दर्दनाक: कोरोना काल में हादसे भी ले रहे लोगों की जान, 10 दिन में लगभग 109 प्रवासियों की घर लौटते हुए मौत

By संतोष ठाकुर | Published: May 18, 2020 07:10 AM2020-05-18T07:10:01+5:302020-05-18T07:10:01+5:30

देश भर में कोरोना वायरस के मद्देनजर लगे लॉकडाउन की वजह से लाखों मजदूर पलायन करने के लिए मजबूर हो गए। ट्रेनों के चलाने के बाद भी सड़कों पर मजदूर पैदल चलते दिख रहे हैं।

Coronavirus Lockdown 109 migrants died during return home in 10 days due to road accident | दर्दनाक: कोरोना काल में हादसे भी ले रहे लोगों की जान, 10 दिन में लगभग 109 प्रवासियों की घर लौटते हुए मौत

प्रतीकात्मक तस्वीर

Highlights हर दिन कई मजदूर घर भी पहुंच रहे हैं, लेकिन अनेकानेक सपने रास्ते में ही दम तोड़ रहे हैं. 10 दिन में लगभग 109 लोगों की घर लौटते हुए मौत देश के लिए चिंतन और चिंता का विषय होना चाहिए.

नई दिल्ली:  कोरोना काल में केवल लोग बीमारी से ही दम नहीं तोड़ रहे हैं. भूख, बेरोजगारी, घर वापसी की मजबूरी और सरकारी उदासीनता की वजह से भी लॉकडाउन के पिछले 53 दिन में हर दिन औसत तीन से पांच व्यक्ति ने सड़कों-रेल ट्रैक पर सरकारी व्यवस्था को मुंह चिढ़ाते हुए अपने प्राणों की बलि दी है. यह लोगों के सपनों की अपनों की मौत है. कड़वी हकीकत से रुबरु होने के लिए चंद उदाहरण ही काफी होंगे. इकलौती संतान थी जामलो बीजापुर (छत्तीसगढ़) 13 वर्षीय जामलो मकदम परिवार की इकलौती संतान थी. अपना और मां-बाप का पेट पालने के लिए तेलंगाना के मिर्ची के खेतों में काम करती थी. लॉकडाउन के कारण रोजगार गया तो निकल पड़ी कुछ लोगों के साथ घर. तीन दिन में 150 किमी. चलकर भूख-प्यास से बेहाल हो गई. लोगों ने भलमनसाहत में खाना दिया और लंबे समय से भूखे शरीर को यह हजम नहीं हुआ. जामलो ने घर से केवल 14 किलोमीटर पहले दम तोड़ दिया.

ट्रेन पकड़ने से पहले दम तोड़ा राजस्थान का हरीशचंद्र

ठाणे जिले के भायंदर में बढ़ई का काम करता था. रोजी-रोटी छीन गई तो भूखा-प्यासा, खाली जेब हरीशचंद्र मुंबई-अहमदाबाद हाइवे पर दौड़ने लगा. उम्मीद थी कि घर जाने वाली श्रमिक स्पेशल में उसके लिए कुछ जगह तो होगी. तेज धूप के बीच उसकी ऐसी हालत हो गई कि ट्रेन पकड़ पाने से पहले ही वसई रोड स्टेशन उसने दम तोड़ दिया. पेट और पीठ चिपके थे बेगूसराय के बाकरी निवासी रामजी महतो भी अपने व परिवार के सपनों तथा दो जून की रोटी के लिए दिल्ली आया था.

लॉकडाउन ने फाकाकशी की नौबत ला दी. वह भूख-प्यास के साथ कब दिल्ली से चला किसी को पता नहीं. चलता चला गया और बनारस पहुंचकर दम तोड़ दिया. जब शव मिला तो उसका पेट और पीठ चिपके हुए थे. घर से चार किमी. पहले दम तोड़ा नालासोपारा में रहने वाली 21 वर्षीय सोनाली भी 230 किमी पैदल भूखी प्यासी चलते हुए रत्नागिरी स्थित अपने घर के करीब पहुंच चुकी थी, लेकिन 4 किमी पहले उसने दम तोड़ दिया.

यह तो बस चंद उदाहरण हैं, उन लोगों के जिन्हें हम कहने को तो राष्ट्र निर्माता, राष्ट्र का आधार कहते हैं, लेकिन जब बात उनके सरोकारों की आती है तो कुछ नहीं किया जाता. हर दिन कई मजदूर घर भी पहुंच रहे हैं, लेकिन अनेकानेक सपने रास्ते में ही दम तोड़ रहे हैं. 10 दिन में लगभग 109 लोगों की घर लौटते हुए मौत देश के लिए चिंतन और चिंता का विषय होना चाहिए.

Web Title: Coronavirus Lockdown 109 migrants died during return home in 10 days due to road accident

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