पंजाब में 'आप' के बढ़ते प्रभाव की वजह से कांग्रेस को खेलना पड़ा 'दलित कार्ड'! उत्तराखंड से भी उठी मांग
By हरीश गुप्ता | Published: September 22, 2021 07:41 AM2021-09-22T07:41:30+5:302021-09-22T07:41:30+5:30
हाल में एक सर्वेक्षण के अनुसार उत्तराखंड में जहां कांग्रेस का 19 प्रतिशत वोटरों पर प्रभाव है, वहीं आप तेजी से जनाधार बढ़ा रही है। आप की पहुंच अब करीब 18 प्रतिशत वोटरों तक हो गई है।
नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (आप) के पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में बढ़ते प्रभाव का असर है कि कांग्रेस को दलित कार्ड खेलना पड़ा है। चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में दलित नेता को पंजाब का सीएम बनाने के बाद अब उत्तराखंड से भी ऐसी ही मांगे उठने लगी हैं। यहां भी किसी दलित को राज्य में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की मांग जोर-शोर से की जा रही है।
पंजाब में यदि 34 प्रतिशत दलित वोटर हैं तो उत्तराखंड में भी आंकड़ा कम नहीं है। यहां 18 प्रतिशत वोटर दलित समुदाय से हैं। इसी वजह से पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अगले वर्ष के प्रारंभ में होने वाले विधानसभा चुनाव में स्वयं उतरने का ऐलान करते हुए सार्वजनिक तौर पर किसी दलित को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बनाने की घोषणा कर दी है।
कांग्रेस के पास प्रमुख दलित चेहरा नहीं
वर्तमान भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ठाकुर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। राज्य में पिछले तीन मुख्यमंत्री इसी समुदाय से् संबंधित थे। हरीश रावत जो स्वयं ठाकुर हैं, 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे।
हालांकि, कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। रावत ने यह जानते हुए भी कि कांग्रेस के पास राज्य में प्रमुख दलित चेहरा नहीं है, यह कार्ड खेला है।
इसे दलितों को कांग्रेस के करीब लाने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस आलाकमान जान गया है कि उत्तराखंड में आप तेजी से कांग्रेस के विकल्प के तौर पर उभर रही है।
रावत फिलहाल पंजाब में कांग्रेस के प्रभारी की भूमिका निभा रहे हैं। वे गेमचेंजर के रूप में उभऱे हैं। अमरिंदर सिंह के बदले रातों-रात राज्य में दलित चेहरे को मुख्यमंत्री की कु्र्सी पर बिठा देने में उनकी बड़ी भूमिका रही है।
सत्ता विरोधी लहर से जूझ सकती है भाजपा
हाल में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार उत्तराखंड में जहां कांग्रेस का 19 प्रतिशत वोटरों पर प्रभाव है, वहीं आप तेजी से जनाधार बढ़ा रही है। उसकी पहुंच अब करीब 18 प्रतिशत वोटरों तक हो गई है।
राज्य की भाजपा नीत सरकार की पकड़ भले ही मजबूत नजर आ रही है, लेकिन चुनाव में पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है। इसकी मुख्य वजह महामारी से निपटने में नाकामी तथा चार महीने के भीतर दो मुख्यमंत्रियों को बदल देना है।