कोविड-19 और लॉकडाउनः केंद्र, राज्य सरकारों पर विज्ञापनों की 1800 करोड़ रुपए से ज्यादा धनराशि बकाया, INS ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

By भाषा | Published: May 20, 2020 07:13 PM2020-05-20T19:13:24+5:302020-05-20T19:13:24+5:30

इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर कर कहा कि केंद्र और राज्य सरकार विज्ञापन का पैसा नहीं दे रहे। सरकार पर लगभग 1800 करोड़ रुपये बाकी है।

Coronavirus Delhi lockdown ‘Government must pay up advertising dues’, Indian Newspaper Society tells Supreme Court | कोविड-19 और लॉकडाउनः केंद्र, राज्य सरकारों पर विज्ञापनों की 1800 करोड़ रुपए से ज्यादा धनराशि बकाया, INS ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा जारी किए गए नोटिस के जवाब में दाखिल हलफनामे में यह जानकारी दी। (file photo)

Highlightsइंडियन न्यूजपेपर सोसायटी ने मीडिया उद्योग की माली स्थिति को रेखांकित करते हुये एक हलफनामा न्यायालय में दाखिल किया है।न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन ने भी एक अलग हलफनामे में इस तथ्य की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया है।

नई दिल्लीः समाचार पत्रों के संगठन आईएनएस ने उच्चतम न्यायालय में बुधवार को कहा कि केन्द्र और राज्य सरकारों पर विज्ञापनों की मद में विभिन्न समाचार पत्रों की, 1800 करोड़ रुपए से ज्यादा धनराशि बकाया है और निकट भविष्य में यह बकाया रकम मिलने की संभावना बहुत ही कम है।

इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी ने मीडिया उद्योग की माली स्थिति को रेखांकित करते हुये एक हलफनामा न्यायालय में दाखिल किया है। न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन ने भी एक अलग हलफनामे में इस तथ्य की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया है।

इन दोनों संगठनों ने पत्रकारों के तीन संगठन- नेशनल अलायंस आफ जर्नलिस्ट्स , दिल्ली यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स और बृहन्नमुंबई यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स- की जनहित याचिका पर न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा जारी किए गए नोटिस के जवाब में दाखिल हलफनामे में यह जानकारी दी।

आईएनएस से अलग एनबीए द्वारा दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन की वजह से समाचार उद्योग का कारोबार गंभीर आर्थिक संकट में आ गया है और इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ है। एनबीए ने इस स्थिति को अप्रत्याशित बताते हुये कहा है कि समाचार उद्योग को इस आर्थिक संकट से उबारने के लिये किसी पैकेज या उपायों की, सरकार ने अभी तक कोई घोषणा नहीं की है, जबकि यह चरमराने के कगार पर पहुंच गया है।

पत्रकारों के संगठनों ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि 25 मार्च को देश में लॉकडाउन लागू होने का हवाला देते हुये समाचार पत्रों के प्रबंधक पत्रकारों सहित कर्मचारियों की सेवायें खत्म कर रहे हैं, मनमाने तरीके से उनके वेतन में कटौती की जा रही है, तथा कर्मचारियों को अनिश्चितकाल के लिये बगैर वेतन, छुट्टी पर भेजा जा रहा है। आईएनएस ने अपने हलफनामे में कहा है कि विभिन्न उद्योगों के अनुमान के अनुसार, डीएवीपी पर विज्ञापनों का 1500 से 1800 करोड़ रुपए बकाया है। इसमे से 800 से 900 करोड़ रूपए अकेले प्रिंट मीडिया उद्योग का है। हलफनामे के अनुसार, इतनी बड़ी राशि कई महीनों से बकाया है और निकट भविष्य में इसका भुगतान होने की संभावना बहुत ही कम है।

हलफनामे में यह भी कहा गया है कि सरकारी विज्ञापनों में करीब 80 से 85 प्रतिशत की कमी हुयी है और लॉकडाउन की वजह से कुछ विज्ञापनों में करीब 90 प्रतिशत की गिरावट हुयी है। आईएनएस ने कहा है कि मीडिया और मनोरंजन उद्योग एफएमसीजी, ई-कामर्स, वित्तीय कंपनियों और आटोमोबाइल उद्योग जैसे दूसरे उद्योगों द्वारा विज्ञापनों पर खर्च होने वाली राशि पर ही फलता फूलता है लेकिन लॉकडाउन की वजह से यह बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

आईएनएस के अनुसार, विज्ञापनों में कमी की वजह से अनेक समाचार पत्र पत्रिकाओं को अपने प्रकाशन के पन्नों की संख्या कम करनी पड़ी है और कुछ समाचार पत्रों को अपने मुद्रित संस्करण बंद करने पड़े हैं क्योंकि इसका वितरण करने वालों ने अखबार उठाने से इंकार कर दिया है। इन संगठनों ने जनहित याचिका खारिज करने का अनुरोध करते हुये हलफनामों में कहा है कि अनेक समाचार ब्रॉडकास्टर उसके सदस्य हैं और ये सभी निजी प्रतिष्ठान हैं। इसलिए इनके खिलाफ कोई रिट याचिका दायर नहीं की जा सकती।

पत्रकारों के संगठनों ने मीडिया से संबंधित कारोबार करने वाले सभी प्रतिष्ठानों-समाचार पत्र और डिजिटल मीडिया प्रतिष्ठान- को कर्मचारियों को नौकरी से हटाने, वेतन में कटौती और वेतन के बगैर ही छुट्टी पर भेजे जाने के बारे में लिखित या मौखिक रूप से दिए गए सभी नोटिस अगले आदेश तक निलंबित रखने का निर्देश देने का अनुरोध किया है। 

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