दिल्ली हाई कोर्ट में प्रदर्शन करने और धरने पर बैठने वाले पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ याचिका दाखिल, कल सुनवाई
By विनीत कुमार | Published: November 7, 2019 01:45 PM2019-11-07T13:45:43+5:302019-11-07T13:50:17+5:30
इस याचिका में कोर्ट में मामला विचाराधीन होने के बावजूद सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने वाले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग भी की गई है।
तीस हजारी कोर्ट में पिछले हफ्ते दिल्ली पुलिस और वकीलों के बीच झड़प और फिर दोनों पक्षों की ओर से हड़ताल और प्रदर्थन के बावजूद विवाद फिलहाल कम होता नजर नहीं आ रहा है। ताजा मामले में दिल्ली हाई कोर्ट में सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शन करने और धरने पर बैठने वाले दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली याचिका दायर की गई है।
ये याचिका गुरुवार को दायर की गई। इस याचिका में कोर्ट में मामला विचाराधीन होने के बावजूद सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने वाले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग भी की गई है। दिल्ली हाई कोर्ट याचिका पर सुनवाई शुक्रवार को करेगा।
इस बीच दिल्ली के वकील विनोद यादव ने भी 5 नवंबर को हुए दिल्ली पुलिस के प्रदर्शन पर सवाल खड़े कर दिये। विनोद ने सूचना के अधिकार के तहत गृहमंत्राल, उपराज्यपाल और दिल्ली पुलिस कमिश्नर से जानकारी मांगी है कि दिल्ली पुलिस कर्मियों का प्रदर्शन कानूनी था या गैर कानूनी। साथ ही यह भी पूछा गया है कि इसमें शामिल अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है।
बता दें कि शनिवार को तीस हजारी कोर्ट परिसर में हुई हिंसक झड़प की घटना के बाद दिल्ली पुलिसकर्मियों ने मंगलवार को पुलिस मुख्यालय के बाहर करीब 11 घंटे प्रदर्शन किया था। बाद में अनुग्रह राशि सहित कुछ और मांगे मांगे जाने के बाद पुलिसकर्मियों ने धरना खत्म किया था।
दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को गृह मंत्रालय की उस पुनर्विचार याचिका को भी खारिज कर दिया था जिसमें दिल्ली पुलिस और वकीलों के बीच झड़प को लेकर कोर्ट की ओर से तीन नवंबर को दिये गये आदेश में स्पष्टता की मांग की गई थी। हाई कोर्ट ने कहा कि उसके दिए गये आदेश को स्पष्ट करने की जरूरत नहीं है, वह अपने आप में स्पष्ट है।
तीन नवंबर के आदेश में कोर्ट ने था कि तीस हजारी अदालत परिसर में दो नवंबर को पुलिस और वकीलों के बीच झड़प के संबंध में दर्ज प्राथमिकियों के आधार पर वकीलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जायेगी। अपनी अर्जी में केंद्र ने उच्च न्यायालय से इस स्पष्टीकरण का अनुरोध किया था।