अदालत द्वारा नियुक्त समिति को फैसला करने की शक्तियां नहीं : न्यायालय
By भाषा | Published: January 20, 2021 09:13 PM2021-01-20T21:13:52+5:302021-01-20T21:13:52+5:30
नयी दिल्ली, 20 जनवरी उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को स्पष्ट किया कि चार सदस्यीय समिति को गठित करने का मकसद तीन कृषि कानूनों से प्रभावित पक्षों की शिकायत सुनना था और उसने समिति को फैसला करने संबंधी कोई अधिकार नहीं दिया है।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोब्डे और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना तथा वी रामासुब्रमण्यन की एक पीठ ने राज्स्थान के किसान संगठन ‘किसान महापंचायत’ की याचिका पर यह स्पष्टीकरण दिया। संगठन ने न्यायालय द्वारा गठित समिति के बाकी बचे तीन सदस्यों को हटाने और इससे खुद को अलग करने वाले भूपेंद्र सिंह मान की जगह किसी और को लाने की मांग को लेकर याचिका दायर की थी।
शीर्ष अदालत ने 12 जनवरी को तीनों कृषि कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगाने का आदेश देते हुए केंद्र सरकार व दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों के बीच गतिरोध दूर करने के संदर्भ में सिफारिश देने के लिये चार सदस्यीय समिति का गठन किया था।
अदालत द्वारा नियुक्त समिति के सदस्य- भारतीय किसान यूनियन, अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष मान, इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के दक्षिण एशिया निदेशक प्रमोद कुमार, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल धनवट शामिल हैं।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, “समिति को गठित करने का मकसद स्पष्ट था, तीनों स्थगित कानूनों के प्रावधानों से प्रभावित पक्षों की शिकायतों को सुनना।”
उसने कहा, “समिति को फैसला सुनाने की शक्तियां नहीं प्रदत्त की गई हैं। समिति की भूमिका प्रभावित पक्षों की शिकायत सुनने और उसकी जानकारी अदालत को देने की है।
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