कूच बिहार गोलीबारी अहम मोड़ साबित होगी, भाजपा को तपिश का सामना करना पड़ सकता है: बिमल गुरुंग
By भाषा | Published: April 11, 2021 05:47 PM2021-04-11T17:47:17+5:302021-04-11T17:47:17+5:30
(प्रदीप तापदार)
दार्जिलिंग, 11 अप्रैल गोरखा जन मुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के एक धड़े के प्रमुख बिमल गुरुंग ने कहा है कि कूच बिहार में सीआईएसएफ द्वारा की गई गोलीबारी में चार लोगों की मौत की घटना बंगाल चुनाव में ‘अहम मोड़’ साबित होगी। साथ ही उन्होंने दावा किया कि राज्य के उत्तरी हिस्से में शेष चार चरणों के चुनाव में भाजपा को लोगों के गुस्से का सामना करना होगा।
गुरुंग ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में फिर दोहराया कि पूर्ण राज्य की मांग पहाड़ों पर रहने वाले हर गोरखा का सपना है और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का स्थायी राजनीतिक समाधान के लिए पैरवी करना तथा दार्जिलिंग और आसपास के इलाके का समग्र विकास करने की बात कहना ‘बहुत उत्साहजनक’ है।
फर्जी वादों से 12 साल तक गोरखा जाति को धोखा देना का भाजपा पर इल्ज़ाम लगाते हुए गुरुंग ने कहा कि वह ममता बनर्जी के साथ मिलकर भगवा खेमे को ऐसा सबक सिखाएंगे जो वह जिंदगी भर याद रखेगा।
गुरुंग पिछले साल अक्टूबर में भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) छोड़ टीएमसी के साथ आ गए थे।
उन्होंने कहा, “ बेगुनाह लोगों को चाहे पुलिस मारे या केंद्रीय बल, यह स्वीकार्य नहीं है। कूच बिहार में मतदान के दिन जो हुआ है वह नरसंहार से कम नहीं है। भाजपा उत्तर बंगाल में इसकी तपिश महसूस करेगी। पार्टी क्षेत्र से साफ हो जाएगी।”
बता दें कि कूच बिहार के सीतलकूची इलाके में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की गोलीबारी में चार लोगों की मौत हो गई है और चार लोग जख्मी हुए हैं। इस घटना से राजनीतिक तूफान आ गया है जबकि केंद्रीय बल का दावा है कि गोली ‘आत्मरक्षा’ में चलाई गई है। वहीं टीएमसी ने इसे मतदाताओं को डराने के लिए सोच-समझकर की गई हत्या बताया है।
गुरुंग ने कहा, “ 2017 के गोरखालैंड आंदोलन के दौरान कई लोगों की हत्या की गई थी… बाद में 2019 के आम चुनाव में टीएमसी को इसकी तपिश का सामना करना पड़ा था जब वह उत्तर बंगाल की सभी आठ लोकसभा सीटें हार गई थी। इस बार, भाजपा के साथ भी यही होगा। ”
उन्होंने कहा, “भाजपा उत्तर बंगाल में इसलिए अच्छा प्रदर्शन कर पाई थी, क्योंकि हमने 2019 में पार्टी का साथ दिया था। उसने दार्जिलिंग सीट 2009 से तीन बार जीती है। इन वर्षों में, गोरखाओं को एहसास हो गया है कि भगवा खेमा उन्हें फर्जी वादों से सिर्फ ठग रहा है। इस चुनाव में उसे जबर्दस्त सबक मिलेगा।”
उत्तर बंगाल के सात जिलों की 54 सीटें इन विधानसभा चुनावों में अहम साबित हो सकती हैं। भाजपा क्षेत्र का अपना किला बचाने की कोशिश कर रही है तो टीएमसी अपनी खोई जमीन फिर से पाने के लिए जुटी हुई है।
वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने उत्तर बंगाल में 25 सीटें जीती थीं, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में सारे समीकरण बदल गए थे और भाजपा ने क्षेत्र की आठ में से सात लोकसभा सीटें जीत ली थीं और कम से कम 35 विधानसभा क्षेत्रों में आगे थी।
गुरुंग का कम से कम 15 विधानसभा सीटों और 11 गोरखा समुदायों पर दबदबा है।
पिछले साल खेमा बदलने को जायज़ ठहराते हुए उन्होंने कहा, “ हमें ममता बनर्जी में पूरा विश्वास है। उन्होंने पहाड़ी क्षेत्र में स्थायी राजनीतिक समाधान लाने का वादा किया है।”
यह कहते हुए कि गोरखालैंड की मांग हमेशा उनके संगठन के लिए "सबसे प्रासंगिक" मुद्दा होगी, गुरुंग ने कहा कि क्षेत्र में बुनियादी ढांचे का समग्र विकास फिलहाल उनकी सूची में सबसे ऊपर है।
उन्होंने कहा, “ पहाड़ी लोगों का मुख्य आधार, चाय, लकड़ी और पर्यटन है। ये तीनों उद्योग कोविड-19 महामारी के कारण बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। लोग अब नौकरी, विकास और बेहतर जीवन स्तर चाहते हैं।”
दार्जिलिंग में जून 2017 में हुए संघर्ष के बाद गुरुंग छुप गए थे। उनके खिलाफ 120 से अधिक मुकदमे दर्ज किए गए थे जिनमें से कुछ गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत भी थे। इस आंदोलन से जीजेएम भी बंट गई और संगठन के वरिष्ठ नेता बिनय तमांग एक धड़े के नेता के तौर पर उभरे।
सत्तारूढ़ पार्टी ने उत्तर बंगाल में ‘पहाड़ों के अपने दोस्तों‘ के लिए तीन सीटें छोड़ी हैं। इन सीटों पर जीजेएम के दोनों धड़े निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।
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