दिल्ली: आजादपुर मंडी के मजदूर ने कहा- सरकार ने हमें यहां मरने और सड़ने के लिए छोड़ दिया, भूख और भय के साथ दिन गुजार रहे हैं

By भाषा | Updated: May 1, 2020 17:29 IST2020-05-01T17:29:26+5:302020-05-01T17:29:26+5:30

20 अप्रैल से 29 अप्रैल के बीच मंडी के 15 लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हो चुकी है जिससे यह अधिक संक्रमित स्थान (हॉटस्पॉट) बन गया है।

Delhi: The laborers of Azadpur Mandi said- the government left us here to die and rot, the days are spent with hunger and fear | दिल्ली: आजादपुर मंडी के मजदूर ने कहा- सरकार ने हमें यहां मरने और सड़ने के लिए छोड़ दिया, भूख और भय के साथ दिन गुजार रहे हैं

आजादपुर सब्जी मंडी (फाइल फोटो)

Highlightsराजधानी में लॉकडाउन की वजह से सेकड़ों मजदूर फंसे हुए हैं और आय का साधन नहीं होने की वजह से अब घर लौटना चाहते हैं।बिहार के मजदूर मुकेश्वर यादव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह बिहार के लोगों पर कथित रूप से ध्यान नहीं देने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना करते हैं।

नयी दिल्ली: एक मई (भाषा) एशिया में फल और सब्जी की सबसे बड़ी मंडी के रूप में विख्यात दिल्ली की आजादपुर मंडी में रह रहे मुकेश्वर यादव उन सैकड़ों पल्लेदार मजदूरों में शामिल हैं जो यहां माल ढुलाई की रीढ़ हैं लेकिन 25 मार्च से लॉकडाउन होने के बाद से उन्होंने अपने ठेकेदार को नहीं देखा है। मूल रूप से बिहार के दरभंगा जिले के रहने वाले यादव करीब 10 साल से घर से दूर हैं लेकिन उन्होंने कभी इतना अकेलापन महसूस नहीं किया था। प्याज की बोरी पर कोरोना वायरस से बचने के लिए अंगोछे से चेहरा ढंककर बैठे यादव कहते हैं कि सरकार ने उनके जैसे लोगों को यहां मरने और सड़ने के लिए छोड़ दिया है।

अंगोछ़े से मक्खियों को हटाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं पिछले 10 साल से इन प्याज की बोरियों के साथ रह रहा हूं। मैंने कभी अकेलापन महसूस नहीं किया लेकिन अब ऐसा महसूस हो रहा है।’’ यादव, जो करीब आठ हजार रुपये महीना कमाते थे लेकिन अब लॉकडाउन से पहले बचाए गए पैसे से अपना जीवनयापन कर रहे हैं और यह बचत भी धीरे-धीरे खत्म हो रही है। वह कहते हैं, ‘‘ हमें यहां सब्जी मिल रही है लेकिन चावल, आटा या तेल नहीं है...कोई हमारी मदद करने नहीं आया।’’ उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस का मामला सामने आने के बाद गली की तीन दुकानों को सील कर दिया गया है।

20 अप्रैल से 29 अप्रैल के बीच मंडी के 15 लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हो चुकी है जिससे यह अधिक संक्रमित स्थान (हॉटस्पॉट) बन गया हैं। पिछले महीने एक व्यापारी की सांस संबंधी बीमारी से मौत हो गई थी जिससे पल्लेदारों : अनाज मंडी और सब्जी मंडी में बोझा ढोने वाले मजदूर : में डर का माहौल है। आजादपुर कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) के अध्यक्ष आदिल अहमद खान के मुताबिक अब तक 13 दुकानों को सील किया जा चुका है और 43 लोगों को पृथकवास में रखा गया है। मंडी में ही काम करने वाले बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के रहने वाले 34 वर्षीय सुरेंद्र यादव बताते हैं कि लॉकडाउन शुरू होने के बाद बहुत कम काम रह गया है।

