प्रवासी कामगारों के हौसले की कहानी, गुरुग्राम से पिता को साइकिल पर बैठा 15 वर्षीय लड़की 8 दिन में दरभंगा पहुंची

By भाषा | Published: May 19, 2020 08:30 PM2020-05-19T20:30:05+5:302020-05-19T20:31:03+5:30

देश भर में जारी लॉकडाउन के बीच प्रवासी कामगार की कहानी भी लोगों को सुनने को मिल रही है। हरियाणा के गुरुग्राम से 15 साल की लड़की अपने पिता को साइकिल पर बैठा कर बिहार के दरभंगा पहुंच गई। लोगों ने कहा कि आज की श्रवण कुमार।

Coronavirus Delhi lockdown haryana bihar migrant workers 15-year-old girl sitting bicycle from Gurugram to father reached Darbhanga in 8 days | प्रवासी कामगारों के हौसले की कहानी, गुरुग्राम से पिता को साइकिल पर बैठा 15 वर्षीय लड़की 8 दिन में दरभंगा पहुंची

आर्थिक तंगी के मद्देनजर ज्योति के साइकिल से अपने पिता को सुरक्षित घर तक पहुंचाने की ठानी। (file photo)

Highlightsदरभंगा जिला के सिंहवाड़ा प्रखण्ड के सिरहुल्ली गांव निवासी मोहन पासवान गुरुग्राम में रहकर टेम्पो चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण किया करते थे।दुर्घटना के बाद अपने पिता की देखभाल के लिये 15 वर्षीय ज्योति कुमारी वहां चली गई थी।

दरभंगाः लॉकडाउन के दौरान प्रवासी कामगारों के हौसले की एक कहानी बिहार से सामने आई जब हरियाणा के गुरुग्राम से अपने पिता को साइकिल पर बैठा 15 साल की एक लड़की बिहार के दरभंगा पहुंच गई।

दरभंगा जिला के सिंहवाड़ा प्रखण्ड के सिरहुल्ली गांव निवासी मोहन पासवान गुरुग्राम में रहकर टेम्पो चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण किया करते थे पर इसी बीच वे दुर्घटना के शिकार हो गए। दुर्घटना के बाद अपने पिता की देखभाल के लिये 15 वर्षीय ज्योति कुमारी वहां चली गई थी पर इसी बीच कोरोना वायरस की वजह से देशव्यापी बंदी हो गयी।

आर्थिक तंगी के मद्देनजर ज्योति के साइकिल से अपने पिता को सुरक्षित घर तक पहुंचाने की ठानी। बेटी की जिद पर उसके पिता ने कुछ रुपये कर्ज लेकर एक पुरानी साइकिल साइकिल खरीदी । ज्योति अपने पिता को उक्त साईकिल के कैरियर पर एक बैग लिए बिठाए आठ दिनों की लंबी और कष्टदायी यात्रा के बाद अपने गांव सिरहुल्ली पहुंची है।

गांव से कुछ दूरी पर अपने पिता के साथ एक पृथक-वास केंद्र में रह रही ज्योति अब अपने पिता के हरियाणा वापस नहीं जाने को कृतसंकल्पित है। वहीं ज्योति के पिता ने कहा कि वह वास्तव में मेरी “श्रवण कुमार” है। 

रामपुकार को अस्पताल से मिली छुट्टी, साइकिल से घर गए

देश भर में लॉकडाउन की मार झेल रहे प्रवासी मजदूरों का चेहरा बन चुके रामपुकार पंडित अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद अपने घर पहुंचे। अंतत: दुख की घड़ी में परिवार के साथ नहीं रह पाने की उनकी तड़प अब थोड़ी कम होगी। रामपुकार पंडित को बिहार के बेगूसराय जिले में एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां से उन्हें सोमवार शाम को छुट्टी दे दी गई।

उसके बाद वे परिवार के एक सदस्य के साथ साइकिल पर बैठकर अस्पताल से 12 किमी दूर अपने घर पहुंचे। रामपुकार ने मंगलवार को पीटीआई-भाषा को बताया कि, “मेरी जांच रिपोर्ट(कोरोना वायरस) निगेटिव आयी है इसलिए मुझे परिवार के किसी सदस्य के साथ घर जाने को कहा गया।” यह पूछने पर कि उन्होंने अस्पताल से वाहन मुहैया कराने को कहा या नहीं, तो रामपुकार ने कहा कि हमने एक बार पूछा लेकिन हमारे लिए कोई वाहन उप्लब्ध नहीं होने के कारण मेरी पत्नी, भतीजा और मैं साइकिल से निकल पड़े।

मैं अपनी बेटियों से मिलना चाहता था। बेगुसराय जिला प्रशासन से इस घटना के बार में कोई टिप्पणी नहीं मिल पायी। बता दें कि बेटे की मौत की खबर पाकर हताश रामपुकार लॉकडाउन में बड़ी कठिनाई से दिल्ली से बिहार पहुंचे। अपने एक साल के बेटे को खोने के बाद टूट चुका बाप अपने परिवार को गले लगाने को तड़प रहा था। शनिवार को उनकी पत्नी और बेटी पूनम जिले के खुदावंदपुर ब्लॉक के अस्पताल में उनसे मिलने आयी थीं, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें थोड़ी दूर से ही मिलने की अनुमति दी।

कुछ दिन पहले मोबाइल फोन पर बात करते समय रोते हुए रामपुकार पंडित की तस्वीर ने सुर्खियों में आकर लोगों की संवेदनाएं जगा दी थी। उनकी तस्वीर लॉकडाउन के कारण आजीविका खो चुके दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों की त्रासदी का प्रतीक बन गई हैं। रामपुकार की पत्नी बिमला देवी ने बताया कि कुछ दिन पहले पेपर में इनकी तस्वीर देखकर खगड़िया से एक आदमी इन्हें देखने आया और उसने हमें चावल, दाल सहित कुछ राशन का सामान देकर हमारी मदद की। दिल्ली से करीब 1200 किलोमीटर दूर बेगूसराय में अपने घर पहुंचने के लिए जूझ रहे 38 वर्षीय रामपुकार की तस्वीर मीडिया में साझा किए जाने के बाद उन्हें बिहार तक पहुंचने में मदद मिल गई।

रामपुकार की किसी समरितन महिला ने भोजन और 5500 रुपये देकर मदद की। साथ ही, दिल्ली से बेगुसराय जाने के लिए उनकी टिकट भी कराई। वह निजामुद्दीन पुल पर तीन दिनों से फंसे हुए थे। तभी, उन्हें मदद मिली। दिल्ली में एक वाहन में बैठाकर उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां उनकी कोविड-19 की जांच की गई। रामपुकार ने शनिवार को बताया था कि जांच रिपोर्ट निगेटिव थी।

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