कांग्रेस का हाथ चंद्रशेखर के साथ? प्रियंका गांधी कर रही हैं लोकसभा चुनाव 2019 से आगे की तैयारी
By निखिल वर्मा | Published: March 18, 2019 01:11 PM2019-03-18T13:11:38+5:302019-03-18T14:56:45+5:30
1990 के दशक में मंडल आंदोलन से निकले दलों और बहुजन समाज पार्टी ने हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस को बेहद कमजोर किया है। उत्तर प्रदेश में बसपा के उभार के पहले दलित वोट कांग्रेस में जाता था लेकिन आज इस पर बसपा का एकछत्र राज है।
उत्तर प्रदेश में पिछले 30 सालों से सत्ता से बाहर कांग्रेस राज्य में दोबारा पैठ बनाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। प्रियंका गांधी वाड्रा और ज्योतिरादित्य सिंधिया को उत्तर प्रदेश के रण में उतारकर कांग्रेस ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वो राज्य में अब आखिरी नंबर की खिलाड़ी नहीं रहना चाहती। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा प्रियंका-सिंधिया को इस लोकसभा चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश विधानसभा 2022 में जीत का खाका तैयार करने के लिए कहा गया है। अब पार्टी की नजरें जिताऊ प्रत्याशी से लेकर आंदोलनों से जुड़े लोगों पर है। इस कड़ी में उत्तर प्रदेश के चर्चित दलित युवा नेता चंद्रशेखर आजाद को भी कांग्रेस बसपा प्रमुख मायावती की काट के तौर पर देख रही है। चंद्रशेखर ने पीएम मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ने की घोषणा की है और कांग्रेस उनके समर्थन में है।
उत्तर प्रदेश के कांग्रेस प्रवक्ता अनूप पटेल कहते हैं, वाराणसी सीट पर पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस पार्टी विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार चाहती है। हमारी पार्टी चंद्रशेखर आजाद के दलित-शोषितों के संघर्ष का समर्थन करती है। अभी तक वाराणसी सीट पर किसी प्रत्याशी की घोषणा नहीं की गई और आम सहमति बनाने का प्रयास जारी है। राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी ने कई प्रदेशों के युवा नेताओं को अपने साथ जोड़ा है। गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले युवा नेता अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में शामिल हुए जबकि कुछ दिनों पहले ही पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने भी हाथ का साथ थाम लिया। क्या चंद्रशेखर कांग्रेस के साथ आ रहे हैं? इस सवाल पर अनूप पटेल ने कहा, जमीन पर आंदोलन कर रहे लोग और जिन्हें भी संविधान में विश्वास है, उनका कांग्रेस पार्टी में स्वागत है।
मायावती को चुनौती देंगे चंद्रशेखर?
1990 के दशक में मंडल आंदोलन से निकले दलों और बहुजन समाज पार्टी ने हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस को बेहद कमजोर किया है। उत्तर प्रदेश में बसपा के उभार के पहले दलित वोट कांग्रेस में जाता था लेकिन आज इस पर बसपा का एकछत्र राज है। उत्तर प्रदेश में करीब 21 फीसदी दलित आबादी है। 14 लोकसभा 86 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। पिछले तीन दशक के यूपी में दलितों की एक बड़ी आबादी बसपा को वोट करती है। हालांकि अब भीम आर्मी बसपा को चुनौती देती नजर आ रही है। 15 मार्च को मान्यवर कांशीराम की जयंती पर भीम आर्मी ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक बड़ी रैली आयोजित की। इसमें हजारों की संख्या में युवा पहुंचे थे।
भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने इस रैली को शरद यादव और आप विधायक संदीप वाल्मिकी के साथ संबोधित किया। आजाद के पूरे भाषण की खास बात यह रही कि उन्होंने एक बार भी कांग्रेस पर निशाना नहीं साधा जबकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के खिलाफ वो खुलकर बोले। बसपा प्रमुख मायावती का नाम तो उन्होंने नहीं लिया लेकिन दो बार अप्रत्यक्ष तौर पर उन्हें निशाने पर लिया। चंद्रशेखर ने जंतर-मंतर की रैली में कहा, किसी नेता ने आज तक अपनी संपत्ति लोगों के नाम नहीं की है, मैं अपनी संपत्ति समाज के लोगों के नाम करता हूं। जाहिर तौर पर यह तंज उन्होंने मायावती पर किया क्योंकि माया पर आय से अधिक संपत्ति का केस चला है।
