न्यायालय ने पत्नी की हत्या के आरोप से व्यक्ति को किया बरी

By भाषा | Published: September 15, 2021 03:54 PM2021-09-15T15:54:26+5:302021-09-15T15:54:26+5:30

Court acquits man of wife's murder charge | न्यायालय ने पत्नी की हत्या के आरोप से व्यक्ति को किया बरी

न्यायालय ने पत्नी की हत्या के आरोप से व्यक्ति को किया बरी

नयी दिल्ली, 15 सितंबर उच्चतम न्यायालय ने पत्नी की हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा पाए एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन द्वारा बताई गई परिस्थितियां अपराध में उसके संभावित निष्कर्ष स्थापित नहीं करती हैं।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने कहा कि केवल पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और फिर धारा 201 (साक्ष्य मिटाना) के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

पीठ ने कहा, “अभियोजन द्वारा स्थापित परिस्थितियों से अपीलकर्ता-आरोपी के अपराध के संबंध में कोई एक संभावित निष्कर्ष नहीं निकलता है।”

शीर्ष अदालत ने कहा कि प्राथमिकी दर्ज करने में देरी के लिए अभियोजन पक्ष की ओर से कोई स्पष्टीकरण पेश नहीं किया गया है। न्यायालय ने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट 18 नवंबर 2011 को उपलब्ध हो गई थी लेकिन प्राथमिकी काफी देर से 25 अगस्त 2012 को दर्ज की गई।

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि जब कोई मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर टिका होता है और आरोपी साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत अपने ऊपर लगे आरोपों का तार्किक जवाब देने में नाकाम रहता है तो ऐसी विफलता साक्ष्यों की श्रृंखला की एक अतिरिक्त कड़ी उपलब्ध करा सकती हैं।

पीठ ने कहा कि न तो अभियोजन पक्ष के गवाहों ने गवाही दी और न ही कोई अन्य सामग्री सामने आई जो यह दर्शाती हो कि याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी के बीच संबंध किसी भी तरह से तनावपूर्ण थे।

उसने कहा कि इसके साथ ही याचिका घर में अकेले नहीं रह रहा था जहां यह घटना हुई और रिकॉर्ड के मुताबिक घटना के दिन और समय पर याचिकाकर्ता के माता-पिता भी मौजूद थे।

शीर्ष अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता के परिवार के अन्य सदस्यों की उपस्थिति यह दर्शाती है कि इसके पीछे कोई अन्य कहानी भी हो सकती है जिसकी पूरी तरह अनदेखी नहीं की जा सकती।

"परिस्थितिजन्य साक्ष्य द्वारा निर्धारित एक मामले में, यदि अभियोजन द्वारा स्थापित की जाने वाली परिस्थितियों की श्रृंखला स्थापित नहीं की जाती है, तो अभियुक्त द्वारा साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत बेगुनाही साबित करने में विफलता बिल्कुल भी प्रासंगिक नहीं है। जब श्रृंखला पूरी नहीं है तो बचाव पक्ष का झूठ आरोपी को दोषी ठहराने का कोई आधार नहीं है।"

न्यायालय ने कहा कि आरोपी नागेंद्र शाह का अपराध साबित नहीं होता है और उन्हें बरी किया जाता है।

अभियोजन के मुताबिक याचिकाकर्ता की पत्नी की मौत जलने के कारण हुई थी।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक मौत का कारण ‘गले के आसपास हाथ और अन्य भोथरी वस्तु से दबाव के कारण दम घुटना था।’

निचली अदालत ने 2013 में उसे उम्र कैद की सजा सुनाई थी और पटना उच्च न्यायालय ने 2019 में इसे बरकरार रखते हुए आरोपी की अपील खारिज कर दी थी।

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Web Title: Court acquits man of wife's murder charge

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