अदालत ने दिल्ली दंगे में मारे गए नाबालिगों के मुआवजे संबंधी याचिका पर आप सरकार से जवाब मांगा
By भाषा | Published: March 2, 2021 05:33 PM2021-03-02T17:33:35+5:302021-03-02T17:33:35+5:30
नयी दिल्ली, दो मार्च दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान मारे गए दो नाबालिगों के अभिभावकों की उस याचिका पर मंगलवार को दिल्ली सरकार से जवाब मांगा, जिसमें दंगा पीड़ितों की मदद संबंधी सहायता योजना को चुनौती दी गई है, क्योंकि यह नाबालिगों की मौत के लिए परिवार को पर्याप्त मुआवजा मुहैया नहीं कराती।
याचिकाकर्ताओं ने दंगों में मारे गए नाबालिगों के परिवारों के लिए पांच-पांच लाख रुपए अधिकतम मुआवजा और वयस्कों के परिवारों के लिए अधिकतम 10-10 लाख रुपए मुआवजा तय किए जाने को चुनौती दी है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने याचिका पर दिल्ली सरकार और सीलमपुर के उप-मंडलीय मजिस्ट्रेट को नोटिस जारी किए। यह याचिका माकपा नेता वृंदा करात की ओर से दायर की गई है, जिन्होंने उत्तर पूर्वी दिल्ली में हिंसा के इस प्रकार के कुछ पीड़ितों के लिए छात्रवृत्ति मुहैया कराने में अहम भूमिका निभाई है।
अदालत ने प्राधिकारियों से चार सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करने को कहा और मामले को आगे की सुनवाई के लिए 29 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
याचिकाकर्ता राम सुगारत के 15 वर्षीय लड़के की मौत गोकुलपुरी इलाके में पिछले साल 26 फरवरी को आंसू गैस के गोले लगने के कारण हो गई थी और याचिकाकर्ता रिहाना खातून के 17 वर्षीय बेटे की मौत जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास 25 फरवरी, 2020 को सिर में गोली लगने के कारण हो गई थी। दोनों नाबालिग स्कूली छात्र थे और घटना के समय घर के लिए सामान लेने पास के बाजार गए थे।
याचिकाकर्ताओं के वकील करुणा नंदी ने कहा कि दंगे में मारे गए नाबालिगों के परिजन के लिए अधिकतम पांच-पांच लाख रुपए और दंगे में मारे गए वयस्कों के परिजन के लिए अधिकतम 10-10 लाख रुपए मुआवजा तय करने का फैसला मनमाना और अनुचित है। याचिका में दंगे में मारे गए सभी लोगों के परिजनों को 10-10 लाख रुपए का समान मुआवजा दिए जाने का प्राधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
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