Migrant crisis: क्या हमें चप्पलें पहने विमान में बैठने दिया जाएगा, उड़ान भरेगा, तो कैसा लगेगा, क्या हम सुरक्षित होंगे?, जानिए श्रमिकों ने क्या कहा

By भाषा | Published: May 28, 2020 06:04 PM2020-05-28T18:04:33+5:302020-05-28T18:05:24+5:30

दिल्ली से 10 प्रवासी कामगार जब पहली बार विमान में सफर किए तो उनकी यात्रा यादगार हो गई। उन्होंने कहा कि सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा भी दिन हमलोग के जीवन में आएगा।

Coronavirus Delhi lockdown Shramik Delhi Farmer Buys Flight Tickets For 10 Migrant Workers To Send Them Home In Bihar | Migrant crisis: क्या हमें चप्पलें पहने विमान में बैठने दिया जाएगा, उड़ान भरेगा, तो कैसा लगेगा, क्या हम सुरक्षित होंगे?, जानिए श्रमिकों ने क्या कहा

उन्होंने कभी सपने में नहीं सोचा था कि उन्हें विमान में बैठने का मौका मिलेगा. (file photo)

Highlightsडरे हुए प्रवासी श्रमिक जब सीटों पर बैठे और विमान ने उड़ान भरी तो कुछ ने तो डर के कारण अपनी आंखें बंद कर लीं। समस्तीपुर के रहने वाले ये श्रमिक कोरोना वायरस को काबू करने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के कारण दिल्ली में फंस गए थे।

नई दिल्लीः क्या हमें चप्पलें पहने विमान में बैठने दिया जाएगा? जब विमान उड़ान भरेगा, तो कैसा लगेगा? क्या हम सुरक्षित होंगे?... इसी तरह के तमाम प्रश्न उन 10 प्रवासी श्रमिकों के दिमाग में घूम रहे थे, जिन्हें उनके नियोक्ता एवं दिल्ली के एक किसान ने उनके गृह राज्य बिहार विमान से भेजने की व्यवस्था की और वे पहली बार विमान में सवार हुए।

पहली बार विमान में बैठने वाले इन श्रमिकों में शामिल नवीन राम ने पटना पहुंचने के बाद ‘पीटीआई भाषा’ से कहा कि हवाईअड्डे की औपचारिकताओं को देखकर डर लग रहा था, लेकिन उन्होंने एक अधिकारी से मदद मांगी, जिसने उन्हें विमान तक पहुंचाया। नवीन ने कहा कि उत्साहित और डरे हुए प्रवासी श्रमिक जब सीटों पर बैठे और विमान ने उड़ान भरी तो कुछ ने तो डर के कारण अपनी आंखें बंद कर लीं।

बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले ये श्रमिक कोरोना वायरस को काबू करने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के कारण दिल्ली में फंस गए थे। उन्होंने कभी सपने में नहीं सोचा था कि उन्हें विमान में बैठने का मौका मिलेगा, लेकिन दिल्ली के तिगीपुर गांव में मशरूम की खेती करने वाले उनके नियोक्ता पप्पन सिंह ने इन श्रमिकों के लिए टिकट खरीदे। नवीन ने कहा कि उन्हें यह अनुभव हमेशा याद रहेगा। उसने कहा, ‘‘जब हम जूट के थैले लिए और चप्पल पहने हवाईअड्डे पर पहुंचे तो लोग हमें घूर रहे थे।’’

27 वर्षीय नवीन ने कहा, ‘‘हमने उनकी तरह अच्छे कपड़े नहीं पहने थे। हमें नहीं पता था कि हमें हवाईअड्डा पहुंचने के बाद क्या करना है क्योंकि हम पहले कभी विमान में नहीं बैठे। हमने वहां एक अधिकारी से मदद ली।’’ इन श्रमिकों के बारे में सबसे पहले खबर देने वाले ‘पीटीआई-भाषा’ के एक पत्रकार ने उन्हें हवाईअड्डा ले जाने और औपचारिकताएं पूरी करने में उनकी मदद के लिए एक अधिकारी का प्रबंध किया। उसने कहा, ‘‘हम अपने परिवार से मिलना चाहते थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा था। हममें से किसी ने कभी यह नहीं सोचा था कि हम एक दिन विमान से घर जाएंगे।’’

जब देश में प्रवासी मजदूरों के भूख-प्यास से लड़ते हुए तमाम मुश्किलों के बाद पैदल, साइकिलों, बसों और ट्रेनों से अपने गृह राज्यों की ओर जाने की कहानियां सामने आ रही हैं, तब ऐसे में प्रवासी मजदूरों के इस समूह की रोमांचक यात्रा विमान के पटना उतरने पर समाप्त नहीं हुई। इस समूह में शामिल एक अन्य प्रवासी श्रमिक जितेंद्र राम ने बताया कि जब वे दिल्ली से सुबह छह बजे की उड़ान से पटना हवाईअड्डा पहुंचे तो कई मीडियाकर्मी उनसे बात करने के लिए इंतजार कर रहे थे।

जितेंद्र ने कहा, ‘‘हमने कभी नहीं सोचा था कि हम खबरों में आएंगे। मेरे दोस्त ने मुझे फोन किया और बताया कि वह मुझे समाचार चैनल पर देख रहा है। हम इस शानदार अनुभव को हमेशा याद रखेंगे।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या वे लॉकडाउन समाप्त होने के बाद दिल्ली आएंगे, नवीन ने कहा, ‘‘निश्चित ही जब हमारे मालिक (नियोक्ता) हमें बुलाएंगे, हम दिल्ली आएंगे।’’ समूह में शामिल एक अन्य प्रवासी ने लखींद्र राम ने कहा, ‘‘हम अपने नियोक्ता को कैसे छोड़ सकते हैं, जिसे हमारा इतना ख्याल रखा? हम अगस्त से अंत तक वापस आएंगे। हमने उन्हें वादा किया है।’’

पप्पन सिंह ने ‘पीटीआई भाषा’ से कहा, ‘‘मैं बहुत खुश हूं कि वे अंतत: अपने गृहराज्य पहुंच गए।’’ पप्पन ने इन श्रमिकों को पटना से समस्तीपुर पहुंचाने के लिए भी वाहन का प्रबंध किया। उन्होंने श्रमिकों के लिए 68,000 रूपये के टिकट बुक कराए और उन्हें तीन-तीन हजार रुपए दिए ताकि उन्हें घर पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं हो। पप्पन ने बताया कि उन्होंने श्रमिकों को श्रमिक विशेष ट्रेन से भी घर भेजने की कोशिश की थी, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया।

उसने कहा, ‘‘मैं अपने कर्मियों को हजारों मील पैदल जाने की अनुमति देने का खतरा नहीं उठा सकता था। इससे उनके जीवन को खतरा होता। हमने कई खबरें सुनी हैं कि घर लौट रहे कई प्रवासी श्रमिक इन दिनों सड़क हादसों का शिकार हो रहे हैं।’’ पप्पन सिंह ने बताया कि हवाईअड्डा पहुंचाने से लेकर हवाई जहाज में सवार होने तक हर कदम पर वह लगातार फोन के जरिए उनके संपर्क में रहे और पूछते रहे-जैसे, सब कुछ ठीक ठाक है, बोर्डिंग पास हैं? सामान सब ध्यान से रख लिया ना? 

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