अलग रह रही पत्नी और बच्चे को गुजारा भत्ता नहीं देना मानवीय दृष्टिकोण से सबसे बुरा अपराध, कोर्ट ने कहा-यह किसी भी पति या पिता को शोभा नहीं देता

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 19, 2022 07:28 PM2022-07-19T19:28:25+5:302022-07-19T19:29:24+5:30

न्यायमूर्ति आशा मेनन ने कहा कि गुजारे भत्ते के भुगतान में देरी के लिए पतियों द्वारा पत्नियों को आदेश के अमल के लिए याचिकाएं दायर करने के लिहाज से मजबूर करना एक ‘दुखद सच्चाई’ है।

​​​​​​​Delhi High Court said Not giving alimony living wife and child worst crime human point of view it does not suit any husband or father | अलग रह रही पत्नी और बच्चे को गुजारा भत्ता नहीं देना मानवीय दृष्टिकोण से सबसे बुरा अपराध, कोर्ट ने कहा-यह किसी भी पति या पिता को शोभा नहीं देता

पति का आदेश नहीं मानने पर संभवत: उसे सबक सिखाने की अहंकारी प्रवृत्ति के रूप में देखा जा सकता है।

Highlightsपति द्वारा कुटुंब अदालत के आदेश को चुनौती दिये जाने पर 20,000 रुपये का जुर्माना लगाया। पत्नी और बच्चे को 20,000 रुपये का अंतरिम मासिक गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था।अपनी पत्नी को 4,000 रुपये प्रति माह का भुगतान कर सकता है।

नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि अलग रह रही पत्नी और बच्चे को गुजारा भत्ता नहीं देना मानवीय दृष्टिकोण से भी सबसे बुरा अपराध है।

न्यायमूर्ति आशा मेनन ने कहा कि गुजारे भत्ते के भुगतान में देरी के लिए पतियों द्वारा पत्नियों को आदेश के अमल के लिए याचिकाएं दायर करने के लिहाज से मजबूर करना एक ‘दुखद सच्चाई’ है और ‘‘यह किसी भी पति या पिता को शोभा नहीं देता कि वह पत्नी को, जो एक गृहिणी है और अपनी संतान को, जो नाजुक उम्र में है, उचित जीवन स्तर मुहैया नहीं कराये।’’

न्यायाधीश ने याचिका को खारिज करते हुए पति द्वारा कुटुंब अदालत के आदेश को चुनौती दिये जाने पर 20,000 रुपये का जुर्माना लगाया। कुटुंब अदालत ने व्यक्ति को अपनी पत्नी और बच्चे को 20,000 रुपये का अंतरिम मासिक गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था।

याचिकाकर्ता ने कुटुंब अदालत के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि 28,000 रुपये की पगार में उसका खर्च करीब 25,000 रुपये है और इसलिए वह अपनी पत्नी को 4,000 रुपये प्रति माह का भुगतान कर सकता है। अदालत ने कहा कि पत्नी से अलग रह रहे एक पति की दुर्भावनापूर्ण मंशा खुद पर आश्रित पत्नी की व्यथा को देखकर मिलने वाली खुशी के लिए अपनी आय को कम करके दिखाने की है।

इसे पति का आदेश नहीं मानने पर संभवत: उसे सबक सिखाने की अहंकारी प्रवृत्ति के रूप में देखा जा सकता है। अदालत ने ‘रवैये में बदलाव’ की जरूरत बताते हुए कहा कि किसी मुकदमे में कड़वाहट किसी के हित में नहीं है। अदालत ने 18 जुलाई की तारीख के आदेश में कहा, ‘‘अलग रह रही पत्नी और बच्चे को गुजारा भत्ता नहीं देना मानवीय दृष्टिकोण से भी सबसे बुरा अपराध है।

फिर भी दुखद सच्चाई है कि पति भुगतान में देरी के लिए अपनी पत्नियों को आदेश के अमल के लिए याचिकाएं दायर करने के लिए बाध्य करते हैं जबकि एक अदालत ने भी उसके (महिला के) अधिकार तय किये हैं। हालांकि वो भी अंतरिम उपाय के तौर पर किये गये हैं।’’ 

Web Title: ​​​​​​​Delhi High Court said Not giving alimony living wife and child worst crime human point of view it does not suit any husband or father

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