बिहार: मिड-डे मील न मिलने से कबाड़ बीनने को मजबूर बच्चे, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने नोटिस जारी किया

By एस पी सिन्हा | Published: July 11, 2020 03:48 PM2020-07-11T15:48:05+5:302020-07-11T15:48:05+5:30

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बिहार सरकार के मुख्य सचिव के साथ साथ केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जबाव मांगा है. आयोग को यह जानकारी मिली है कि बिहार में कोरोना संकट के बीच सरकारी स्कूलों के बच्चों का मिड डे मील बंद कर दिया गया है.

corona crises in Bihar bhagalpur mid day meal childres selling-scrap-nhrc-notice | बिहार: मिड-डे मील न मिलने से कबाड़ बीनने को मजबूर बच्चे, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने नोटिस जारी किया

बिहार के भागलपुर की ये रिपोर्ट मानवाधिकार आयोग के संज्ञान में आया था, जिसके बाद आयोग में हरकत में आया है.

Highlights राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बिहार में मिड डे मील नहीं मिलने के कारण गहरी नाराजगी जाहिर की है राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने नीतीश सरकार के साथ साथ केंद्र को भी नोटिस भेजा है

पटना: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बिहार में मिड डे मील नहीं मिलने के कारण के सरकारी स्कूलों के बच्चों के भीख मांग कर और कूड़ा चुनकर भोजन जुटाने की बात सामने आने पर गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए मामले का स्वतः संज्ञान लिया है. कोरोना संकट के बीच नीतीश सरकार द्वारा मिड डे मील का पैसा बंद कर दिये जाने की खबरों से नाराज मानवाधिकार आयोग ने बिहार सरकार के साथ साथ केंद्र सरकार को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बिहार सरकार के मुख्य सचिव के साथ साथ केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जबाव मांगा है. आयोग को यह जानकारी मिली है कि बिहार में कोरोना संकट के बीच सरकारी स्कूलों के बच्चों का मिड डे मील बंद कर दिया गया है. इसके कारण स्कूली बच्चे भीख मांगने से लेकर कूडा चुनने जैसे काम कर अपने लिए खाना जुटा रहे हैं. बिहार के भागलपुर की ये रिपोर्ट मानवाधिकार आयोग के संज्ञान में आया था, जिसके बाद आयोग में हरकत में आया है. आयोग के मुताबिक ये खबर मिली है कि बिहार के स्कूली बच्चों को मिड डे मील में रोटी-चावल के साथ साथ दाल-सब्जी और अंडा दिया जाता था. इसे बंद कर दिया गया है. इसके बाद बच्चों को गंदे काम करने पड रहे हैं. गरीब परिवार से आने वाले बच्चे अब कूडा चुन रहे हैं, भीख मांग रहे हैं या फिर ठेकेदारों के पास काम करने लगे हैं. बच्चे अब कुपोषण का भी शिकार हो रहे हैं. आयोग के समक्ष जो रिपोर्ट आई है, उसमें भागलपुर के डीएम ने दावा किया है कि मिड डे मील का पैसा स्कूली बच्चों के अभिभावकों के बैंक अकाउंट में भेज दिया गया है. वहीं, आयोग ने कहा है कि पूरे देश में कोरोना को लेकर संकट है. लेकिन किसी दूसरे राज्य के बच्चों की ये स्थिति नहीं है. लिहाजा बिहार सरकार के साथ साथ केंद्र सरकार से जवाब मांगा गया है. 

मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि मिड डे मिल योजना के तहत स्कूली बच्चों को खाना देना, उनके शिक्षा और भोजन के अधिकार से जुडा मामला है. भारत के संविधान के अनुच्छेद 21-ए के तहत शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है. 2009 में संसद से पास शिक्षा का अधिकार कानून के तहत भी सभी बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देना है. आयोग ने कहा है कि मिड डे मील के कारण गरीब परिवार के बच्चे स्कूल जा रहे थे. इससे न सिर्फ उन्हें शिक्षा मिल रही थी बल्कि वे कुपोषण का शिकार बनने से भी बच रहे थे. आयोग को मिली जानकारी के मुताबिक बिहार के भागलपुर में बच्चों को मिड डे मील नहीं दिया जा रहा है. भागलपुर के ग्रामीणों ने बताया कि कोरोना के कारण गरीबों के घर में खाने-पीने के सामान की भारी किल्लत हो गई है. इस बीच मिड डे मील भी बंद है. ऐसे में स्कूली बच्चों को कूडा चुनने, भीख मांगने जैसे काम कर रहे हैं ताकि दिन भर में 10-20 रूपये कमा सकें. ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें राज्य सरकार से मिड डे मील के लिए कोई पैसा नहीं मिला है. वहीं, भागलपुर के शांति देवी कन्या विद्यालय के प्राधानध्यापक ने बताया कि लॉकडाउन-2 के दौरान अप्रैल महीने में कुछ पैसे बच्चों के अभिभावकों के बैंक खाते में ट्रांसफर किये गये थे. लेकिन उसके बाद से एक पैसा नहीं आया है. स्कूल के प्राधानाध्यापक ने बताया कि उनके स्कूल में 265 बच्चे हैं और उनके लिए जो पैसे देने की घोषणा की गई है वो एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं है.

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