दिल्ली हाईकोर्ट ने पति की मौत के 10 साल बाद तलाक को चुनौती देने वाली महिला की याचिका मंजूर की

By भाषा | Published: November 9, 2018 09:56 PM2018-11-09T21:56:03+5:302018-11-09T21:56:03+5:30

न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत आपसी सहमति से तभी तलाक को मंजूरी दी जा सकती है जब फैसले के दिन तक दोनों पक्ष इसके लिए रजामंद हों। 

Delhi High Court approves a woman's petition challenging divorce after 10 years of her husband's death | दिल्ली हाईकोर्ट ने पति की मौत के 10 साल बाद तलाक को चुनौती देने वाली महिला की याचिका मंजूर की

दिल्ली हाईकोर्ट ने पति की मौत के 10 साल बाद तलाक को चुनौती देने वाली महिला की याचिका मंजूर की

दिल्ली उच्च न्यायालय ने तलाक को खारिज करने की मांग करने वाली उस महिला की याचिका पर सुनवाई करने की मंजूरी दे दी है जिसके पति की मौत 10 साल पहले हो गई थी। महिला का दावा है कि निचली अदालत के फैसले के दिन वह अदालत में मौजूद नहीं थी और उसने इस फैसले पर अपनी रजामंदी नहीं दी थी।

न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत आपसी सहमति से तभी तलाक को मंजूरी दी जा सकती है जब फैसले के दिन तक दोनों पक्ष इसके लिए रजामंद हों। 

उच्च न्यायालय ने यह संज्ञान लिया कि मौजूदा मामले में महिला उस दिन निचली अदालत नहीं आई थी जब यह आदेश दिया गया था। अदालत ने कहा कि निचली अदालत को दोनों पक्षों की रजामंदी को सुनना था, लेकिन इस मामले में ‘स्पष्ट तौर पर’ ऐसा नहीं किया गया क्योंकि महिला छह अक्टूबर, 2007 को अदालत नहीं आई थी, जब तलाक का आदेश दिया गया था। 

दोनों की शादी फरवरी, 2001 में हुई थी और चार साल बाद पति ने क्रूरता का आरोप लगाते हुए 2005 में तलाक लेने की अर्जी दायर की।  हालांकि सुनवाई के दौरान वह दोनों एक समझौते पर पहुंचे कि आपसी सहमति से वह तलाक के लिए अर्जी दायर करेंगे और अलग हो जाएंगे। समझौते के अनुसार व्यक्ति को महिला को निर्वाह के लिए 15 लाख रुपये देने थे। 

उच्च न्यायालय ने यह भी संज्ञान लिया कि निचली अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार महिला ने बाद में कहा कि वह तब आपसी सहमति से तलाक देगी जब उसे 28 लाख रुपये मिलेंगे। 

निचली अदालत ने पाया कि पुरुष ने पहले ही महिला को आठ लाख रुपये दे दिये हैं और वह उससे अधिक धन की ‘उगाही’ करना चाहती है। इसके बाद निचली अदालत ने महिला द्वारा रजामंदी नहीं देने की याचिका खारिज कर दी और आपसी सहमति वाले तलाक का फैसला दे दिया। 

निचली अदालत ने तब कहा था कि महिला पुरुष द्वारा चार डिमांड ड्राफ्ट से दिए गए आठ लाख रुपये की राशि लेने के लिए स्वतंत्र है। महिला ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में यह कहते हुए चुनौती दी कि उसने तलाक की मंजूरी नहीं दी थी और वह आदेश के दिन निचली अदालत में मौजूद नहीं थी। 

इस याचिका प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति की 2008 में मौत हो गई और बाद में उसकी मां भी गुजर गई। उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए एक फैसले का हवाला देते हुए अब कहा है कि महिला की अपील पुरुष की मौत के बाद भी उसके कानूनी वारिस के साथ जारी रहेगी। 

उच्च न्यायालय ने हालांकि यह भी कहा कि आठ लाख की जो राशि सावधि जमा (एफडी) में रखी है, वह वास्तविक ब्याज दर के साथ पुरुष के पिता को दी जाए।
 

Web Title: Delhi High Court approves a woman's petition challenging divorce after 10 years of her husband's death

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