Coronavirus: प्रवासी मजदूर हुए बिहार के लिए रवाना लेकिन अब भी दिल्ली में फंसे

By भाषा | Published: May 9, 2020 05:45 AM2020-05-09T05:45:27+5:302020-05-09T05:45:27+5:30

लॉकडाउन के कई सप्ताह के बाद बिहार के मनीष कुमार की आंखें घर लौटने की उम्मीद से चमक उठी थीं और वह 5000 रुपये उधर लेकर एवं अपना बोरिया बिस्तर बांध कर नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया था लेकिन उसका सपना सपना ही रह गया।

Coronavirus: Migrant laborers left for Bihar but still stranded in Delhi | Coronavirus: प्रवासी मजदूर हुए बिहार के लिए रवाना लेकिन अब भी दिल्ली में फंसे

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

Highlightsबृहस्पतिवार से दो श्रमिक स्पेशल ट्रेनें फंसे हुए लोगों को लेकर मध्य प्रदेश और बिहार के लिए रवाना हुई।उनमें ज्यादातर प्रवासी श्रमिक थे। इन दोनों ट्रेनों में ज्यादातर उन्हीं लोगों को जगह मिली जो दिल्ली सरकार के आश्रयगृहों से थे।

लॉकडाउन के कई सप्ताह के बाद बिहार के मनीष कुमार की आंखें घर लौटने की उम्मीद से चमक उठी थीं और वह 5000 रुपये उधर लेकर एवं अपना बोरिया बिस्तर बांध कर नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया था लेकिन उसका सपना सपना ही रह गया।

अधिकारियों के अनुसार बिहार का 24 वर्षीय यह प्रवासी मजदूर शुक्रवार को दिल्ली से मुजफ्फरपुर के लिए रवाना हुई श्रमिक स्पेशन ट्रेन में चढ़ नहीं पाया क्योंकि उसका नाम उसमें सवार हुए 1200 सौभाग्यशालियों में नहीं था।

कुमार दो अन्य के साथ पांच सौ रुपये देकर टैक्सी से स्टेशन पहुंचा था। वह उन कई फंसे हुए मजदूरों में एक है जिन्होंने जरूरी फार्म भरा था ताकि उसे घर वापस ले जाया जा सके। परंतु उसका नंबर नहीं आया।

बृहस्पतिवार से दो श्रमिक स्पेशल ट्रेनें फंसे हुए लोगों को लेकर मध्य प्रदेश और बिहार के लिए रवाना हुई। उनमें ज्यादातर प्रवासी श्रमिक थे। इन दोनों ट्रेनों में ज्यादातर उन्हीं लोगों को जगह मिली जो दिल्ली सरकार के आश्रयगृहों से थे। लेकिन अब भी एक बड़ा तबका राष्ट्रीय राजधानी में फंसा है जिसके पास काम और रहने की जगह नहीं है।

हैरान परेशान कुमार ने कहा कि वह अपने दोस्त अनिकेत और मोहम्मद रब्बान के साथ 500 रुपये देकर रेलवे स्टेशन पहुंचा था। रब्बान उन्हें रास्ते में मिला था। घर के लिए रवाना होने से पहले अपने एक दोस्त से 5,000 रुपये ले चुके कुमार ने कहा, ‘‘ वैगन-आर लेकर आ रहे एक आदमी ने हमें नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचाने के लिए 500 रुपये मांगा। हम वह 500 रुपये भी गंवा बैठे एवं घर वापस भी नहीं जा सकते।’’

रब्बान को भी उम्मीद थी कि मोतिहारी में अपने घर जाने के लिए वह ट्रेन में सवार हो जाएगा। एक कपड़ा फैक्टरी में काम करने वाले 16 वर्षीय प्रवीण ने कहा कि उसका भी नाम सूची में नहीं है।

कुमार ने कहा, ‘‘फंसे हुए लोगों को अपने गृह राज्य पहुंचाने से जुड़ा ऑनलाइन फार्म हमने भरा था। यह सफलतापूर्वक अपलोड हो गया था लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं मिला। मैंने सोचा, मैं ट्रेन में चढ़ पाऊंगा लेकिन पुलिस ने कहा कि चूंकि मुझे संदेश नहीं आया तो मैं यात्रा नहीं कर सकता।’’

एक्सपोर्ट- इम्पोर्ट कंपनी में काम करने वाले कुमार ने कहा कि लॉकडाउन के बाद उसे उसके मालिक ने नौकरी से यह कहते हुए निकाल दिया कि उसके पास देने के लिए पैसे नहीं है। मकान मालिक भी उससे पैसे मांगने लगा। कुमार ने कहा, ‘‘कोई विकल्प नहीं रहने पर मुझे लगा कि घर जाना बेहतर होगा। अनिकेत की भी वही स्थिति है।
 

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