उन्होंने बताया कि पहले 300 से 400 रुपये रोज कमा लेते थे लेकिन अब मात्र 50 रुपये की कमाई होती है। सुरेंद्र यादव कहते हैं कि कई बार 50 रुपये की कमाई भी मुश्किल होती है। आज वैसा ही दिन लग रहा है अभी तक कोई कमाई नहीं हुई है। उन्होंने बताया कि मंडी में काम करने वाले अधिकतर पल्लेदार बचत के पैसे से गुजारा कर रहे हैं और उन्हें डर है कि लॉकडाउन में ढील से पहले ही यह बचत की राशि भी खत्म हो जाएगी।

सुरेंद्र ने कहा कि वह दिल्ली सरकार की उस घोषणा पर आश्चर्यचकित हैं कि वह प्रवासी मजदूरों, जरूरतमंदों, बुजुर्गों और बेघर लोगों को मुफ्त में राशन बांट रही है। उन्होंने विपणन समिति द्वारा मदद करने के दावों का खंडन करते हुए कहा, ‘‘ हमारी किसी ने मदद नहीं की। हम अपने हाल पर हैं। हमारे ठेकेदार गायब हैं और कोई उनकी तरफ से मदद के लिए नहीं आया।’’ अन्य सैकड़ों प्रवासी मजदूरों की तरह मंडी में समान ढोने का काम करने वाले यह मजदूर भी राष्ट्रीय राजधानी में लॉकडाउन की वजह से फंसे हुए हैं और आय का साधन नहीं होने की वजह से अब घर लौटना चाहते हैं।

मुकेश्वर यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह बिहार के लोगों पर कथित रूप से ध्यान नहीं देने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना करते हुए कहते हैं, ‘‘ मैंने घर जाने की कोशिश की लेकिन साधन नहीं मिला । न ही आनंद विहार से बिहार जाने के लिए कोई बस थी।’’ मंडी में ही सामान ढोने का काम करने वाले अन्य पल्लेदार 40 वर्षीय अनिल राज कहते हैं, ‘‘ उत्तर प्रदेश सरकार ने दिल्ली और अन्य राज्यों में फंसे अपने लोगों को लाने के लिए विशेष बसों का परिचालन किया लेकिन नीतीश बाबू इतने दयालु नहीं हैं।’’

राज भी दरभंगा जिले के ही रहने वाले हैं। वह बीमारी और वायरस का नाम नहीं बता पाते लेंकिन कहते हैं, ‘‘मुझे सिर्फ इतना पता है कि आपको इस बीमारी के बारे में पता नहीं चलता ...जब तक इसका पता चलता है तब तक आप मर चुके होते हैं।’’ राज का ठेकेदार भी गत 20 दिन से मंडी नहीं आया है। जब उनसे पूछा गया कि कहीं उनके ठेकेदार को पृथकवास में तो नहीं भेजा गया तो वह कुछ समय में लिए घूर कर देखते हैं और कहते हैं कि वह नहीं जानते कि इसका मतलब क्या होता है।

एक और पल्लेदार 35 वर्षीय मदन जो मूल रूप से पटना के रहने वाले हैं बताते हैं कि बरोला इलाके में रहते थे लेकिन किराया नहीं देने पर गत महीने की शुरुआत में मकान मालिक ने घर से निकाल दिया। उन्होंने बताया कि तब से वह मच्छरों के बीच मंडी में रह रहे हैं और दिन में दो बार खिचड़ी बनाकर गुजारा कर रहे हैं। बिहार में रह रहे उनके परिवार के बारे में जब पूछा गया तो मदन ने कहा, ‘‘ मुझे नहीं पता कि अगर मैं बीमारी की चपेट में आता हूं तो हमारा क्या होगा। मेरे बच्चे, पत्नी और माता-पिता मेरा इंतजार कर रहे हैं। मैं मरते वक्त उनके साथ रहना चाहता हूं। मैं अकेला नहीं मरना चाहता ।’’  

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