संसद को पुन: विचार करना चाहिए कि क्या संसद या विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित करने के लिये दायर याचिकाओं पर निर्णय का दायित्व अर्द्ध न्यायिक प्राधिकारी के रूप में अध्यक्ष को सौंपा जाना चाहिए जबकि ऐसे अध्यक्ष राजनीतिक दल विशेष के ही सदस्य होते हैं।

पीठ ने कहा कि संसद 10वीं अनुसूची के तहत आने वाले अयोग्यता से संबंधित विवादों में पंचाट के रूप में लोक सभा और विधानसभा अध्यक्ष के स्थान पर शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्थाई अधिकरण या कोई अन्य स्वतंत्र व्यवस्था बनाने के बारे में गंभीरता से विचार करे ताकि ऐसे विवादों का तत्परता और निष्पक्षता से निर्णय हो सके।

इस तरह 10वीं अनुसूची के प्रावधानों को असली अधिकार मिलेंगे जो हमारे लोकतंत्र के सही तरीके से काम करने के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण है। शीर्ष अदालत ने मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ कांग्रेस नेता कीशम मेघचंद्र सिंह की अपील पर यह व्यवस्था दी। उच्च न्यायालय ने श्यामकुमार को अयोग्य घोषित करने की याचिका पर फैसला लेने के लिये विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश देने से इंकार कर दिया था।

यह मामला शीर्ष अदालत में पांच न्यायाधीशों की पीठ के पास लंबित है कि क्या अयोग्यता के मामले में फैसला करने के लिये अदालतें अध्यक्ष को निर्देश दे सकती हैं। मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव मार्च 2017 मे हुये थे और इसमें 28 सीटें जीतकर कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी जबकि भाजपा के पार 21 सीटें थीं। हालांकि, राज्य में भाजपा के नेतृत्व में सरकार ने शपथ ली। कांग्रेस के विधायक श्यामकुमार ने पाला बदल लिया था और वह सरकार में मंत्री बन गये थे। इसके बाद श्यामकुमार को दल-बदल कानून के तहत अयोग्य घोषित करने के लिये अप्रैल 2017 में कई याचिकायें अध्यक्ष के यहां दायर की गयी थीं।

चूंकि यह मामला अध्यक्ष के पास लंबित था, इसलिए कांग्रेस नेता पहले उच्च न्यायालय गये और फिर उन्होंने शीर्ष अदालत में अपील दायर की। कांग्रेस नेता चाहते थे कि मंत्री की नियुक्ति रद्द की जाये और अध्यक्ष के इस मामले में आवश्यक कार्यवाही करने की बजाय न्यायालय ही अयोग्यता के मुद्दे पर फैसला करे। शीर्ष अदालत ने कहा कि श्यामकुमार की भाजपा सरकार में नियुक्ति निरस्त करने के बारे में सिब्बल के कथन को स्वीकार करना संभव नहीं है। न्यायालय ने कहा कि अतिरिक्त सालिसीटर जनरल माधवी दीवान का यह कहना सही है कि एक विधायक को दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता के मामले पर पहले विधानसभा अध्यक्ष को फैसला करना चाहिए। 

Web Title: Disqualification of MPs-MLAs: SC requests Parliament, Speaker's powers should be reconsidered

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