जामिया-जेएनयू हिंसा: कपिल सिब्बल का हमला, CAA पर केजरीवाल की कमजोर प्रतिक्रिया से अवसरवादिता की बू आती है
By भाषा | Published: January 19, 2020 03:46 PM2020-01-19T15:46:37+5:302020-01-19T15:46:37+5:30
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘जब राजनीतिक दल सही मकसद के लिए नहीं, बल्कि केवल चुनाव के लिए कोई रुख अपनाते हैं, तब यह समस्या होती है। लोगों को सब दिखाई देता है।’’ सिब्बल ने यह भी आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी (आप) वह वोट बैंक चले जाने के डर से सीएए, एनपीआर और एनआरसी के बारे में अधिक बात नहीं कर रही, जिसकी उसे ‘‘सख्त जरूरत’’ है।
कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने रविवार को कहा कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर हंगामा एवं जामिया-जेएनयू हिंसा दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुख्य मुद्दा रहेंगे और इन मामलों पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ‘‘कमजोर’’ प्रतिक्रिया से ‘‘अवसरवादिता की बू’’ आती है। सिब्बल ने कहा कि कांग्रेस दिल्ली चुनाव में ‘‘अहम’’ भूमिका निभाएगी।
उन्होंने भरोसा जताया कि पार्टी को पर्याप्त सीटें मिल सकती हैं जिनके बल पर वह सरकार गठन में ‘‘निर्णायक भूमिका’’ निभा सकती है। सिब्बल ने कहा, ‘‘वह (केजरीवाल) जामिया (मिल्लिया इस्लामिया) में नहीं आए, वह जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) में नहीं आए। उन्होंने पर्याप्त रूप से बार-बार, मजबूत और खुलकर बयान नहीं दिए।’’ उन्होंने कहा कि आस-पास जो कुछ हो रहा है, उसे लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की कुछ हद तक ‘‘कमजोर’’ प्रतिक्रिया ने सही संकेत नहीं भेजे हैं।
राज्यसभा सांसद एवं दिल्ली चुनाव में कांग्रेस की चुनाव एवं प्रचार समितियों के सदस्य सिब्बल ने कहा, ‘‘इससे अवसरवादिता की बू आती है।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या संशोधित नागरिकता कानून (सीएए), राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) पर व्यापक हंगामा और विश्वविद्यालय परिसरों में हिंसा चुनाव में बड़ा कारक साबित होंगे, सिब्बल ने ‘हां’ में जवाब दिया। उन्होंने कहा, ‘‘केजरीवाल ने किया क्या है? केजरीवाल अभी तक परिसरों में नहीं गए, वे जेएनयू भी नहीं गए, क्योंकि यह राजनीति है।’’
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘जब राजनीतिक दल सही मकसद के लिए नहीं, बल्कि केवल चुनाव के लिए कोई रुख अपनाते हैं, तब यह समस्या होती है। लोगों को सब दिखाई देता है।’’ सिब्बल ने यह भी आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी (आप) वह वोट बैंक चले जाने के डर से सीएए, एनपीआर और एनआरसी के बारे में अधिक बात नहीं कर रही, जिसकी उसे ‘‘सख्त जरूरत’’ है। यह पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस अपने दम पर सरकार बना सकती है, सिब्बल ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि हमें ऐसे बड़े दावे करने चाहिए, लेकिन मुझे लगता है कि हम इस चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे।.... संभवत: हमें इतनी पर्याप्त सीटें मिलेंगी कि हम सरकार गठन में निर्णायक भूमिका निभाएंगे।’’
यह पूछे जाने पर कि यदि कांग्रेस ‘‘निर्णायक कारक’’ के रूप में सामने आती है, तो क्या वह ‘आप’ के साथ हाथ मिला सकती है, सिब्बल ने कहा, ‘‘पहले परिणाम आने दीजिए। हमारी रणनीति क्या है, यह उसी समय सभी को पता चल जाएगी।’’ सिब्बल ने इन बातों को भी नकारा कि किसी लोकप्रिय एवं विश्वसनीय चेहरे के अभाव के कारण चुनाव में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस की जमीनी स्तर पर कार्यप्रणाली के संदर्भ में किसी चेहरे की विश्वसनीयता का पार्टी की विश्वसनीयता से कोई संबंध नहीं है। सिब्बल ने कहा, ‘‘हमारे पास 2014 में (नरेंद्र) मोदी जी का विश्वसनीय चेहरा था, ऐसा भारत के लोगों को लगता था, देखिए, तब से क्या हुआ है। इसलिए चेहरों के बारे में बात मत कीजिए।
आम लोगों का चेहरा, मुख्यमंत्री के चेहरे से अधिक महत्वपूर्ण है।’’ उन्होंने कहा कि केवल कांग्रेस पार्टी ने ही हमेशा आम जन का चेहरा देखा और उनकी चिंताओं को दूर करने की दिशा में काम किया है। कांग्रेस के ‘आप’ को कड़ी चुनौती पेश करने संबंधी एक प्रश्न के उत्तर में सिब्बल ने कहा कि उनकी पार्टी की दिल्ली विधानसभा में कोई सीट नहीं है इसलिए सत्तारूढ़ पार्टी के पास निश्चित ही बढ़त है।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि उन्होंने (आप ने) जमीनी स्तर पर जो किया है, वे उससे अधिक दावा करते हैं। उनकी शानदार मीडिया प्रचार मुहिम है। यह कुछ हद तक हमारे प्रधानमंत्री की मीडिया प्रचार मुहिम की तरह है। वह भी वास्तविकता में किए अपने काम से अधिक का दावा करते हैं। मुझे लगता है कि लोगों को वास्तविकता पता है। देखते हैं कि क्या होता है।’’
कांग्रेस नेता ने दावा किया कि इस चुनाव में भाजपा मुश्किल स्थिति में है क्योंकि उसने ‘‘विश्वसनीयता’’ खो दी है और लोग उससे नाखुश हैं। उन्होंने महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों का उदाहरण दिया, जहां चुनावी विशेषज्ञ गलत साबित हुए हैं। सिब्बल ने कहा कि ‘आप’ का केंद्र से लगातार टकराव बना रहा। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे याद है जब शीला (दीक्षित) जी मुख्यमंत्री थीं और (अटल बिहारी) वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे। हम अलग अलग विचारधाराओं वाले अलग अलग राजनीतिक दल थे, लेकिन हमने मिलकर काम किया था।’’