दिल्ली हाई कोर्ट का आदेश- पत्नी को गुजारा भत्ता के तौर पर मिले पति की सैलरी का 30% हिस्सा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 8, 2019 01:34 AM2019-06-08T01:34:39+5:302019-06-08T01:34:39+5:30
कोर्ट ने कहा कि आमदनी के बंटवारे का फॉर्मूला तय है. इसके तहत नियम है कि अगर कोई और निर्भर नहीं हो तो पति की कुल सैलरी के दो हिस्से पति के पास और एक हिस्सा पत्नी को दिया जाएगा.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पति की कुल सैलरी का एक तिहाई हिस्सा पत्नी को गुजारा भत्ते के तौर पर दिया जाए. कोर्ट ने कहा कि आमदनी के बंटवारे का फॉर्मूला तय है. इसके तहत नियम है कि अगर कोई और निर्भर नहीं हो तो पति की कुल सैलरी के दो हिस्से पति के पास और एक हिस्सा पत्नी को दिया जाएगा. कोर्ट ने याचिकाकर्ता महिला की अर्जी पर फैसला सुनाते हुए निर्देश दिया है कि महिला को पति की सैलरी से 30% मिले.
महिला की शादी 7 मई 2006 को हुई थी. उनके पति सीआईएसएफ में इंस्पेक्टर हैं. 15 अक्तूबर 2006 को दोनों अलग हो गए. उसके बाद महिला ने गुजारा भत्ते के लिए अर्जी दी. 21 फरवरी 2008 को महिला का गुजारा भत्ता तय किया गया. इसके तहत उनके पति को निर्देश दिया गया कि वह अपनी कुल सैलरी का 30% पत्नी को दें. फैसले को महिला के पति ने चुनौती दी. ट्रायल कोर्ट ने गुजारा भत्ता 30% से घटाकर सैलरी का 15% कर दिया. तब फैसले को महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी.
महिला के वकील ने दलील दी कि ट्रायल कोर्ट ने गुजारा भत्ता 15% कर दिया और कोई ठोस कारण नहीं बताया. वहीं, पति की ओर से दलील दी गई कि महिला अपने अकाउंट का विवरण बताएं और साफ करें कि अकाउंट में किस-किस सोर्स से पैसे आए. महिला ने अकाउंट विवरण में बताया कि उनके पिता ने खर्चे के लिए पैसे दिए.
हाईकोर्ट के न्यायाधीश संजीव सचदेवा ने अपने फैसले में कहा कि यह तय है कि 21 फरवरी 2008 को जो गुजारा भत्ता तय किया था, उसके तहत महिला को उसके पति की कुल सैलरी का 30% गुजारा भत्ता तय किया गया था. दरअसल, पैसे के बंटवारे का फॉर्मूला तय है. इसी कारण अदालत ने 30% गुजारा भत्ता महिला को देने का कहा था. अदालत ने संबंधित विभाग को निर्देश दिया है कि वह सैलरी से 30% काटकर पत्नी को सीधे भेजे.