हालांकि चंद्रशेखर ने साफ किया कि यूपी 79 सीटों पर महागठबंधन को समर्थन है लेकिन वाराणसी सीट पर उन्हें सपा-बसपा का साथ चाहिए। चंद्रशेखर ने महागठबंधन से अपील की वो उनके लिए वाराणसी सीट छोड़ दें। चंद्रशेखर को कांग्रेस का समर्थन मिल चुका है अब देखना ये है कि मायावती-अखिलेश उन्हें कितनी गंभीरता से लेते हैं।
यूपी में सक्रिय हुई भीम आर्मी
भीम आर्मी उत्तर प्रदेश के सारे जिले में संगठन बना रही है। इस संगठन से अधितकर युवा जुड़ रहे हैं, जो मूलत: बसपा सपोर्टर ही रहे हैं। पूर्वांचल बसपा के एक नेता ने नाम नहीं छापने के शर्त पर कहते हैं, ये सच है कि हमारी पार्टी के ही युवा चंद्रशेखर की ओर जा रहे हैं।
चंद्रशेखर आक्रामक बहुजन बनाम 15 फीसदी की राजनीति कर रहे हैं, जो कभी बीएसपी किया करती थी। रैली में चंद्रशेखर ने सामान्य वर्ग आरक्षण को संविधान की हत्या करार दिया है। उन्होंने कहा, हमें आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान की मूल भावना के खिलाफ, किसी दल ने भी इसका विरोध नहीं किया। इन दलों ने अपने समाज को धोखा दिया है। यहां भी चंद्रशेखर बिना नाम बसपा-सपा की ओर ही इशारा कर रहे थे।
चंद्रशेखर को मिला कांशीराम की बहन का साथ
कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर इस रैली में मंच पर मौजूद थी। वो हमेशा से मायावती की आलोचक रही हैं और 2016 में स्वर्ण कौर ने माया को कांशीराम का हत्यारा तक कहा है। शरद यादव ने इस रैली में आए लोगों से चंद्रशेखर जिंदाबाद के नारे भी लगवाए। इसके अलावा बहुजन आंदोलन के कार्यकर्ता और कांशीराम के सहयोगी रहे एआर अकेला भी चंद्रशेखर के साथ दिखे। चंद्रशेखर ने एआर अकेलाव द्वारा मान्यवर कांशीराम पर लिखे किताब का विमोचन भी किया है।
कांग्रेस की निगाहें चंद्रशेखर आजाद पर
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने आखिरी बार 1985 में सरकार बनाई थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजे लहर में कांग्रेस ने 269 सीटों पर जीत हासिल की थी। 1989 के चुनाव में जनता दल ने कांग्रेस को हराया, पार्टी सिर्फ 94 सीटों पर सिमट गई। इसके बाद कांग्रेस कभी 50 सीटें जीतने में भी सफल नहीं रही। उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के जुड़े एक सदस्य कहते हैं, हमारी नजर 2022 विधानसभा चुनाव पर है। पार्टी को मजबूत करने के लिए बूथ स्तर तक काम किया जा रहा है।
दूसरी ओर प्रियंका गांधी ज्यादा से ज्यादा लोगों को पार्टी के साथ जोड़ने के काम में लगी हुई हैं। पिछले दिनों जब चंद्रशेखर मेरठ के एक अस्पताल में भर्ती थे तो प्रियंका गांधी उनसे मिलने भी पहुंची। इसके बाद ही चंद्रशेखर ने वाराणसी सीट से लड़ने का ऐलान कर दिया। उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार प्रभात रंजन दीन कहते हैं, प्रियंका ने चंद्रशेखर से मिलकर सिर्फ मायावती को ही नहीं बल्कि बीजेपी को भी झटका दे दिया है। शुरुआत में चंद्रशेखर को बीजेपी ने ही संरक्षण दिया लेकिन उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और उग्र तेवर के चलते फिर दूरी भी बना ली। चंद्रशेखर के उत्तर प्रदेश में प्रभाव पर उन्होंने कहा, आंदोलन के निकले नेता का प्रभाव किसी पार्टी से जुड़ जाने के बाद कम हो जाता है। अब चंद्रशेखर को तय करना है कि वो दलित राजनीति का चेहरा बनना चाहते हैं या सिर्फ त्वरित महत्वाकांक्षा में सांसद या विधायक।
प्रियंका से मुलाकात के बाद भीम आर्मी अभी कुछ भी कहने से बच रही है। भीम आर्मी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कमल वालिया का कहना है कि हमने कांग्रेस से समर्थन नहीं मांगा है। सपा-बसपा गठबंधन अगर चंद्रशेखर आजाद को वाराणसी से टिकट नहीं देती है तो दलित समाज के लिए वो निर्दलीय लड़ेंगे। उनकी पार्टी कांग्रेस सहित किसी भी दल के भरोसे नहीं है।